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मध्य प्रदेश कैसे बनता गया BJP का गढ़...?

Atul Ranjan
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 25, 2024 21:09 pm IST
    • Published On जून 25, 2024 18:42 pm IST
    • Last Updated On जून 25, 2024 21:09 pm IST

लोकसभा चुनाव 2019 के मुकाबले लोकसभा चुनाव 2024 में BJP को कुल 63 सीटों का बड़ा नुकसान उठाना पड़ा. उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, महाराष्ट्र जैसे कई अहम राज्यों में पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा, लेकिन मध्य प्रदेश एकमात्र ऐसा बड़ा राज्य रहा, जहां BJP ने न सिर्फ़ अपनी सीटों की गिनती में इजाफ़ा किया, बल्कि सभी 29 सीटों पर जीत का परचम लहराकर इतिहास रच दिया.

ये नतीजे इसलिए भी प्रासंगिक हैं, क्योंकि हिन्दी पट्टी में भी BJP का प्रदर्शन अपेक्षा अनुरूप नहीं रहा. पार्टी को 2019 के मुकाबले 49 सीटें कम हासिल हुईं. ऐसे में मध्य प्रदेश के नतीजे BJP के लिए उत्साहजनक है, और इस प्रदर्शन ने एक बार फिर साबित किया है कि गुजरात के बाद मध्य प्रदेश ही उसका नया गढ़ है.

किंतु उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश हिन्दी पट्टी के अन्य राज्यों से ज़रा अलग है. दक्षिण-एशियाई राजनीति पर रिसर्च के लिए मशहूर राजनीति-शास्त्री वायन विलकॉक्स ने मध्य प्रदेश की विविधता की व्याख्या करते हुए कहा था कि यह 'माइक्रोकास्म ऑफ़ इंडिया', यानी 'भारत का सूक्ष्म दर्शन' है.

साल 2000 में विभाजन के समय़ यह मूलत: 4 खंडों के समूह के रूप में देखा जाता था. पहला - मध्य-पश्चिम में मध्य भारत का इलाका, दूसरा - उत्तर प्रदेश से सटा विंध्य प्रदेश, तीसरा - दक्षिण में महाकौशल, और चौथा और आखिरी - छत्तीसगढ़, जो बाद में नया राज्य बना. यानी मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि मध्य प्रदेश अपने पड़ोसी राज्यों के बचे-खुचे हिस्सों का समूह है, जो बिना किसी मज़बूत जोड़ के भी एक साथ है.

ऐसे में BJP या किसी भी पार्टी के लिए ऐसे प्रदेश में चुनाव-दर-चुनाव सफलता का शानदार रिकॉर्ड कायम रखना बड़ी उपलब्धि है.

पिछले साल दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में भी मध्य प्रदेश में भगवा फहराया था. BJP ने तमाम तरह के राजनीतिक पंडितों को गलत साबित करते हुए बंपर जीत हासिल की थी. पार्टी ने राज्य की 230 विधानसभा सीटों में से 163 पर परचम लहराया और अपने 20 सालों के राज को अगले पांच साल तक के लिए भी सुनिश्चित किया था. 20 साल की इस अवधि में BJP सिर्फ़ 15 महीने के लिए सत्ता से बाहर रही, जब 2018 विधानसभा चुनाव में हुई कांटे की टक्कर के बाद कांग्रेस ने अन्य पार्टियों और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बना ली थी.

हालांकि BJP को मिली 109 सीटें कांग्रेस की 114 सीटों से सिर्फ 5 कम थीं. ऐसे में यह हार किसी अपवाद से ज़्यादा नहीं. कुछ वैसा ही, जैसा साल 2017 में गुजरात में देखने को मिला था, जब कांग्रेस ने उस अभेद्य किले में जीत के बेहद करीब पहुंचकर BJP को भौंचक्का कर दिया था.

लेकिन यहां ध्यान देने योग्य यह है कि BJP मध्य प्रदेश की इस हार में भी कांग्रेस के मुकाबले ज़्यादा वोट प्रतिशत लाने में कामयाब रही थी. वास्तव में अगर मंदसौर में किसानो पर गोली चलने की घटना और चुनाव से कुछ महीने पहले सर्वोच्च न्यायालय के SC-ST कानून को हल्का करने के फैसले को पलटने के कदम से अगड़ों में पैदा हुई नाराज़गी न होती, तो संभवत: राज्य में चल रहे पार्टी के विजय रथ को अस्थायी रूप से रोकना भी असंभव होता.

हालांकि BJP का यह वर्चस्व हमेशा से नहीं रहा है. साल 1956 में राज्य के गठन से लेकर 2003 तक कांग्रेस का ही तकरीबन निरंतर राज रहा. दशकों तक कांग्रेस ने पूर्व राजसी अभिजात वर्ग और पारंपरिक जमींदार जातियों के साथ 'गठबंधन' बनाकर अपना राजनीतिक वर्चस्व कायम रखा.

इस दौरान भारतीय जनसंघ अपनी जड़ें मज़बूत करने में लगा रहा. 1962 के विधानसभा चुनाव में ही 41 सीटें पाकर पाकर जनसंघ मुख्य विपक्षी पार्टी बन चुका था. साल 1980 में जनता पार्टी के टूटने और BJP के गठन के बाद से यह प्रदर्शन बेहतर होता चला गया.

आखिरकार साल 1990 में BJP सत्ता पर काबिज होने में कामयाब हो गई, जब उसने 39 फीसदी वोट लाकर 220 सीटों पर जीत हासिल की. हालांकि यह सरकार महज़ दो साल तक चल पाई. लेकिन यह वह वक्त था, जब दोनों खेमों के बीच की वोटों की खाई मिट चुकी थी. लेकिन फिर भी अगले 10 साल तक कांग्रेस ही सत्ता में रही.

जानकार इसे तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की राजनीतिक चालाकी मानते हैं. राजनीतिक शोधकर्ता असीम अली के मुताबिक, "दिग्विजय सिंह ने समाज के अगड़ों और दलित-आदिवासियों को साथ लाकर मजबूत रणनीतिक गठबंधन तैयार किया, जो OBC समुदाय को बाईपास करता था... यह असरदार कवायद थी, चूंकि दलित (14%) और आदिवासी (21%) मिलकर कुल जनसंख्या की एक-तिहाई से भी अधिक हो जाते हैं..."

इस बीच देश में मंडल कमीशन के सुझावों पर लागू किए गए OBC आरक्षण से पैदा हुए राजनीतिक भूचाल से मध्य प्रदेश कमोबेश अछूता रहा. राज्य की 48 फीसदी आबादी OBC होने के बावजूद प्रतिक्रिया संयमित रहने की वजह यह मानी जाती है कि अन्य हिन्दी प्रदेशों की तरह मध्य प्रदेश में यादव, कुर्मी, जाट जैसी प्रमुख कृषि जातियों की संख्या बड़ी नहीं है. कोई भी OBC जाति कुल आबादी की 5 फीसदी से ज्यादा नहीं है. ऐसी तितर-बितर आबादी को किसी मुद्दे पर लामबंद करना आसान नहीं.

परंतु साल 2003 के चुनाव में OBC समुदाय ने BJP को संगठित समर्थन दिया. BJP को OBC समाज का 50 फीसदी वोट मिला और पार्टी ने 173 सीटें जीतकर सत्ता हासिल की. यहीं से BJP ने राज्य में OBC राजनीति की शुरुआत की. इसके बावजूद कि पहले कार्यकाल में ही दो बार मुख्यमंत्री बदलना पड़ा, BJP ने सुनिश्चित किया कि तीनों ही चेहरे – उमा भारती, बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चौहान – OBC पृष्ठभूमि के हों. नए मुख्यमंत्री मोहन यादव भी OBC नेता हैं.

साल 2003 मध्य प्रदेश BJP के लिए मील का पत्थर साबित हुआ. पार्टी ने उसके बाद राज्य में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, और 2008, 2013, 2018 और 2023 के विधानसभा चुनाव में BJP मध्य प्रदेश में लगभग अजेय रही है.

चुनावी सफलता के इस सुनहरे सफर का अगर किसी को सबसे ज्यादा श्रेय जाता है, तो वह हैं पार्टी के दिग्गज नेता और 4 बार के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान. शिवराज अपने राज में OBC को किसानों के व्यापक चुनावी गठजोड़ के रूप में संगठित करने में काफी हद तक कामयाब हुए. यह चुनावी चतुराई थी, क्योंकि मध्य प्रदेश की आधी से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर है.

शिवराज ने अपने कार्यकाल में खेती-किसानी से जुड़े कई प्रभावशाली कदम उठाए, जिसका किसानों पर सकारात्मक असर देखने को मिला. साल 2017 में प्रकाशित अपने शोधपत्र में कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी के मुताबिक शिवराज शासन के नीतिगत हस्तक्षेप - सिंचाई क्षेत्र में बढोतरी, भूजल सिंचाई के लिए निरंतर बिजली आपूर्ति, बेहतर खरीद प्रणाली और ग्रामीण सड़कों में निवेश - ने राज्य के कृषि उत्पादन में उल्लेखनीय सुधार किया. यही वजह रही कि साल 2007-15 के बीच राज्य में कृषि विकास दर औसतन 11.9 फीसदी रही, जबकि उसी अवधि में राष्ट्रीय औसत सिर्फ 4.3 फीसदी रहा.

अंग्रेजी अखबार 'इंडियन एक्सप्रेस' की एक रिपोर्ट के मुताबिक शिवराज के राज में मध्य प्रदेश देश में गेहूं का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक बनकर उभरा. सूबा इसके अतिरिक्त सोयाबीन, चना, टमाटर, लहसुन, अदरक, धनिया और मेथी उत्पादन में अग्रणी, और प्याज़, सरसों और मक्का उत्पादन में दूसरे नंबर पर है. (अब शिवराज पर पूरे देश के किसानों के कल्याण की ज़िम्मेदारी है)

इस दौरान तकरीबन हर लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश ने BJP की झोली में भरपूर सीटें देकर पुरस्कृत किया है. साल 2004 में जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली NDA सरकार वापसी करने में नाकाम हुई थी, तब भी मध्य प्रदेश में BJP ने 29 मे से 25 सीटें निकाल ली थीं.

साल 2009 में जब UPA सरकार को जनता ने लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए चुना, तब भी मध्य प्रदेश में कांग्रेस की 12 के मुकाबले 16 सीटों पर BJP ने जीत हासिल की थी. इसके बाद 2014, 2019 और 2024 में प्रदर्शन लगातार बेहतर होता गया और पार्टी ने क्रमशः 27, 28 और 29 सीटों पर परचम लहराया. 2014 और 2019 में BJP का मत प्रतिशत जहां 50 से ऊपर रहा, वहीं 2024 में यह आंकड़ा लगभग 60 फीसदी हो गया.

वहीं दूसरी ओर राज्य में मुख्य विपक्षी कांग्रेस लगातार हार से कमज़ोर होती गई है. 2018 के विधानसभा चुनाव पर लिखी अपनी किताब 'चुनाव है बदलाव का' में वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश राजपूत लिखते हैं, "पिछले 15 साल मध्य प्रदेश में कांग्रेस के लिए बर्बादी की कहानी रहे हैं... 2003 में सत्ता खोने के बाद, एक सुव्यवस्थित कांग्रेस संगठन धीरे-धीरे अदृश्य और अप्रभावी हो गया..."

चर्चा है कि अभी-अभी संपन्न हुए 2024 के चुनाव में सबसे पुरानी पार्टी ने कुछ-एक सीटों के अतिरिक्त कहीं ताकत भी नहीं झोंकी. यहां तक कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले राज्य में पार्टी के सबसे बड़े नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के अपने बेटे नकुलनाथ सहित BJP में शामिल होने की जबरदस्त अटकलें रहीं. इससे पहले, साल 2020 में सीनियर कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने गुट के 22 विधायकों को लेकर BJP का दामन थाम लिया था, जिससे राज्य में कांग्रेस की सिर्फ़ 15 महीने पुरानी सरकार गिर गई थी.

लेकिन इसके उलट, ऐसा भी नहीं कि BJP का संगठन पूरे तौर पर सशक्त और प्रभावी रहा है. हालांकि यह फर्क तब बड़ा हो जाता है, जब आप संघ के कैडर को भी साथ जोड़ लेते हैं. साल 2003 विधानसभा चुनाव में BJP की जीत पर टिप्पणी करते हुए राजनीतिक शोघकर्ता और लंदन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जेम्स मनोर ने लिखा था कि RSS कैडर ने चुनाव में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, जो जीत में अहम रहा. उन्होंने यह तक लिखा कि अपने 31 साल के विधानसभा चुनाव को कवर करने के अनुभव में ऐसा योजनाबद्ध कैम्पेन उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था. यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक जमाने से मध्य प्रदेश में BJP का असरदार साझेदार रहा है.

अपनी पकड़ को और मजबूत करने की आशा और राज्य की भौगोलिक उपस्थिति ने BJP के वैचारिक अभिभावक को नए अवसरों को लेकर आकर्षित किया है. हिन्दी पट्टी के महत्व और रणनीतिक दूरदृष्टि को देखते हुए संघ अपने नागपुर मुख्यालय को मध्य प्रदेश शिफ्ट करने की प्रक्रिया में है. साल 2020 में अंग्रेजी दैनिक 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' को संघ के सूत्रों ने बताया था, "...देश के केंद्र में होने से मध्य भारत का इलाका योजना, समीक्षा, और संघ-संबंधियों की राजनीतिक लामबंदी के लिहाज़ से महत्वपूर्ण है..."

महत्वपूर्ण है कि यह नया मुख्यालय जिस मालवा क्षेत्र में बनाया जा रहा है, वह सीटों के लिहाज़ से मध्य प्रदेश में सबसे अहम है.

दिलचस्प यह भी है कि संघ का मध्य प्रदेश से पुराना इतिहास जुड़ा हुआ है. साल 1943 में सरसंघचालक माधवराव गोलवलकर इंदौर में सभा करना चाहते थे, किंतु ब्रिटिश सरकार की नीति किसी बाहरी को ऐसे कार्यक्रम आयोजित करने से प्रतिबंधित करती थी. तब एक शख्स ने अपने अखाड़े की ज़मीन उनके नाम कर दी थी. तभी से मालवा का अर्चना कार्यालय संघ की गतिविधियों की मेज़़बानी करता आया है.

यानी इतिहास और वर्तमान - दोनों मध्य प्रदेश के भगवा राजनीतिक भविष्य की ओर इशारा करते हैं.

(अतुल रंजन NDTV इंडिया में कार्यरत हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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