- बिहार विधानसभा चुनाव में महिला मतदाताओं का मतदान परिणाम सबसे निर्णायक भूमिका निभा सकता है.
- NDA ने जीविका दीदी योजना के तहत महिलाओं को दस हजार रुपये देने का वादा पूरा किया है.
- महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव ने महिलाओं को एकमुश्त तीस हजार रुपये देने का चुनावी वादा किया है.
Bihar Assembly Elections 2025: बिहार चुनाव में महिला वोट शायद सबसे निर्णायक होगा. एक तरफ NDA ने जीविका दीदी योजना के तहत महिलाओं को दस हजार देने का वादा किया है तो दूसरी तरफ तेजस्वी यादव ने वादा किया है कि वो जीते तो 14 जनवरी को महिलाओं को माता-बहिन योजना के तहत मिलने वाला सारे 30 हजार रुपये एकमुश्त दे देंगे. बगल का राज्य है झारखंड जहां ऐसी ही एक योजना ने JMM को चुनाव में काफी मदद पहुंचाई थी. JMM ने बिहार में चुनाव लड़ने की तैयारी की थी. लेकिन अंतिम समय तक गठबंधन नहीं हो पाने के कारण जेएमएम ने चुनाव लड़ने का मुड बदल दिया.
झारखंड में क्या हुआ था?
झारखंड में सोरेन सरकार ने चुनाव से पहले मइयां सम्मान योजना का ऐलान किया, जिसके तहत महिलाओं को 1000-1000 रुपये देने का ऐलान किया गया. लेकिन इसके बाद BJP ने 'गोगो दीदी योजना' के तहत 2100 रुपये देने का ऐलान किया. लेकिन अक्टूबर 2024 में चुनाव से महज दो दिन पहले हेमंत सोरेन सरकार ने मईयां सम्मान योजना के तहत मिलने वाली राशि को बढ़ाकर 2,500 रुपये कर दिया. ठीक उसी तरह जैसे तेजस्वी ने बीजेपी से कहीं ज्यादा 30,000 रुपये देने का वादा किया है.

इस हिसाब से देखें तो तेजस्वी ने चतुराई का काम किया है लेकिन दो बातें हैं जिनका ख्याल रखना चाहिए. पहला, झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार सत्ता में थी और बिहार में एनडीए की सरकार है. NDA की सरकार ने 10,000 हजार रुपये डेढ़ करोड़ महिलाओं के खाते में दे भी दिए हैं.
आगे जीविका दीदी के काम का मूल्याकंन कर 50,000 और 2 लाख देने का भी वादा है. वैसे ही जैसे सोरेन सरकार पहले ही महिलाओं के लिए कई योजनाएं चला रही थी. योजनाओं के अमल से महिलाओं को सरकार पर भरोसा था. दूसरी बात, हेमंत सोरेन की जीत में कल्पना सोरेन ने बड़ी भूमिका निभाई.

घाटशिला में हो रहे विधानसभा उपचुनाव में कल्पना सोरेन प्रचार अभियान संभाल रही हैं.
कल्पना सोरेन की भूमिका
महिला वोटों के लिए कल्पना बड़ा चेहरा बनकर उभरीं. तब हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद कल्पना ने धुआंधार काम किया. राजनीति में उनका डेब्यू अचानक हुआ लेकिन जिस अंदाज में उन्होंने कमान संभाली वो विरोधियों को हतप्रभ कर गया.
वो ये संदेश आदिवासी मतदाताओं तक पहुंचाने में कामयाब रहीं कि उनके नेता हेमंत सोरेन को केंद्रीय एजेंसियों बिना वजह परेशान कर रही हैं. वो जेएमएम के लिए सहानुभूति जुटाने में कामयाब रहीं. आज आलम ये है कि अगर आगे भी हेमंत सोरेन किसी विवाद में फंसते हैं तो कल्पना के रूप में जेएमएम के पास एक पुख्ता चेहरा है.

महागठबंधन माइनस JMM का असर
वैसे तो JMM महागठबंधन का हिस्सा थी लेकिन सीट बंटवारे के मुद्दे पर बात नहीं बनी. पहले जेएमएम ने अकेले लड़ने का ऐलान किया लेकिन बाद में चुनाव मैदान से बाहर गई. पहली नजर में लग सकता है कि इससे महागठबंधन को फायदा हुआ, क्योंकि वोट नहीं बंटेंगे. लेकिन इसके भी दो पहलू हैं.
एक, महागठबंधन की एकजुटता के लिहाज से अच्छा मैसेज नहीं गया. आने वाले चुनावों में इसका फलीभूत दिख सकता है. दूसरा, अगर JMM बिहार चुनाव में महागठबंधन का हिस्सा होती तो कल्पना सोरेन एक स्टार प्रचारक हो सकती थीं. तेजस्वी ने महिलाओं के लिए जो वादा किया है, इसे कल्पना चुनावी मंचों से बतातीं तो उसका अलग ही असर होता.
यह भी पढ़ें - बिहार में महिलाओं ने 'खेला' कर दिया? समझिए बंपर वोटिंग किसके लिए गुड न्यूज है
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं