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उच्च शिक्षा के लिए बाहर क्यों चले जाते हैं बिहार के छात्र

डॉ. नीरज कुमार
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 19, 2025 18:04 pm IST
    • Published On अगस्त 19, 2025 18:02 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 19, 2025 18:04 pm IST
उच्च शिक्षा के लिए बाहर क्यों चले जाते हैं बिहार के छात्र

दुनिया के पैमाने पर भारत के संस्थान शैक्षणिक गुणवत्ता में बहुत नीचे हैं. भारत के पैमाने पर बिहार के संस्थान एकदम नीचे हैं.अगर दुनिया के पैमाने पर बिहार के शिक्षण संस्थानों को देखें तो यह इतने नीचे है कि आपको तलहटी में खुदाई कर उन्हें तलाशना होगा. वहीं, अगर शैक्षणिक तंत्र में भ्रष्टाचार की ग्रेडिंग करें तो बिहार देश में पहले पायदान पर होगा. अपनी आबादी के अनुपात में मजदूर पैदा करने में भी बिहार देश में पहले नंबर पर है. यहां का सिस्टम यह सुनिश्चित करता है कि कोई बच्चा पहली क्लास से एमए तक की शिक्षा गुणवत्ता के मानकों के साथ ग्रहण न कर सके. यह बिहार में ही संभव है कि कोई बच्चा फिजिक्स, केमेस्ट्री, जूलॉजी  आदि में फर्स्ट क्लास में ऑनर्स ग्रेजुएट हो जाए, लेकिन अपने पूरे छात्र जीवन में प्रयोगशाला न देखे हो. यह बिहार में ही संभव है कि एक सरकारी कॉलेज में हजारों बच्चों का नामांकन हो लेकिन उस कॉलेज में फिजिक्स, केमेस्ट्री, मैथ, बॉटनी में प्रोफेसर्स न के बराबर हो. इन स्कूल-कॉलेज से निकले बच्चे कंपीटिशन की दुनिया में कैसे मुकाबला करेंगे. 

कितना बड़ा है बिहार का शिक्षा बजट

यह तब होता है, जब बिहार देश के अन्य राज्यों की तुलना में अपने बजट का सबसे बड़ा हिस्सा शिक्षा पर खर्च करता है.बिहार सरकार ने वित्तवर्ष 2025-2026 के बजट में शिक्षा के लिए 60964.87 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान किया है. भूमंडलीकरण ने अपना एक चक्र पूरा कर लिया है, आज रोजगार और श्रम का आयात-निर्यात पूरी दुनिया में किस बड़े पैमाने पर हो रहा है. श्रम के इस निर्यात बाजार में आज एक आम बिहारी कहां है? औद्योगिक संघ और संगठनों का कहना है कि बिहार के अधिसंख्य युवा अच्छी शिक्षा, अच्छा शैक्षणिक माहौल नहीं प्राप्त कर पा रहे हैं और वे केवल डिग्रियां लेकर परिसरों से निकल रहे हैं. वे रोजगार पाने लायक योग्यता हासिल नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में इन डिग्रीधारी युवाओं की भूमंडलीकृत रोजगार के बाजार में क्या वैल्यू है? वैश्वीकरण के जो लाभ रोजगार के सेक्टर में मिले हैं, उसका लाभ उठा पाने में आम बिहारी युवा असमर्थ हैं, क्योंकि उनके साथ घोर नाइंसाफी हुई है.

बिहार सरकार ने अपने सर्वेक्षण में पाया कि राज्य के कुल शिक्षित लोगों में 93 फीसदी अंडर ग्रेजुएट हैं, यहां कि कुल आबादी के मात्र 0.58 फीसदी के पास आईटीआई कि डिग्री है, 0.30 फीसदी इंजीनियर हैं, 0.06 फीसदी मेडिकल, 0.82 फीसदी पोस्ट ग्रेजुएट हैं, 0.07 फीसदी डॉक्टरेट और चार्टर अकाउंट के साथ 6.11 के पास स्नातक की डिग्री है. ऐसे में सवाल उठता है कि उच्च शिक्षा की स्थिति इतनी दयनीय क्यों है? क्या इसी दयनीय स्थिति के कारण अधिकतर छात्र उच्च शिक्षा के लिए बिहार से बाहर तो नहीं चले जाते. अगर देखा जाय तो बिहार से हर साल 70-80 हजार छात्र मेडिकल-इंजीनियरिंग की कोचिंग के लिए कोटा और 20-25 हजार छात्र सिविल सर्विसेज की कोचिंग के लिए दिल्ली के मुखर्जी नगर चले जाते हैं. एक सर्वेक्षण के मुताबिक बिहार से हर साल दो हजार करोड़ रुपए उच्च शिक्षा के नाम पर बिहार से बाहर जाता है. 

किस आय वर्ग के छात्र सबसे अधिक जाते हैं बिहार से बाहर

मैंने 2007 से 2017 तक दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय में पीएचडी में नामांकन से पहले मैंने भी देश के विभिन्न शहरों में रहकर पढ़ाई की है. सिविल सर्विसेज की तैयारी के लिए दिल्ली, पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए पुडुचेरी, एम फिल के लिए पंजाब में रह चुका हूं. हर जगह पर मैंने पाया कि हमसे पहले, हमारे साथ और हमारे बाद भी बिहारी छात्र वहां हैं. मैंने कुछ ऐसे ही छात्रों से बातचीत के आधार पर यह जानना चाहा कि वे बिहार से यहां क्यों आए और उनकी आय का मुख्य स्रोत क्या है.

मैंने विभिन्न वर्गों के 100  छात्रों से मुलाकात की. इनमें  68 फीसदी लड़के और 32 फीसदी लड़कियां हैं. इनमें 47 फीसदी सामान्य वर्ग, 41 फीसदी पिछड़ा वर्ग, नौ फीसदी अनुसूचित जाति और तीन फीसदी अनुसूचित जनजाति के थे. इन छात्रों के अभिभावकों में से 33 फीसदी किसान, 38 फीसदी सरकारी नौकरी, 19 फीसदी व्यापारी और 10 फीसदी निजी क्षेत्र में नौकरी करने वाले थे. इनकी आय का स्तर 1.5 से 5 लाख रुपये सालाना थी. 27 फीसकी छात्रों के परिवार की आय 1.5 लाख से कम, 1.5 लाख से 3 लाख तक की आय लासे 31 फीसदी छात्र थे, 3 से 5 लाख के बीच आय वाले 31 फीसदी और 5 लाख से ज्यादा आय वाले 11 फीसदी थे. इनके अभिभावक के शैक्षणिक स्तर को अगर देखा जाय तो इनमें से 15 फीसदी अशिक्षित, 23 फीसदी मैट्रिक, 25 फीसदी अंडर ग्रेजुएट, 19 फीसदी स्नातक और 18 फीसदी पोस्ट ग्रेजुएट हैं.

इन छात्रों का बिहार कि शैक्षणिक व्यवस्था के प्रति धारणाएं चिंताजनक है.इनमें से कोई भी छात्र इस बात से सहमत नहीं था कि बिहार में उच्च शिक्षा कि स्थिति बेहतर है. 51 फीसदी छात्रों का मानना था कि बिहार में उच्च शिक्षा कि गुणवत्ता बेहद खराब है. वहीं 29 फीसदी छात्रों का मानना था कि बिहार में शिक्षा का स्तर खराब है. जबकि 14 फीसदी ने औसत और छह फीसदी ने बिहार की शिक्षा के स्तर को अच्छा माना. इस छात्र समूह में 53 फीसदी का मानना था कि उच्च शिक्षा में सुविधाओं कि कमी के कारण ये लोग बिहार से निकले हैं. वीं 23 फीसदी ने माना कि बेहतर विकल्प कि तलाश में वो आए हैं.वहीं 28 फीसदी छात्रों का कहना था नौकरी की आश और नौ फीसदी का मानना था कि अपने दोस्तों के प्रभाव में वो बिहार से बाहर शिक्षा के लिए आए हैं. इन छात्रों में से 39 फीसदी छात्र अपने परिवार के नियमित आय से यहां रह के पढ़ रहे थे. वहीं 40 फीसदी छात्रों ने कर्ज लेकर कॉलेज की फीस जमा की थी. वहीं आठ फीसदी छात्र के परिवार ने उन्हें पढ़ाने के लिए जमीन-जायजाद बेची थी. केवल तीन फीसदी छात्र   ही छात्रवृति के दम पर पढ़ रहे थे. 

बिहार में कैसी है उच्च शिक्षा की हालत

उपरोक्त तथ्यों के आधार पर अगर बिहार में उच्च शिक्षा कि स्थिति का अध्ययन किया जाए निश्चय ही इन छात्रों कि धारणाएं सत्य प्रतीत होती हैं. ऐसा नहीं है कि बिहार में उच्च शिक्षा कि स्थिति आधुनिक बिहार के अस्तित्व में आने से ही दयनीय रही है. प्राचीन काल से ही बिहार उच्च शिक्षा का केंद्र रहा है. बिहार में नालंदा, विक्रमशीला और  ओडन्टपुरी जैसे अंतरराष्ट्रीय शिक्षा के केंद्र रहे हैं. दक्षिण-पूर्वी एशिया और मध्य एशिया तक से छात्र यहां पढ़ने आया करते थे. इन्हीं विश्वविद्यालयों से आर्यभट्ट और वरहमिहिर निकले. इन विश्वविद्यालयों का निर्माण राज्य के संरक्षण में ही हुआ और उन्हें वित्तीय संसाधन भी राज्य से ही मिले.

आजादी के बाद डेढ़ दशक बाद तक बिहार उच्च शिक्षा के क्षेत्र में देश अग्रणी राज्य रहा है. लेकिन, 1960 के मध्य दशक के बाद बिहार के उच्च में गिरावट आनी शुरू हुई. इसका एकमात्र कारण शैक्षणिक संस्थानों का राजनीतिककरण रहा है. भले ही बिहार में आज तीन केंद्रीय विश्वविद्यालय, दो एम्स, एक आईआईटी, एक एनआईटी और पांच निजी विश्वविद्यालय हो, लेकिन आज भी अगर सकल नामांकन अनुपात देखें तो यह मात्र 15 फीसदी के आस पास है. यहां एक भी ऐसा शैक्षणिक संस्थान नहीं है जिसे इंस्टिट्यूट ऑफ एक्सीलेंस माना जाए. बिहार के केवल 13 कॉलेजों को नैक का एक्रिडिएशन हासिल है. एक लाख लोगों पर मात्र छह कॉलेज हैं, जबकि राष्ट्रीय स्तर औसत एक लाख की आबादी पर 26 कॉलेज का है. यहां छात्र-प्रोफेसर का अनुपात 39:1 का है  और प्रति व्यक्ति उच्च शिक्षा पर खर्च मात्र 1221 रुपया है. ऐसे में यह कहा जा सकता है कि बिहार के छात्र मजबूरी में बिहार से बाहर कि ओर उच्च शिक्षा के लिए पलायन कर रहे हैं. अगर उनकी जरूरतों को यहीं पर पूरा किया जाए तो ये छात्र बिहार में ही रह कर अध्ययन कर सकते हैं. इसके लिए नीति निर्माताओं को एक दृष्टिकोण अपनाना होगा कि कैसे उच्च शिक्षा कि गुणवत्ता को सुधार करते हुए. बिहार की मानव पूंजी को बिहार में विकास के लिए उपयोग लाया जा सके.

अस्वीकरण: डॉ नीरज कुमार बिहार के वैशाली स्थित सीवी रमन विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान पढ़ाते हैं. लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है. 
 

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