
- प्रेमानंद महाराज किडनी की बीमारी से पीड़ित हैं और डायलिसिस पर हैं, उनकी तबीयत वर्तमान में खराब बताई जा रही है.
- उनका जन्म कानपुर देहात के सरसौल क्षेत्र के अखरी गांव में हुआ था, असली नाम अनिरुद्ध कुमार पांडेय था.
- प्रेमानंद महाराज के लिए ब्रजवासी तीर्थ पुरोहितों ने बांके बिहारी मंदिर में विशेष पूजा अर्चना की है.
प्रेमानंद महाराज की सेहत को लेकर कई तरह की चर्चा है. हालांकि, आश्रम की तरफ से लगातार उन्हें स्वस्थ बताया जा रहा है, मगर फिर भी भक्त उनके लिए चिंतित हैं, रो रहे हैं. उनके वीडियो आते ही हर किसी की आंखें छलक जा रही हैं. हर कोई बस एक ही चीज मांग रहा है कि राधारानी उन्हें जल्द सेहतमंद कर दें और वो फिर से लोगों की शंका को दूर कर भक्ति मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करें. वर्षों से किडनी की बीमारी से जूझ रहे प्रेमानंद महाराज डायलिसिस पर ही अपना जीवन जी रहे हैं. एक बार प्रवचन देते हुए खुद प्रेमानंद महाराज ने खुद बताया था कि वृंदावन में ही जब वो आए तो एक आश्रम में रहने लगे. मगर किसी तरह महंत जी को पता चला कि उनकी किडनी खराब है तो उन्होंने तुरंत प्रेमानंद जी को आश्रम छोड़कर जाने को कह दिया कि कहीं उनके आश्रम में ही प्रेमानंद जी को कुछ न हो जाए. प्रेमानंद जी ने बताया था कि उस समय उनके पास सिर छुपाने की भी जगह नहीं थी, मगर राधारानी की कृपा ऐसी हुई कि अब कोई कष्ट नहीं.
प्रेमानंद जी महाराज की अब कैसी है सेहत
मगर, प्रेमानंद महाराज की तबीयत इन दिनों खराब बताई जा रही है. उन्होंने कुंज की गलियों में तड़के-तड़के अपनी प्रभात फेरी भी अनिश्चत काल के लिए बंद कर रखी है. मंगलवार को मथुरा के एक लैब में सिटी स्कैन करवाने के लिए प्रेमानंद जी महाराज पहुंचे. बताया जा रहा कि प्रेमानंद महाराज के पेट में सूजन आने पर डॉक्टरों ने उन्हें सीटी स्कैन कराने की सलाह दी थी. प्रेमानंद महाराज के शिष्य साधक तब उन्हें बिरला मंदिर के समीप एक पैथोलॉजी ले गए, जहां उनकी जांच की गई. अभी तक जांच की रिपोर्ट के बारे में पता नहीं लग सका है. प्रेमानंद महाराज के शिष्य परिकर का कहना है कि प्रेमानंद महाराज एक रूटीन चेकअप करवाने गए थे. चेकअप करवाने के बाद प्रेमानंद महाराज के शिष्य परिकर बांके बिहारी मंदिर पहुंचे. वहां प्रेमानंद महाराज के स्वास्थ्य के लिए ब्रजवासी तीर्थ पुरोहित पंडा सभा ने बांके बिहारी मंदिर में पूजा अर्चना की. बांके बिहारी जी की गर्भ गृह की देहरी पर इत्र पूजन लगभग आधे घंटे तक मंत्रों के बीच चला.
इस बीच अभी दो घंटे पहले एक वीडियो फेसबुक पर आया है. यह वीडियो प्रेमानंद जी महाराज के सत्संग पोस्ट करने वाली आईडी भजन मार्ग की तरफ से पोस्ट किया गया है. इसमें प्रेमानंद जी महाराज भावुक हो गए हैं. उनकी आंखों से मोतियों जैसे आंसू निकल रहे हैं. पीछे से प्रेमानंद जी महाराज की आवाज आती है और वो कहते हैं... इसे शायद इश्क कहते हैं. इस वीडियो में उनके आंसू पोछने वाले भी कोई और नहीं साक्षात कृष्ण की वेष धारण किए एक बृजवासी हैं, जो खुद भी प्रेमानंद जी महाराज के आंसूओं को देख द्रवित हो गए हैं.
कौन हैं प्रेमानंद महाराज

प्रेमानंद महाराज का जन्मस्थान कानपुर है. कानपुर देहात के सरसौल क्षेत्र के अखरी गांव में प्रेमानंद महाराज पैदा हुए थे. प्रेमानंद महाराज का असली नाम अनिरुद्ध कुमार पांडेय थे. उनकी मां रामा देवी और पिता शंभू पांडे थे और उनका परिवार खेती करता था. प्रेमानंद के एक भाई संस्कृत के प्रखर विद्वान थे. उनके सानिध्य में ही प्रेमानंद महाराज का धर्म आध्यात्म की ओर झुकाव हो गया और श्रीमद्भागवत का पाठ उन्होंने प्रारंभ कर दिया. हनुमान चालीसा का भी वो अनगिनत बार पाठ करते थे.एक बार प्रेमानंद महाराज ने अपने भक्तों को बताया था कि वो अपने पिता को भैया बोलते थे. तो जब उनका मन संसार से उचट गया तो वो बोले-भैया मेरा मन अब यहां नहीं लगता. मुझे संन्यासी बनना है. अगर आप रोकेंगे तो भी मैं नहीं रुकूंगा. उनके पिता ने ये बात सुनकर कहा कि जाओ मगर अपना ध्यान रखना.
13 साल में बन गए संन्यासी

प्रेमानंद महाराज ने 13 वर्ष की अवस्था में पहली बार दीक्षा ग्रहण की. तब उनका नाम अनिरुद्ध पांडे से आर्यन ब्रह्मचारी पड़ा. ये बात भी कही जाती है कि उनके दादाजी ने भी संन्यास ग्रहण किया था. फिर राधा राधवल्लभी संप्रदाय में प्रेमानंद महाराज ने संन्यास के साथ दीक्षा ग्रहण की. यहीं से उनका नाम अनिरुद्ध पांडे के स्थान पर आनंदस्वरूप ब्रह्मचारी पड़ा. मथुरा वृंदावन में प्रवास से पहले प्रेमानंद ज्ञानमार्ग शाखा से जुड़े थे. फिर साधु-संतों की सलाह पर उन्होंने श्रीकृष्ण रासलीला देखी और फिर वो भक्ति मार्गी परंपरा के अगाध उपासक बन गए.
काशी से वृंदावन तक का सफर
प्रेमानंद महाराज घर परिवार की मोह माया से निकलने के बाद संन्यास के शुरुआती दौर में अत्यंत विचलित रहे. वो कुछ वक्त तक सरसौल के ही नंदेश्वर धाम में रहे. फिर भूख प्यास और भटकाव के बाद मोक्ष नगरी काशी पहुंचे. कहा जाता है कि यहीं गंगा किनारे स्नान ध्यान और तुलसी घाट पर पूजा अर्चना ही उनकी दिनचर्या बन गई. भीख में मिले भोजन से वो जिंदगी बिताने लगे. प्रेमानंद तुलसी घाट पर पीपल के वृक्ष के नीचे भगवान शिव की उपासना और तप में लीन रहते थे. वाराणसी में ही हनुमान संस्कृत महाविद्यालय में चैतन्य लीला और रासलीला देख वो भाव विभोर हो गए. यहीं से उनका हृदय राधा कृष्ण भक्ति के लिए हिलोरे मारने लगा. इसी बेचैनी में वो वाराणसी से मथुरा वृंदावन आ गए.
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