- महुआ विधानसभा सीट पर एलजेपी (राम विलास) के उम्मीदवार संजय कुमार सिंह ने विजयी होकर 87641 वोट हासिल किए हैं
- तेज प्रताप यादव तीसरे स्थान पर रहे और उन्हें केवल 35703 वोट मिले, जिससे उनकी जमानत पर सवाल उठ रहे हैं
- आरजेडी के उम्मीदवार मुकेश कुमार रौशन दूसरे स्थान पर रहे और उन्हें 42644 वोट प्राप्त हुए हैं
Mahua Assembly Seat Result : महुआ विधानसभा सीट एलजेपी (राम विलास) के उम्मीदवार संजय कुमार सिंह ने जीती है. काउंटिंग के दौरान इस सीट पर काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिला. ऐसा माना जा रहा था कि तेज प्रताप यादव यहां कड़ी टक्कर देंगे, लेकिन वह तीसरे स्थान पर रहे और उन्हें सिर्फ 35703 वोट मिले. संजय कुमार सिंह को 87641 मिले और दूसरे स्थान पर आरजेडी उम्मीदवार मुकेश कुमार रौशन को 42644 वोट मिले. अगर तेजप्रताप यादव बगावत न करते और अपनी अलग पार्टी बना यहां से चुनाव नहीं लड़ते, तो मुकेश कुमार रौशन, संजय कुमार सिंह को कड़ी टक्कर दे सकते थे. लेकिन तेजप्रताप के कारण यहां वोट बंट गया. वहीं, जनसुराज पार्टी के उम्मीदवार अमित कुमार ने भी यहां 15783 वोट हासिल कर आरजेडी की मुश्किलें बढ़ा दीं.
महुआ विधानसभा सीट पर 71.05% के रूप में बंपर वोटिंग हुई. 2020 के विधानसभा चुनाव में तेजप्रताप ने भले की इस सीट पर जीत दर्ज की थी, लेकिन तब जेडीयू के बदले एलजेपी (आर) ने उन्हें कड़ी टक्कर दी थी. वह दूसरे स्थान पर रही थी. यही वजह है कि इस बार एनडीए ने इस सीट को एलजेपी (आर) को देने का फैसला किया और वह सही भी साबित हुए.
तेज प्रताप की जमानत न हो जाए जब्त
मुहआ विधानसभा सीट पर चौंकानेवाले नतीजे सामने आ रहे हैं. यहां से लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव चौथे नंबर पर खिसक गए हैं. एलजेपी (आर) के संजय कुमार सिंह महुआ सीट पर 6901 वोट हासिल कर लीड बनाए हुए हैं. दूसरे स्थान पर आरजेडी के मुकेश कुमार रौशन और तीसरे स्थान पर आईएमआईएम उम्मीदवार अमित कुमार हैं. तेज प्रताप की रैलियों में भीड़ काफी नजर आई. ऐसे में लग रहा था कि वह दूसरे उम्मीदवारों को कड़ी टक्कर देंगे. लेकिन ऐसा लग रहा है कि क्या वह अपनी जमानत भी बचा पाएंगे?
पल-पल बदल रही स्थिति, तेज प्रताप को मिल रही कड़ी टक्कर
महुआ विधानसभा सीट पर कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है. यहां कभी तेज प्रताप सिंह, तो कभी मुकेश रौशन आगे हो रहे हैं. फिलहाल महुआ सीट से एलजेपी (आर) के उम्मीदवार संजय सिंह आगे चल रहे हैं. तेज प्रताप और लखिन्द्र पासवान पिछड़ गए हैं. इस सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय है. ऐसे में यहां परिणाम जनता को हैरान करने वाले आ सकते हैं. दअसल, महुआ सीट पर मौजूदा विधायक आरजेडी के मुकेश रौशन हैं, लेकिन तेज प्रताप यादव ने यहां यकीनन आरजेडी को कमजोर किया है. ऐसे में इस सीट पर वोटर्स बंटे हैं, जो मतगणना में नजर भी आ रहा है.
महुआ से जुड़ी तेज प्रताप यादव की कहानी
महुआ का नाम आते ही तेज प्रताप यादव की कहानी अपने आप खुल जाती है. वह नेता जिनकी सियासी यात्रा कभी इसी जमीन से शुरू हुई थी. तेज प्रताप अब न सिर्फ अपने परिवार की पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित हैं, बल्कि अपने ‘जनशक्ति जनता दल' के नाम से एक नई सियासी राह पर चल निकले हैं. इसके बीच आरजेडी के मौजूदा विधायक मुकेश रौशन के लिए यह चुनाव सबसे कठिन परीक्षा साबित रहा. 2020 में उन्होंने आसमा परवीन को लगभग 13,700 वोटों के अंतर से हराया था, लेकिन इस बार समीकरण पहले जैसे नहीं हैं. तेज प्रताप और आसमा परवीन के अलग-अलग मोर्चे से मैदान में उतरने से यादव और मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण टूट सकता है. वहीं, एनडीए की अंदरूनी असहमति भी गठबंधन के लिए सिरदर्द बन गई है. महुआ के स्थानीय मतदाता भी इस बार चुपचाप देख रहे हैं कि किसने उनके लिए सच में कुछ किया और किसने सिर्फ भाषण दिए.
त्रिकोणीय हुआ मुकाबला
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो महुआ इस बार तीन कोणों वाला रणक्षेत्र है. आरजेडी के परंपरागत वोट बैंक की परीक्षा, जेडीयू की अनुशासन व्यवस्था पर सवाल, और तेज प्रताप के व्यक्तिगत पुनरुद्धार की कोशिश. पटना विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर अशोक मिश्रा कहते हैं, 'अगर महुआ में कोई बड़ा उलटफेर हुआ, तो यह बिहार की राजनीति के लिए एक निर्णायक संकेत होगा कि गठबंधन से ज्यादा असर स्थानीय असंतोष और व्यक्तिगत करिश्मे का है.' और यही कारण है कि अब खुद तेजस्वी यादव को मैदान में उतरना पड़ रहा है.
महुआ चुनाव बिहार की राजनीति का प्रतिबिंब
महुआ का यह चुनाव बिहार की राजनीति का प्रतिबिंब है, जहां गठबंधन से ऊपर उठकर स्थानीय असंतोष और व्यक्तिगत संघर्ष ने केंद्र ले लिया है. डॉ. आसमा परवीन का विद्रोह यह दिखाता है कि महिलाएं अब सिर्फ पार्टी का चेहरा नहीं, बल्कि अपनी शर्तों पर राजनीति गढ़ने की हिम्मत रखती हैं. तेज प्रताप की वापसी यह साबित करने की कोशिश है कि राजनीतिक परिवारों में भी असहमति एक नया अध्याय लिख सकती है. और आरजेडी, जेडीयू, एनडीए सबके लिए यह सीट एक चेतावनी है कि जनता अब सिर्फ प्रतीक नहीं, निर्णायक है. महुआ की मिट्टी इस बार तय करेगी कि बिहार की राजनीति में किसकी आवाज़ सुनी जाएगी वफादारी की, विद्रोह की, या उस जनता की जो हर पांच साल बाद अपने सपनों को फिर से मतदान की स्याही में डुबोती है.
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