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This Article is From May 06, 2022

कब तक दबाव झेल पाएगा भारत?

Kadambini Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    May 06, 2022 19:54 IST
    • Published On May 06, 2022 19:54 IST
    • Last Updated On May 06, 2022 19:54 IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीन देशों के दौरे से क्या हासिल हुआ? ये सवाल पूछा जा रहा है. 2022 में पीएम मोदी का यह पहला विदेश दौरा था, वो भी ऐसे माहौल में जब यूरोप में युद्ध की विभीषिका देखी जा रही है. रूस ने यूक्रेन पर जो हमला किया है, वो दो महीने से ज्यादा खिंच चुका है और इसका असर अब यूरोप और दुनिया के बाकी देशों में साफ नज़र आ रहा है. जहां अमेरिका और यूरोप ने रूस पर सख्त प्रतिबंध लगाए हैं, तीखी भर्त्सना की है, भारत ने इससे इंकार किया है. भारत ने लगातार कहा है कि ये युद्ध फौरन रुकना चाहिए, बूचा में आम नागरिकों की हत्या की निंदा और जांच की मांग की है. लेकिन सीधे तौर पर रूस की भर्त्सना नहीं की है. जहां तक प्रतिबंध का सवाल है भारत ने साफ कर दिया है कि जो देशहित में होगा वही होगा. लेकिन दबाव हर तरफ से है और जबरदस्त है.

ऐसे माहौल में यूरोप के दौरे का सीधा मतलब था और दबाव. लेकिन तीनों देश जहां पीएम मोदी गए- जर्मनी, डेनमार्क और फ्रांस वहां पर भारत ने अपना पक्ष मज़बूती से रखा और देशों ने समझा कि भारत की जीओपोलिटिकल स्थिति अमेरिका या यूरोप जैसी नहीं है, ना उसके विकास की जरूरतें समान हैं. ये अपने आप में सबसे बड़ी उपलब्धि है.

लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि चुनौतियां खत्म हो गईं. चाहे डेनमार्क के साथ साझा बयान हो या नॉर्डिक देशों के साथ दोनों में इन देशों ने रूस की तीखी आलोचना की है. लेकिन भारत अपने रुख पर टिका हुआ है. ये  ज़रूर कहा है कि रूस यूक्रेन युद्ध का हल बातचीत और कूटनीति से ही निकलेगा. डेनमार्क की पीएम ने तो अपने बयान में ये तक कहा कि भारत अपने प्रभाव का इस्तेमाल युद्ध रोकने के लिए करे. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रां और पीएम मोदी ऐसे नेताओं में हैं जिनका संपर्क रूस के राष्ट्रपति पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की दोनों से है. 

दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक संगठनों में लगातार रूस- यूक्रेन युद्ध के मसले पर बैठकें और इनमें वोटिंग हो रही है. इनमें भारत अपना तटस्थ रुख दिखाने के लिए वोट नहीं कर रहा है. लेकिन इसे लेकर कितने मतभेद हैं, वो तब सामने आ गया जब सुरक्षा परिषद की ताज़ा बैठक में हुई वोटिंग में भारत ने वोट नहीं दिया और यूके में नीदरलैंड के राजदूत ने ट्विटर पर कहा कि आपको वोट देने से बचना नहीं चाहिए था. इस पर यूएन में भारत के स्थाई प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने कहा कि हमें ना सिखाएं.

मई के अंत में पीएम क्वाड सम्मेलन में हिस्सा लेने टोक्यो जाएंगे. वहां पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, जापान और ऑस्ट्रेलिया के पीएम से आमना सामना होगा. क्या भारत अपने रुख पर कायम रहेगा या इस लगातार खिंचते युद्ध में उसे एक पक्ष लेने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. इसका जवाब कई बातों पर निर्भर करता है- तब तक युद्ध की क्या स्थिति होगी? रूस क्या कदम उठाएगा? यूक्रेन के क्या हालात होगे? युद्ध के कारण हो रहे अन्न की कमी को पूरा करने के लिए भारत कितनी अहम भूमिका निभाता है? भारत के सस्ते तेल की ज़रूरत कैसे पूरी होगी? रक्षा उपकरण और तकनीक के लिए कौन सा देश सबसे ज्यादा भरोसेमंद साबित होगा? ये कई फैक्टर हैं और किसी का जवाब आसान नहीं. भारत को महीन कूटनीति की ज़रूरत पड़ेगी और इस चुनौती के पार रास्ते कुछ आसान हो सकते हैं.

कादम्बिनी शर्मा NDTV इंडिया में एंकर और सीनियर एडिटर (फॉरेन अफेयर्स) हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. 

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