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Exclusive: मैं कोई शाहरुख खान नहीं जो मुझे...बिहार चुनाव के बीच ऐसा क्यों बोले मुकेश सहनी

बिहार चुनाव के दूसरे और अंतिम चरण में राज्य के 20 जिलों की 122 सीट पर होने वाले मतदान के लिए प्रचार रविवार शाम पांच बजे थम जाएगा. इससे पहले वीआईपी के मुकेश सहनी ने एनडीटीवी संग एक्सक्लूसिव बातचीत की.

  • बिहार चुनाव में महागठबंधन की जीत पर विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश सहनी उपमुख्यमंत्री होंगे
  • मुकेश सहनी ने कहा कि वे मल्लाह समाज के साथ निषाद, केवट और बिंद उपजातियों का भी प्रतिनिधित्व करते हैं
  • VIP ने शुरुआत में 60 सीटों की मांग और उपमुख्यमंत्री पद की दावेदारी की थी जो बाद में घटकर 15 सीटें हुईं
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कटिहार:

बिहार चुनाव में अगर महागठबंधन की जीत होती है तो विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के संस्थापक मुकेश सहनी उपमुख्यमंत्री होंगे. बिहार में पहले चरण का मतदान हो चुका है, जिसमें लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. नतीजतन रिकॉर्ड वोटिंग हुई. इस बीच जब दूसरे चरण के मतदान में कुछ ही दिन बचे हैं तो महागठबंधन में शामिल VIP के मुकेश सहनी ने एनडीटीवी की सीनियर जर्नलिस्ट सिक्ता देव से खास बातचीत की. कटिहार से विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख मुकेश सहनी ने पार्टी की रणनीति से लेकर जातीय समीकरणों तक क्या कुछ कहा, जानिए

शाहरुख का नाम लेकर क्या बोले मुकेश सहनी

मुकेश सहनी ने कहा, "मैं कोई शाहरुख तो नहीं हूं, लेकिन लोग मुझे इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें मुझ पर भरोसा है." उन्होंने यह भी कहा कि, "मैं मल्लाह का बेटा जरूर हूं, लेकिन आज पूरे निषाद समाज का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं. केवल मल्लाह ही नहीं, बल्कि केवट, बिंद और अन्य उपजातियां भी हमारे साथ हैं." राजनीतिक समीकरणों पर बात करते हुए सहनी ने कहा, "मैंने अपने भाई को इसलिए बिठा दिया क्योंकि मुझे बंटवारा नहीं चाहिए था. हमारा मकसद समाज को जोड़ना है, तोड़ना नहीं."

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महागठबंधन में मुकेश सहनी के क्या मायने

बिहार की राजनीति में इस बार सीटों का गणित जितना पेचीदा रहा, उतना ही दिलचस्प भी था. इसमें सबसे ज़्यादा सुर्ख़ियों में रहे मुकेश सहनी और उनकी पार्टी विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी). जी हां, महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे का पूरा खेल आखिर तक इसलिए फंसा रहा क्योंकि मुकेश साहनी अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पर अडिग थे. मुकेश साहनी ने शुरुआत में 60 सीटों की मांग रख दी थी. साथ ही उन्होंने उपमुख्यमंत्री पद की भी दावेदारी ठोक दी. शुरू में यह मांग न तो राष्ट्रीय जनता दल को रास आई, न कांग्रेस को. मगर कई दौर की बैठकों, फोन कॉल्स और दिल्ली से लेकर पटना तक चली बैठकों के बाद सरकार बनने पर मुकेश साहनी को डिप्टी सीएम के पद का वादा कर दिया गया.

क्यों आखिर तक चला मान-मनौव्वल का दौर

सीटों को लेकर वीआईपी के भीतर भी जोरदार ड्रामा चला. महागठबंधन के लिए यह संकेत था कि सहनी की नाराज़गी किसी भी वक़्त बड़े संकट में बदल सकती है. ऐसे में  नामांकन की अंतिम तारीख के ठीक पहले यानी 16 अक्टूबर की देर रात महागठबंधन के शीर्ष नेताओं ने वीआईपी के साथ समझौते का फ़ॉर्मूला तय किया.  आख़िरकार तेजस्वी यादव और कांग्रेस आलाकमान के बीच हुई बातचीत के बाद यह तय हुआ कि वीआईपी को 15 सीटें दी जाएंगी. साथ ही वादा किया गया कि भविष्य में एमएलसी और राज्यसभा सीटों पर उन्हें प्राथमिकता दी जाएगी. इस समझौते के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस की नौबत नहीं आई और वीआईपी ने गठबंधन में बने रहने का ऐलान कर दिया.

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महागठबंधन ने क्यों सहे सहनी के नखरे

सवाल यह है कि मुकेश साहनी की पार्टी के इतने “नखरे” महागठबंधन ने क्यों सहे? दरअसल, बिहार की राजनीति में निषाद यानी मछुआरा-नाविक समुदाय लगभग 6-7% वोटों पर प्रभाव रखता है और साहनी खुद को इस समुदाय का “राजनीतिक चेहरा” बनाकर पेश करते हैं. इसके अलावा पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग के बीच उनकी पकड़ भी कुछ इलाकों में प्रभावी मानी जाती है. यही वजह रही कि RJD और कांग्रेस दोनों ही सहनी को किसी हाल नाराज़ करने का जोखिम नहीं उठा सके. उन्हें पता था कि यदि वीआईपी गठबंधन से बाहर गया तो उसके वोट सीधे एनडीए के खाते में जा सकते हैं और यह नुकसान महागठबंधन के लिए निर्णायक साबित हो सकता है.

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