विज्ञापन
This Article is From May 18, 2015

अभिषेक शर्मा की कलम से : अरुणा अब तुम सुखी हो

Abhishek Sharma
  • Blogs,
  • Updated:
    मई 18, 2015 18:30 pm IST
    • Published On मई 18, 2015 18:24 pm IST
    • Last Updated On मई 18, 2015 18:30 pm IST
एक अस्पताल,
42 साल,
एक बिस्तर,
और घूरने को सिर्फ चार दीवारी।
वो शून्य में देखती रहती थी।
वो शायद दुनिया की सबसे लंबी खामोशी में चली गई थी।
वो न बोल सकती थी, ना बता सकती थी।

अरुणा जब बिस्तर पर इलाज़ के लिये लेटाई गई तब 24 साल की थी। आज जब वो अंतिम यात्रा पर निकली तो पहली बार बिस्तर से उठ पाई। अरुणा बिस्तर पर ही 67 साल की हो गईं। उन्हें पता ही नहीं चला कि क्या कुछ बदल चुका है इस दुनिया में। अरुणा सिर्फ सांसे ले रही थीं... अहसास तो कब के खत्म हो चुके थे। सिर्फ एक ही अहसास था दर्द का। सारे शब्द, टीवी पर आती सारी तस्वीरें उस दर्द को भला कैसे बयां कर पाएंगी जो अरुणा पिछले 42 साल से झेल रहीं थी।

हम उस अभागे डॉक्टर प्रेमी के पसोपेश को भी कैसे बताएं जो अरुणा के सिरहाने आकर कई बार ठहरा रहा। अरुणा तब भी सुन्न पड़ी रहीं। कैसे देती वो जवाब, क्या बताती किस चीज की सज़ा उसे मिल रही है। 4 साल तक प्रेमी डॉक्टर कोशिश करता रहा कि अरुणा शायद बोल पड़े। और जब लगने लगा कि वो अब कभी नहीं बोलेगी तो अलविदा कह दिया। खामोशी तो सब को सालती है... प्रेमी डॉक्टर ने ब्याह कर लिया।

अरुणा जैसी थी वैसी ही रही।
अकेली और खामोश।
वो डॉक्टर शायद अब 70 साल के होंगे। पता नहीं उन्हें अरुणा की कोई ख़बर मिली या नहीं।
उस परिवार पर क्या लिखूं जो अपनी 24 साल की बेटी-बहन को बिस्तर पर छोड़ गया हमेशा-हमेशा के लिये। उस सिरफिरे सोहनलाल की क्या खोज खबर लूं, जिसने अरुणा को एक गवाही की इतनी बड़ी सजा दे दी। सोहनलाल वॉर्डबॉय था और अरुणा केईएम की नर्स। सोहनलाल की कामचोरी की शिकायत पर हामी भरी थी अरुणा ने। सात साल में वो छूट गया लेकिन अरुणा जिंदगी भर बिस्तर से उठ न पाई।

अरुणा, खामोश जरूर थी लेकिन उसका व्यवहार किसी मर्द की मौजूदगी से बदल जाता था। वो आधी अधूरी सांसों में भी बता देती थी कि उसके आसपास कोई मर्द न फटके।

6 साल पहले हमने केईएम के उस वार्ड में काम करने वाले कई लोगों का इंटरव्यू किया। कुछ को कैमरे के सामने, कुछ को बिना कैमरे के। सोचा था कि कोई तो होगा जो निजात चाहता होगा ऐसे शख्स से जिसका कोई नहीं है, जिससे उनका कोई नाता नहीं है। हमें कोई न मिला। किसी ने नहीं कहा कि छीन लो बची खुची सांसे अरुणा की और दे दो उसे इच्छा मृत्यु।

जब केस सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तब भी लगा कि कोई तो 'तर्क' देगा, कि इस हालत से बेहतर तो मौत है। लेकिन हमे कोई नहीं मिला। खुशी हुई थी तब। हिंदुस्तान के मेडिकल इतिहास और ट्रेनिंग में शायद ही ऐसी कोई कहानी मिले जो किसी अस्पताल में आने वाले हर नए स्टॉफ को बताएं कि जो एक वार्ड में, एक बिस्तर पर लेटी है वो अपनी बेटी है। उसे हमें संभालना है।

अरुणा की कहानी जब-जब लिखने बैठा हूं ...तब तब सवाल करता रहा हूं कि आखिर क्यों और किसलिये भुगत रही थी ये दर्द वो पिछले 4 दशक से। अरुणा की खामोशी का सफर आज खत्म हो गया। वो हमें याद दिलाती रहेगी कि कैसे हमारे बीच ही एक सोहनलाल है...हमारे बीच पसोपेश में पड़ा प्रेमी है... रिश्तेदार हैं। एक लेखिका है जो सच्ची दोस्त है, चाहती है कि मुक्त हो जाए अरुणा सारे दर्द से। और ये भी कि एक अस्पताल का स्टॉफ भी है, बेनाम लोगों का समूह, जो किसी को जिंदा रखने के लिये जी जान लगाने को तैयार था।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
अरुणा शानबाग की मौत, अरुणा शानबाग, अरुणा शानबाग रेप, अरुणा शानबाग कोमा में, Aruna Shanbaug, Aruna Shanbaug Died, King Edward Memorial Hospital, KEM Hospital, अभिषेक शर्मा, Abhishek Sharma
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com