अंबानी जी पाठकों को लेकर हमेशा उदार रहे हैं. उन पर कभी मानहानि नहीं करते. कैरवान ने भी उन्हें मानहानि देने के लिए ये अंक निकाला है. आप पढ़कर ख़ुद से अंबानी की मानहानि की भरपाई करें. सुना है कैबिनेट मीटिंग में राफ़ेल पर पीपीटी हुआ है. पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन. ताकि मंत्री लोग बचाव का पाठ पढ़ सकें. तो आप भी पाठक के नाते इस अंक को पढ़ लें ताकि बचाव के पाठ को समझ सकें. हिन्दी के कूड़ा अख़बारों में ऐसी रिपोर्टिंग तो मिलेगी नहीं पर आप कूडा ख़रीदते रहें. कभी न कभी तो हिन्दी के इन कूड़ा अख़बारों को बंद करना ही होगा जहां 70 फ़ीसदी प्रोपेगैंडा छपता है और बाक़ी तीस फ़ीसदी में जनरल टाइप की ख़बरें.
ऐसा नहीं है कि इनमें मेधावी पत्रकार नहीं हैं मगर सबके हाथ पैर बांध दिए गए हैं. पर क्या पाठक ने भी अपने हाथ पांव बांध लिए हैं? कभी तो सुबह उठिए और अपना हिन्दी का अख़बार बंद कर दीजिए. नहीं बंद कर सकते तो जो अख़बार कई साल से पढ़ रहे हैं उसे बदल दीजिए. कोई छोटा अख़बार ले लीजिए. पाठक जितना निष्क्रिय होगा, लोकतंत्र भी उतना ही निष्क्रिय होगा. आप ख़ुद से भी हिन्दी अख़बारों का मूल्यांकन कीजिए. थोड़ा अलग नज़र से देखिए. दो मिनट बाद पढ़ने लायक कुछ नहीं होता क्यों?
क्या आपने तय कर लिया है कि जो चल रहा है वही चलने देंगे और सारी संस्थाओं को बर्बाद कर देंगे? अपने अपने मोहल्ले में अख़बार बंद या अख़बार बदल आंदोलन चलाइये. हिन्दी से ज़्यादा मांगिए. हिन्दी चैनलों और अख़बारों से पत्रकारिता मांगिए हिन्दी नहीं. मुझे पता है हिन्दी के पत्रकार भावुकता बघारने लगेंगे लेकिन बात भावुकता और अपवाद की नहीं है. जो मूल ढांचा है हिन्दी के अख़बारों का वह बर्बाद हो चुका है. ये अपवाद स्वरूप पत्रकारिता करने वाले पत्रकार भी जानते हैं. आपकी सक्रियता हिन्दी अख़बारों और चैनलों के संपादक को बदलने के लिए मजबूर करेगी. फिर देखिए हिन्दी का पत्रकार क्या कमाल करता है. इसलिए आप मेरे आंदोलन को आगे बढ़ाइये. हिन्दी का अपमान कर रहे हैं हिन्दी के कूड़ा अख़बार. बंद कीजिए या बदल दीजिए.
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This Article is From Sep 06, 2018
क्या आपने हिन्दी का कूड़ा अख़बार बंद किया या बदला?
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:सितंबर 06, 2018 19:11 pm IST
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Published On सितंबर 06, 2018 19:11 pm IST
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Last Updated On सितंबर 06, 2018 19:11 pm IST
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