एक फरवरी को मोदी सरकार अपना अंतिम बजट पेश करेगी. चुनाव से सिर्फ दो महीने पहले आने वाला यह बजट अंतरिम होगा. यानी परंपरा के मुताबिक सरकार इसके जरिए चुनाव होकर नई सरकार बनने तक तीन महीनों के लिए होने वाले खर्च का इंतजाम करेगी. परंपरा यह भी है कि जाती हुई सरकार कोई बड़ा नीतिगत ऐलान इस अंतरिम बजट में नहीं करती है. लेकिन सवाल उठ रहा है कि क्या मोदी सरकार परंपरा को ताक पर रखकर इस अंतरिम बजट या वोट ऑन अकाउंट में आने वाले चुनावों के मद्देनजर बड़े ऐलान कर सकती है, ताकि वोटरों को लुभाया जा सके? कुछ ऐसे ऐलान हैं जिनका लंबे समय से इंतजार किया जा रहा है. सरकार के भीतर इन्हें लेकर चर्चा भी है.
बजट में सबसे बड़ा ऐलान आयकर दाताओं को लेकर होने की संभावना जताई जा रही है. कहा जा रहा है कि अंतरिम बजट में आयकर छूट की सीमा ढाई लाख से बढ़ा कर पांच लाख रुपए प्रति वर्ष की जा सकती है. अभी ढाई लाख से पांच लाख रुपए कमाने वालों को पांच फीसदी आयकर देना होता है. यह चर्चा भी है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली इस बजट में पेंशनरों को छूट दे सकते हैं. साथ ही आयकर बचत की सीमा भी बढ़ाई जा सकती है. घर खरीदने के लिए गए कर्ज को लेकर भी आयकर में कुछ और रियायत मिल सकती है.
गौरतलब है कि मध्यम वर्ग टकटकी लगा कर इन तमाम राहतों का पिछले पांच साल इंतजार कर रहा है. उसे लग रहा है कि जाते जाते ही सही, लेकिन मोदी सरकार शायद उसे राहत देकर अपनी वापसी का इंतजाम कर ले. दूसरा बड़ा मुद्दा किसानों को राहत देने का है. तीन राज्यों में सरकार गंवाने के बाद बीजेपी को किसानों की नाराजगी का एहसास हुआ है. प्रधानमंत्री मोदी कर्ज माफी को नाकाफी बता चुके हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि किसानों के लिए कुछ नए ऐलान या तो अंतरिम बजट में या उससे पहले हो सकते हैं. इसमें शून्य ब्याज दर पर कर्ज देना और दो लाख रुपए तक के कर्ज के लिए कुछ भी गिरवी न रखना जैसे उपाय शामिल हैं.
एक विकल्प तेलंगाना के रैयत बंधु या ओडिशा की कालिया योजना की तर्ज पर राहत देना है, जिसमें छोटे और मंझौले किसानों को प्रति एकड़ प्रति फसल के हिसाब से बीज-खाद वगैरह के लिए तयशुदा रकम दी जाती है. बेरोजगारों के लिए भी कोई बड़ा ऐलान संभव है. लेकिन इन तमाम संभावनओं के बीच सवाल है कि क्या मोदी सरकार वाकई खजाना खोल पाएगी? खुद सरकार ने ही वित्तीय घाटे का लक्ष्य 3.3% रखा है. जीएसटी में कलेक्शन उम्मीद से कम है. सरकारी कंपनियां भी नहीं बिक पाईं. ऐसे में इस लक्ष्य को पूरा करना चुनौती है. एक तरफ परंपरा कायम रखने की चुनौती है तो दूसरी तरफ सत्ता में वापसी का लक्ष्य. बीजेपी के कई नेता कहने लगे हैं कि खजाना भरने से क्या फायदा अगर कोई दूसरी सरकार आकर उसे लुटाए. इससे अच्छा है आप खजाना लुटा कर फिर सत्ता में आएं.
वैसे बता दूं कि चुनावी साल में अंतरिम बजट में लुभावने ऐलान से पिछली सरकार बचती रही हैं लेकिन कुछ अपवाद भी हैं. 2014 में तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने नीतिगत ऐलान नहीं किए थे, लेकिन कुछ सामानों पर टैक्स में कटौती की थी. 2009 में तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने परंपरा का हवाला देकर कोई ऐलान नहीं किया था, लेकिन तब किसानों की कर्ज माफी का फैसला हो चुका था. 2004 में तत्कालीन वित्त मंत्री जसवंत सिंह ने कुछ सरकारी योजनाओं का दायरा बढ़ा दिया था और हवाई अड्डों पर फ्री बैगेज अलाउंस बढ़ा कर उन पर कस्टम ड्यूटी कम कर दी थी.
(अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)
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