- झुंझुनूं के 2 लोगों को थाईलैंड में डाटा एंट्री ऑपरेटर की नौकरी का झांसा देकर साइबर ठगी कैंप में ले जाया गया था
- म्यांमार के केके पार्क में चाइनीज कंपनियों द्वारा चलाए जा रहे साइबर ठगी कैंप में युवकों से जबरन काम कराया गया
- साइबर ठगी के काम से इनकार करने पर युवकों को टॉर्चर किया जाता है, मारपीट होती है और जेल में डाल दिया जाता है
विदेश में मोटी तनख्वाह और शानदार जीवन का सपना लेकर थाईलैंड पहुंचे झुंझुनूं जिले के दो युवक जब वापस लौटे तो उनकी आंखों में केवल डर, पीड़ा और वो मंजर है जो थर्ड डिग्री टॉर्चर से कहीं ज्यादा थ. यह कहानी है झुंझुनूं जिले के पौंख निवासी अक्षय मीणा और मणकसास निवासी शैलेष मीणा की. जो थाईलैंड और म्यांमार की सीमा पर स्थित अवैध साइबर कैंप से जान बचाकर लौटे हैं. दोनों युवकों को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म टेलीग्राम पर डाटा एंट्री ऑपरेटर की नौकरी और 80 हजार रुपए मासिक वेतन का ऑफर मिला था. एजेंटों ने उन्हें भरोसा दिलाया कि वीजा और टिकट फ्री रहेंगे. लालच में आकर दोनों युवक अगस्त महीने में दिल्ली से बैंकॉक के लिए रवाना हो गए. लेकिन वहां पहुंचते ही उनके सपने बिखर गए, क्योंकि उन्हें थाईलैंड से म्यांमार बॉर्डर पर अवैध साइबर ठगी कैंपों में ले जाया गया. जहां से उनका भयावह सफर शुरू हुआ. पढ़िए ये रिपोर्ट

विदेश में नौकरी के लालच में बुरे फंसे
म्यांमार से जान बचाकर लौटे अक्षय व शैलेष ने बताया कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म टेलीग्राम पर उन्हें तीन महीने पहले थाईलैंड में डाटा एंट्री ऑपरेटर की नौकरी व 80 हजार रुपए तनख्वाह का लिंक मिला था. इस लिंक पर क्लिक करने पर जरूरी जानकारी मांगी गई. यह जानकारी भरने के बाद उनके पास एजेंट का कॉल आया. एजेंट ने अच्छी नाैकरी व अच्छी पगार का झांसा दिया. साथ ही वहां ले जाने के लिए वीजा व हवाई टिकट फ्री होने की बात कही. इसलिए दोनों को भरोसा हो गया. करीब दो माह पहले अगस्त में दोनों को दिल्ली से थाईलैंड ले जाया गया. वहां पहुंचने के बाद दोनों को बताया गया कि उन्हें गाड़ी से थाईलैंड के एक अन्य शहर ले जाया जा रहा है. लेकिन रास्ते में जंगलों से होते हुए थाईलैंड बॉर्डर पर म्यांमार के केके पार्क ले गए. वहां पर उन्हें साइबर ठगी के काम की ट्रेनिंग दी गई.
किया जाता था टॉर्चर
जब युवकों ने इस काम से इनकार किया तो उन्हें टॉर्चर किया जाने लगा. इंटरनेट के माध्यम से विदेशी नागरिकों से ऑनलाइन ठगी करने को मजबूर किया गया. यह काम फर्जी निवेश वेबसाइट्स, लॉटरी, ऑनलाइन डेटिंग और क्रिप्टो करेंसी के नाम पर करवाया गया. म्यांमार के केके पार्क में चाइनीज कंपनियों द्वारा साइबर ठगी के कैंप चलाए जाते हैं, जहां भारत समेत कई देशों के हजारों लोग जबरन काम करने को मजबूर हैं. जो विरोध करता है, उसे मारपीट कर जेल में डाल दिया जाता है या एजेंटों के माध्यम से 4-5 लाख रुपए में बेच दिया जाता है. करीब 15 दिन पहले कंपनी के अंदर गोलीबारी और बमबारी की घटना हुई, जिसके बाद भगदड़ मच गई. कुछ युवक बॉर्डर पार कर थाईलैंड पहुंच गए. वहीं कुछ को स्थानीय माओवादियों ने मार डाला. शैलेष मीणा और अक्षय मीणा किसी तरह जान बचाकर थाईलैंड पहुंचने में सफल रहे.
हजारों युवा विदेशों में फंसे
इसके बाद भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा 500 से अधिक फंसे भारतीय युवकों को थाईलैंड से भारत लाया गया. इन दोनों युवकों को भी वापस लाकर जयपुर साइबर सेल को सौंपा गया. एसपी के निर्देश पर एसआई भींवाराम दोनों युवकों को जयपुर से लेकर गुढ़ागौड़जी पहुंचे. मेडिकल जांच और दस्तावेजी कार्रवाई के बाद उन्हें परिजनों को सौंप दिया गया. गुढ़ा थाने के सब इंस्पेक्टर भींवाराम ने बताया कि पौंख गांव के अक्षय तथा मणकसास गांव के शैलेष को थाईलैंड से देश में लाया गया और गृह मंत्रालय ने दोनों युवकों को जयपुर साइबर सेल को सौंपा गया. थाईलैंड में डाटा एंट्री ऑपरेटर की नौकरी और मोटी तनख्वाह के झांसे में आकर देश के दो हजार से अधिक युवा थाईलैंड व म्यांमार की सीमा पर स्थित अवैध कैंपों में फंसे हुए हैं.
विदेश में नौकरी का लालच महंगा
इन युवाओं से वहां पर जबरन साइबर ठगी का काम करवाया जा रहा है. यह काम करने से मना करने पर मारपीट की जाती है, इलेक्ट्रिक शॉक दिया जाता है. कई दिन तक भोजन भी नहीं दिया जाता, ऐसे में मजबूरन साइबर फ्रॉड का काम करना पड़ रहा है. थाईलैंड और म्यांमार की सीमा से लौटे इन दो युवकों की कहानी हर उस भारतीय के लिए सबक है, जो बिना जांच-पड़ताल किए विदेश में नौकरी के सपने देखता है. झांसे में आएं नहीं, वरना सपना बन सकता है जानलेवा जाल.
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