अगर आप अपने गणित के ज्ञान को और बेहतर बनाना चाहते हैं तो आपको महाराष्ट्र चुनाव के आंकड़ों में गोता लगाना चाहिए. उनमें अदल-बदल और संयोग प्रचुर मात्रा में है. भारत के सबसे औद्योगिकृत और प्रभावशाली राज्य में जब तक नई सरकार बनेगी, तब तक आप खुद को गणित का जादूगर मानने लगेंगे.
दरअसल आप समेत सभी चुनाव विश्लेषकों, चुनावी सर्वेक्षण करने वालों और स्वयंभू राजनीतिक पंडितों को इस चुनाव को एक पुनश्चर्या पाठ्यक्रम के रूप में लेना चाहिए. यह अब तक भारत में हुए सबसे जटिल चुनावों में से एक है. इसमें लोगों का फैसला आने के बाद पारंपरिक ज्ञान और मौजूदा राजनीतिक सिद्धांतों का कोई महत्व नहीं रह जाएगा.
यह मुकाबला इतना खंडित है कि मतदाताओं के मन को पढ़ने की उम्मीद रखने वाले रणनीतिकारों के लिए पिछले चुनावों का डेटा का बहुत कम उपयोग का है. न केवल राजनीतिक दलों की संख्या तेजी से बढ़ी है, बल्कि एक विधानसभा क्षेत्र में उम्मीदवारों की औसत संख्या भी बढ़ी है. साल 2004 में एक विधानसभा क्षेत्र में औसतन नौ उम्मीदवार थे, 2019 में यह औसत बढ़कर 11 और अब 2024 में 14 हो गया है. ऐसा तब हुआ है जब बड़ी संख्या में उम्मीदवारों ने अपना नामांकन वापस लिया है.
क्षेत्रिय राजनीति की जटिलता
महाराष्ट्र के सभी 288 विधानसभा क्षेत्रों में से प्रत्येक में औसतन 14 उम्मीदवारों की कल्पना करें- इनमें से कुछ बागी हैं, कुछ निर्दलीय और कई पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार. इसमें जाति, क्षेत्र, धर्म और शहरी-ग्रामीण जैसे कारकों को जोड़ें. बिल्कुल साफ तस्वीर बनेगी.
लेकिन इतना ही नहीं. शिव सेना के पारंपरिक गढ़ माने जाने वाले कोंकण और मुंबई जैसे इलाकों में प्रभाव जमाने के लिए सेना बनाम सेना का मुकाबला है. वहीं मराठाओं के मजबूत इलाके उत्तर, मराठवाड़ा और पश्चिम में यह एनसीपी (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) बनाम एनसीपी का मुकाबला होने जा रहा है. ताजा आंकड़ों के मुताबिक मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की नेतृत्व वाली शिवसेना और उनके पूर्ववर्ती के नेतृत्व वाली शिव सेना 49 विधानसभा सीटों पर आमने-सामने होंगी. वहीं एनसीपी के दोनों गुट 38 सीटों पर आमने-सामने होंगे.
क्या इसका कोई अनुमान है कि मराठा किस तरह से वोट करेंगे या सेना और एनसीपी के टकराव में हिंदुत्व का कारक कैसे काम करेगा? महाराष्ट्र के अपेक्षाकृत अविकसित क्षेत्र विदर्भ में, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस की पारंपरिक लड़ाई जारी है, इसमें वफादारी बार-बार बदलती रहती है. इस बार यह किस तरफ जाएगी.
विदर्भ को करीबी मुकाबले वाले चुनावों के लिए जाना जाता है, हालांकि कुछ अपवाद भी हैं. साल 2014 के विधानसभा चुनाव में, बीजेपी का दबदबा था, उसने वहां की 62 में से 44 सीटें जीतीं थीं, जबकि कांग्रेस केवल 10 सीटें ही जीत पाई थी. अगले चुनाव में बीजेपी की सीटें घटकर 29 रह गईं, जबकि कांग्रेस की सीटें बढ़कर 15 हो गईं. हालांकि इस साल के लोकसभा चुनाव में एक महत्वपूर्ण बदलाव हुआ: महा विकास अघाड़ी (एमवीए) ने 42 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त बनाई. वहीं बीजेपी के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) केवल 19 पर सिमट गया. क्या यह इलाका फिर बदल जाएगा जैसा कि उसने पहले बार-बार किया है.
यह केवल क्षेत्रीय बदलावों के बारे में नहीं है, यहां जटिलताओं के भीतर जटिलताएं हैं. आइए इन उदाहरणों से समझते हैं.
- अभी यह साफ नहीं है कि मराठा आरक्षण की मांग करने वाले मनोज जारांगे पाटील का चुनावी दौड़ से हटने के फैसले का क्या असर होगा. एनडीए और एमवीए दोनों का दावा है कि इस कदम से उन्हें फायदा होगा.
- राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के 25 उम्मीदवार मुंबई क्षेत्र में किस गठबंधन को अधिक प्रभावित करेंगे- एनडीए या एमवीए?
- दोनों प्रमुख गठबंधनों के शीर्ष नेताओं के लगातार प्रयास के बाद भी एनडीए के 18 और एमवीए के 22 बागी नेता चुनावी दौड़ में बने हुए हैं. ऐसे में क्या क्या मतदाता पार्टी की आधिकारिक लाइन का पालन करते हुए इन बागी उम्मीदवारों को अस्वीकार कर देंगे.
- कुछ विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार ने नाम वापस ले लिया है, लेकिन बागी दौड़ में बने हुए हैं. इसका चुनाव नतीजों पर क्या असर पड़ेगा?
- मुंबई के माहिम जैसे विधानसभा क्षेत्रों में क्या होगा, जहां एनडीए ने राज ठाकरे के बेटे को समर्थन देने का फैसला किया है, जबकि सत्तारूढ़ दल के मौजूदा विधायक ने पीछे हटने से इनकार कर दिया है.
अब, यह आप पर निर्भर है कि आप आंकड़ों का विश्लेषण करें, संभावित प्रभावों की गणना करें और अपने निष्कर्ष निकालें- अपने गणितीय कौशल का परीक्षण करें.
2019 के चुनाव में किसे कितना मिला वोट
तेजी से बढ़ती राजनीतिक उद्यमिता
वैधानिक चेतावनी: पिछले चुनावों के आधार पर निष्कर्ष निकालना जोखिम भरा हो सकता है! 2019 और 2024 के बीच गठबंधनों में भारी बदलाव आया है.
अगर आपकी रुचि राजनीतिक उद्यमिता में हैं तो महाराष्ट्र देखने लायक जगह है. शायद ही कभी किसी चुनाव में इतने सारे उम्मीदवार देखे गए हों-निर्दलीय, छोटे दल और छह-छह पार्टियों वाले दो गठबंधन. स्थापित खिलाड़ी मैदान पर मजबूत स्थिति में हैं. लेकिन गठबंधनों में तनाव की वजह से बागियों और निर्दलीयों की संख्या में बढोतरी हुई है.
कई उम्मीदवारों को उम्मीद है कि इस बार जीत का अंतर कम होगा. इससे उनकी संभावना बढ़ जाएगी. हालांकि गठबंधन इसे स्वीकार नहीं कर सकते हैं, लेकिन एमवीए और एनडीए के कुछ नेताओं ने अपने विरोधियों की जीत की संभावनाओं को खराब करने के लिए रणनीतिक रूप से वोट काटने वालों और बागियों को मैदान में उतारा है. इनमें से कुछ राजनीतिक स्टार्टअप फैसले आने के बाद प्रीमियम हासिल कर सकते हैं, जबकि अन्य खत्म हो सकते हैं और बाद में पुनर्जीवित हो सकते हैं.
चुनाव प्रबंधन की एक मास्टर क्लास
यह चुनाव अंतिम मतदाता तक चुनाव अभियान के प्रबंधन की एक मास्टर क्लास है. सभी छह प्रमुख खिलाड़ी अनुभवी हैं, फिर भी प्रतियोगिता उनकी क्षमता का परीक्षण करती है, क्योंकि मतदाता चुप्पी साधे रहते हैं. इस वजह से हर कोई अनुमान लगाता रहता है. क्या वोटर हर पार्टी को असमंजस में रखेंगे या वे किसी गठबंधन के पक्ष में निर्णायक फैसला देंगे? इस बारे में कोई नहीं जानता.
हालांकि एक चीज ऐसी है जो समझदार आंखों को दिखाई देती है: एक विचारवान और चुप मतदाता. बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की ओर से जातीय समूहों को एकजुट करने के लिए स्थानीय यात्राओं को संदेश दिया गया है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के 'लड़की बहना योजना' पर ध्यान केंद्रित करना है, जिसकी चार-पांच किस्तें पहले ही जारी की जा चुकी हैं. यहां शालीन शरद पवार और सुर्खियों में बने रहने को आतुर कांग्रेस में भी एक बड़ा अंतर है.
यह चुनाव सीट-दर-सीट वाली लड़ाई बन गया है. राज्यस्तरीय या यहां तक कि क्षेत्रीय रुझान जटिलताओं को नहीं पकड़ पाएंगे. हर सीट अपनी कहानी खुद बयान करेगी. इसमें शामिल इन जटिलताओं के कारण ही यह आकर्षक है, जैसा कि ऊपर विस्तार से बताया गया है.
मतदाता किससे प्रभावित होंगे
चुनाव प्रचार की हलचल में कई ऐसे कारक हैं जो शायद मतदाताओं को प्रभावित करेंगे-इनमें से कुछ भ्रामक, कुछ आशाजनक और कुछ बिल्कुल ही समझ से परे हैं. महाराष्ट्र ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के एक बड़े हिस्से को आकर्षित करना जारी रखा है. यह चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में देश की कुल एफडीआई का 52.4 फीसद है.
महाराष्ट्र में हजारों गुणवत्तापूर्ण नौकरियां पैदा करने वाली परियोजनाओं की एक मजबूत श्रृंखला है. यह भारत के ऑटो हब, वित्तीय केंद्र, मनोरंजन केंद्र और एक संपन्न स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र की मेजबानी करता है, जो किसी से पीछे नहीं है. इतना कुछ सही होने के बावजूद,राज्य के प्रमुख सामाजिक समूहों में से एक मराठा अपने लिए आरक्षण की मांग कर रहे हैं. ऐसा क्यों? क्या मतदाताओं की पसंद के मुताबिक उम्मीदवारों और पार्टियों की बढ़ती संख्या के साथ खंडित राजनीति है?
समझदार वोटर वोट डालते समय इन सभी कारकों और इससे भी अधिक पर विचार करेंगे. अनुमान लगाने का खेल जारी रहेगा. आखिरकार, हम भारत के अब तक के सबसे जटिल और अप्रत्याशित चुनावों में से एक के बीच में हैं.
(संजय पुगलिया, AMG मीडिया नेटवर्क के सीईओ और एडिटर-इन-चीफ हैं)
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.
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