
- सुधानी मध्य विद्यालय में शिक्षकों ने स्कूल को ट्रेन के डिब्बे के रंग में रंगकर बच्चों की रुचि बढ़ाई.
- शिक्षकों ने स्कूल को बोरिंग समझने वाले बच्चों को आकर्षित करने के लिए क्लासरूम को रंगीन और आकर्षक बनाया.
- पहले बच्चे खेतों में काम करने या घरेलू कार्यों में लगे रहते थे, जिससे स्कूल की उपस्थिति कम थी.
शिक्षक दिवस के खास मौके पर बिहार के कटिहार से एक अनोखी कहानी सामने सामने आई है. ये कहानी है शिक्षकों के उस सोच की जिसने ना सिर्फ बच्चों का ध्यान पढ़ाई की तरफ आकर्षित किया बल्कि स्कूल को एक ऐसी जगह बना दिया है जहां बच्चे अब बोर नहीं होते. कटिहार के सुधानी मध्य विद्यालय की चर्चा अब हर तरफ हो रही है. इलाके के दूसरे स्कूल भी अब इस तरीके को आजमाने की कोशिशों में जुट गए हैं. इस स्कूल के शिक्षकों की अनोखी सोच ने स्कूल के प्रति छात्रों के नजरिए को पूरी तरह से बदलकर रख दिया है.

दरअसल, कुछ समय पहले तक सुधानी के स्कूल में पढ़ने आने वाले छात्रों की संख्या की आज की तुलना में काफी कम थी. जब शिक्षकों ने इसकी वजह जानने की कोशिश की तो पता चला कि छात्र स्कूल को एक बोरिंग जगह समझने लगे हैं. जहां आकर उनका पढ़ने का मन ही नहीं करता. शिक्षकों को जैसे ही इस बात का पता लगा तो उन्होंने ऐसा कुछ करने की कोशिश की जिससे की छात्रों को स्कूल तक लाया जा सके.
काम आई स्कूल को ट्रेन का डिब्बे के रंग में रंगने की तरकीब
NDTV ने जब इस स्कूल के शिक्षकों से बात की तो पता चला कि कुछ समय पहले तक इस स्कूल में ज्यादातर क्लास खाली ही रहती थी. ऐसे में बच्चों को स्कूल तक लाना एक बड़ी चुनौती की तरह था. फिर स्कूल मैनेजमेंट ने तय किया कि स्कूल में बने क्लास को ट्रेन के डिब्बों की तरह रंग दिया जाए ताकि बच्चों को लगे कि वो स्कूल में नहीं, किसी ट्रेन के डिब्बे में बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं. शिक्षकों की ये तरकीब काम आई और एकाएक बच्चों में स्कूल आने की रुचि बढ़ने लगी. अब आलम कुछ यूं है कि स्कूल में सभी बच्चे समय पर आते हैं. हर दिन उत्साह में पढ़ाई करते हैं और छुट्टी कोई नहीं करता.

पहले स्कूल छोड़ खेतों में काम करने चले जाते थे बच्चे
जब तक स्कूल में बने क्लासरूम को ट्रेन के डिब्बे के रूप में पेंट नहीं किया गया था उससे पहले यहां पढ़ने वाले बच्चे अपने अभिभावक से साथ या तो खेत में काम करने चले जाते थे या वो घरेलू कामों में लगे रहते थे. कोई भी स्कूल आने को तैयार नहीं होता था. बच्चे खुद कहते हैं कि अब वे किताबों के बीच नहीं, बल्कि ट्रेन की बोगी में बैठकर पढ़ते हैं. यही वजह है कि छुट्टी के दिन भी उन्हें स्कूल की कमी खलती है. इस पहल से न सिर्फ बच्चों की उपस्थिति बढ़ी है, बल्कि उनकी पढ़ाई के प्रति रुचि भी दोगुनी हो गई है.
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