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This Article is From Feb 03, 2019

आगरा में रेंगती नागरिकता, पुणे में तेलतुम्बडे को लेकर चुप नागरिकता

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    फ़रवरी 03, 2019 18:12 pm IST
    • Published On फ़रवरी 03, 2019 18:12 pm IST
    • Last Updated On फ़रवरी 03, 2019 18:12 pm IST

अब आपको याद भी नहीं होगा कि प्रधानमंत्री की हत्या की कथित साज़िश में गिरफ्तार सुधा भारद्वाज जैसों के साथ क्या हो रहा होगा? मीडिया और राजनीति आपके सामने आतंकवाद के ख़तरे परोसते रहे. पहले बताया कि आतंकवाद के लिए एक खास धर्म के लोग ज़िम्मेदार हैं. एक दुश्मन का चेहरा दिखाया गया. फिर अचानक आपके ही बीच के लोगों को उसके नाम पर उठाया जाने लगा.

आनंद तेलतुम्बडे पुणे से मुंबई जा रहे थे ताकि अगली सुबह हाईकोर्ट में अपनी अग्रिम ज़मानत की याचिका दायर कर सकें. पुणे की पुलिस भोर बेला में 3 बज कर 30 मिनट पर एयरपोर्ट से गिरफ्तार कर लेती है. सुबह होती है और उसी कोर्ट में बहस होती है जिसने एक दिन पहले आनंद की अग्रिम ज़मानत याचिका रद्द कर दी थी. आनंद के वकील कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने 14 जनवरी को आदेश दिया था कि 11 फरवरी तक आनंद की गिरफ्तारी नहीं हो सकती है. इसके बाद भी पुणे की पुलिस गिरफ्तार कर लेती है. आनंद के वकील कहते हैं कि यह गिरफ्तारी अवैध है. कोर्ट ज़मानत दे देती है. आनंद तेलतुम्बडे बाहर आ जाते हैं.

आख़िर एक पुलिस अवैध तरीके से काम करने के लिए क्यों उतावली है? प्रोफेसर अपूर्वानंद ने ठीक लिखा है कि क्या यह उद्वेलित करने वाली बात नहीं है. क्या आनंद आतंकवादी हैं? हाल ही में इंडियन एक्सप्रेस की खबर याद कीजिए. दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस एस मुरलीधर ने गौतम नवलखा के मामले में संरक्षण देने का फैसला दिया तो सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम में उनके तबादले की दो-दो बार कोशिश हुई मगर कुछ जजों के एतराज़ से टल गया. क्या आप वाकई ऐसा भारत चाहते हैं जहां इस तरह की ख़बरों से आप सामान्य होने लग जाएं?

आनंद तेलतुम्बडे पर भीमा कोरेगांव की रैली के बाद हुई हिंसा और प्रधानमंत्री मोदी की कथित हत्या की साज़िश का आरोप है. इसी आरोप में सुधा भारद्वाज गिरफ्तार हैं. गौतम नवलखा आरोपी हैं. आनंद तेलतुम्बडे तो भीमा कोरेगांव की सभा में गए भी नहीं थे. बल्कि दि वायर में लिखा था कि ऐसे आयोजनों की वैचारिक दिक्कतें क्या हैं. दक्षिणपंथी नेता संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोटे पर भी इसी मामले में हिंसा भड़काने के कथित आरोप लगे थे मगर इन दोनों को बिना पूछताछ के बरी कर दिया गया.

प्रोफेसर आनन्द तेलतुम्बडे आईआईएम अहमदाबाद के छात्र रहे हैं. आईआईटी खड़गपुर में प्रोफेसर रहे हैं. पेट्रोनेट इंडिया के सीईओ रहे हैं. गोवा इन्स्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में ‘बिग डाटा एनालिटिक्स' के विभाग प्रमुख हैं. आनंद ने 26 किताबें लिखी हैं. उनके पक्ष में आईआईटी खड़गपुर के 120 से अधिक छात्रों और प्रोफेसरों ने पत्र लिखा है. आईआईएम अहमदाबाद और आईआईएम बंगलुरू के प्रोफेसरों और छात्रों ने लिखा है.

कानून अपना काम करेगा की आड़ में फर्ज़ी केस में फंसाना कौन सी बड़ी बात है. मगर यह खेल इतना बढ़ जाए कि जहां नागरिक मात्र प्यादा बन कर रह जाए तो ऐसी स्थिति को मंज़ूरी देने से पहले क्या आपने ठीक से सोच लिया है?

गांधी के पोस्टर पर बंदूक चला कर फिर से मारने का अभ्यास करने और उनकी हत्या के बाद जश्न का सुख प्राप्त करने वालों को पुलिस पकड़ नहीं पाई. मगर राज्य की नीतियों की आलोचना करना, समीक्षा करना, अलग राजनीतिक राय रखना अब आपको आतंकवादी, भारत विरोधी बनाने के लिए काफी है. दि प्रिंट की उस ख़बर को भी आपने अनदेखा कर दिया होगा कि खुफिया विभाग ने रिपोर्ट तैयार की है कि अशोका यूनिवर्सिटी, जिन्दल यूनिवर्सिटी और अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में मोदी विरोधी बातें होती हैं.

क्या आपने ऐसा ही भारत चाहा था? क्या आप वाकई चाहते थे कि क्लास रूम में खुफिया विभाग के कैमरे लगे हों? मैं समझ सकता हूं कि आपमें विरोध करने की शक्ति नहीं होगी. आपको डर लगता होगा. कहीं आपको पुलिस न उठा ले. ट्रोल सेना आप पर हमला न कर दे. मैं समझ सकता हूं कि आप इन बातों के विरोध और अपने प्रिय नेता के प्रति आंख बंद कर समर्थन में फर्क नहीं कर पा रहे हैं.

मैं अब भी यकीन करना चाहता हूं कि भारत के लोगों को अपने नागरिक होने के अधिकार से बहुत प्यार होगा. यह नागरिकता किसी देवी देवता से नहीं मिलती है. संविधान से मिलती है. फिर भी जब नागरिकों को इस तरह दुर्बलतम स्थिति में देखता हूं तो दुख होता है. आपका चुप रहना एक एक कर आपको उन अधिकारों से अलग करता जाता है जिसे संविधान ने दिया है. आप ख़ुद को संविधानविहीन बनाते जा रहे हैं.

आगरा के आलू किसानों ने अपनी एक तस्वीर भेजी है. वे अपनी हालत पर जनता और सरकार की नज़र चाहते हैं. यह दृश्य हम सभी की नागरिकता की हार है. क्या राज्य की क्रूरता के प्रति आपका समर्थन इस कदर बढ़ चुका है कि आप अपनी नागरिकता ही दांव पर लगा देना चाहते हैं? क्या आप रेंगना चाहते हैं?

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