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नीतीश कुमार की सत्ता की चाबी तेजस्वी ने ढूंढ तो ली पर क्या खोल पाएंगे अपनी किस्मत का ताला?

एनडीए ने इस बार भी महागठबंधन के मुकाबले ज्यादा संख्या में महिला उम्मीदवार उतारे हैं. पिछली बार एनडीए ने 37 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था.

नीतीश कुमार की सत्ता की चाबी तेजस्वी ने ढूंढ तो ली पर क्या खोल पाएंगे अपनी किस्मत का ताला?
  • बिहार में महिला मतदाताओं का मतदान प्रतिशत पिछले तीन विधानसभा चुनावों में लगातार बढ़ता रहा है.
  • जेडीयू ने महिला उम्मीदवारों को अधिक टिकट देकर महिला राजनीतिक सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया और सफल प्रदर्शन किया है.
  • महागठबंधन ने महिला उम्मीदवारों की संख्या बढ़ाई है और योजनाएं घोषित कर वोट बैंक मजबूत करने का प्रयास किया है.
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पटना:

बिहार की राजनीति में महिला मतदाताओं की भूमिका लगातार बढ़ती जा रही है. राज्य में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की मतदान संख्या अधिक रहती है, और यही कारण है कि राजनीतिक दल अब महिला वोटरों को साधने के लिए विशेष रणनीतियों का सहारा ले रहे हैं. 2010, 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों के आंकड़े साफ बताते हैं कि महिला मतदाता न केवल मतदान में अधिक सक्रिय हैं, बल्कि उनके वोटों का असर चुनाव परिणामों पर भी प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देता है.

नीतीश कुमार ने चला था दांव

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यदि पिछले चुनावों के आंकड़ों पर गौर करें, तो जेडीयू ने महिला उम्मीदवारों को टिकट देने में लगातार सक्रिय भूमिका निभाई है. 2010 के चुनाव में जेडीयू ने 24 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, जिनमें से 22 महिलाएं चुनाव जीतने में सफल रहीं. यह जेडीयू के लिए उस समय एक बड़ी सफलता थी, क्योंकि इसने महिला राजनीतिक प्रतिनिधित्व को बढ़ावा दिया और पार्टी के महिला सशक्तीकरण एजेंडा को मजबूती दी. 2015 में जेडीयू ने 10 महिलाओं को टिकट दिया, जिनमें से 9 जीत गईं. जबकि राजद ने 10 महिलाओं को मैदान में उतारा, जिनमें सभी 10 ने जीत हासिल की. 2020 के चुनावों में जेडीयू ने 22 महिलाओं को टिकट दिया, लेकिन केवल 6 उम्मीदवार ही सफल रहीं. वहीं, राजद ने 16 महिलाओं को टिकट दिया, जिनमें से 7 जीत पाईं. ये आंकड़े साफ बताते हैं कि जेडीयू ने हमेशा महिला उम्मीदवारों को उतारने की नीति अपनाई है, जबकि राजद ने इसे अपने राजनीतिक रणनीति में उतनी प्राथमिकता नहीं दी.

पुरुषों की तुलना में ज्यादा वोट दिए

महिला मतदाता इस चुनाव में निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं. बिहार में कुल मतदाताओं की संख्या लगभग 7 करोड़ 42 लाख है, जिसमें 3 करोड़ 49 लाख 82 हजार महिलाएं शामिल हैं. आंकड़े बताते हैं कि पिछले तीन विधानसभा चुनावों में हर बार महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में अधिक वोट डाले हैं. 2010 में महिलाओं की वोटिंग दर 54.49% थी, जबकि पुरुषों की 51.12% रही. 2015 में महिलाओं की वोटिंग दर बढ़कर 60.48% हो गई, जबकि पुरुषों की 53.32% ही रहीं. 2020 में भी महिलाएं 59.69% मतदान के साथ पुरुषों (54.45%) से आगे रहीं. इस बढ़ती हुई हिस्सेदारी के कारण महिला मतदाता हर राजनीतिक दल के लिए निर्णायक बन गई हैं.

नीतीश कुमार की योजनाओं का असर

नीतीश कुमार के नेतृत्व में जेडीयू ने महिला मतदाताओं को लंबे समय से साधने की नीति अपनाई. 2005 के बाद सरकार बनाने के साथ ही जेडीयू ने पंचायती राज में 50% आरक्षण लागू किया. इसके अलावा, स्कूल जाने वाली लड़कियों को साइकिल देने, दसवीं और बारहवीं पास करने पर प्रोत्साहन राशि देने जैसी योजनाओं की घोषणा की गई. महिलाओं के लिए शराबबंदी का निर्णय भी इसी श्रेणी में आता है. इन नीतियों ने महिला मतदाताओं को नीतीश कुमार के साथ जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और पार्टी को उनका स्थायी समर्थन दिलाने में मदद की.

तेजस्वी ने इस बार ढूंढी सत्ता की चाबी 

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महागठबंधन इस बार महिला मतदाताओं के प्रति और भी संवेदनशील दिख रहा है. पिछले चुनावों में महागठबंधन ने 24 महिलाओं को टिकट दिया था, जिनमें से केवल 9 जीत पाईं. इस बार गठबंधन ने महिला उम्मीदवारों की संख्या बढ़ाकर 33 कर दी है. इसका मुख्य उद्देश्य नीतीश कुमार के कोर वोट-बैंक में सेंधमारी करना है. इसके लिए गठबंधन ने महिला मतदाताओं के लिए वित्तीय योजनाओं की घोषणा भी की है. इनमें महिलाओं के बैंक-खातों में ढाई हजार रुपए प्रति माह भेजने, भूमिहीन परिवारों में जमीन का अधिकार महिलाओं को देने जैसी योजनाएं शामिल हैं.

एनडीए इस बार भी भारी 

एनडीए ने इस बार भी महागठबंधन के मुकाबले ज्यादा संख्या में महिला उम्मीदवार उतारे हैं. पिछली बार एनडीए ने 37 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जिनमें से 17 जीत पाईं. इस बार एनडीए ने 35 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. एनडीए का मकसद स्पष्ट है- महिला मतदाताओं को अपने पक्ष में बनाए रखना. जेडीयू और एनडीए दोनों ही गठबंधन जानते हैं कि बिहार में महिला मतदाता किसी भी दल की जीत या हार में निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं.

पिछली बार महिलाओं ने जिताया 

पिछले चुनावों के आंकड़े यह भी बताते हैं कि जब महिला मतदाता उच्च मतदान प्रतिशत के साथ सक्रिय हुईं, तो एनडीए को फायदा हुआ. उदाहरण के तौर पर, 2020 के पहले चरण में पुरुषों की वोटिंग दर महिलाओं से अधिक थी और महागठबंधन ने 71 में से 47 सीटें जीत ली. दूसरे चरण में महिलाओं ने अधिक वोट डाला, लेकिन महागठबंधन केवल 42 सीटें ही जीत पाया. तीसरे चरण में महिलाओं के वोट प्रतिशत में गिरावट आई और एनडीए को 78 में से 52 सीटें मिलीं. इसका साफ संदेश यह है कि महिला मतदाता बिहार की राजनीति में निर्णायक हैं. इस बार दोनों ही गठबंधन महिला उम्मीदवारों की संख्या बढ़ाकर और महिलाओं के लिए विशेष योजनाएं लागू करके इस वर्ग को अपने पक्ष में लाने का प्रयास कर रहे हैं. यह देखना रोचक होगा कि आगामी विधानसभा चुनाव में महिला मतदाता किस गठबंधन के साथ अपने मत से जुड़ती हैं?
 

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