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दरौली विधानसभा सीट पर बड़ा उलटफेर: वाम किले में लोजपा (रामविलास) ने लगाई सेंध

सिवान जिले की दरौली सीट पर 2020 में CPI(ML) के सत्यदेव राम ने बीजेपी के रामायण मांझी को 12,000 से ज्यादा वोटों से हराया था.

दरौली विधानसभा सीट पर बड़ा उलटफेर: वाम किले में लोजपा (रामविलास) ने लगाई सेंध
  • सिवान जिले की दरौली विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है
  • 2020 के विधानसभा चुनाव में सत्यदेव राम ने बीजेपी के रामायण मांझी को हराया था
  • दरौली की आबादी में दलित, महादलित और पिछड़े वर्गों की बड़ी हिस्सेदारी है
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सिवान:

सिवान जिले की दरौली (एससी) विधानसभा सीट से इस बार बेहद बड़ा चुनावी उलटफेर सामने आया है. मतगणना पूरी होने के बाद लोजपा (रामविलास) के उम्मीदवार विष्णुदेव पासवान ने जीत दर्ज की है. उन्हें कुल 83,014 वोट मिले, जबकि सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के उम्मीदवार सत्यदेव राम को 9,572 वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा. यह नतीजा इसलिए भी अहम है क्योंकि यह सीट पिछले दो चुनावों से लगातार वामदलों के कब्जे में थी.

दरौली सीट सिवान लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. ऐतिहासिक रूप से यह सीट वामदलों का मजबूत गढ़ मानी जाती रही है. 1977 में यहां कांग्रेस के कृष्ण प्रताप विजयी हुए थे, लेकिन उसके बाद वामपंथी संगठनों ने यहां अपना जनाधार इतना मजबूत कर लिया कि 2015 और 2020 दोनों चुनावों में सीपीआई(एमएल) ने लगातार जीत दर्ज की.

2020 में सत्यदेव राम ने बीजेपी के रामायण मांझी को 12,119 वोट से हराकर लगातार दूसरी जीत हासिल की थी. उस चुनाव में सत्यदेव को 81,067 वोट, जबकि मांझी को 68,948 वोट मिले थे. यह जीत वाम राजनीति के लिए बड़ी मजबूती साबित हुई थी, क्योंकि दरौली का सामाजिक ढांचा दलित, महादलित और श्रमिक समुदाय की अधिक आबादी—वाम दलों के मुद्दों और आंदोलनों के अनुरूप रहा है.

लेकिन इस बार का नतीजा बता रहा है कि समीकरण बदल रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, लोजपा (रामविलास) ने दलित और महादलित वोट बैंक में मजबूत सेंध लगाई है, जिसके कारण वाम दलों के पारंपरिक समर्थन आधार में खिसकाव हुआ. दूसरी ओर एनडीए का गठजोड़ और ज़मीनी स्तर पर लोजपा आरवी का आक्रामक कैंपेन इस परिणाम का अहम कारण माना जा रहा है.

दरौली की राजनीति हमेशा विचारधारा और जनसंघर्ष के मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमती रही है. यही वजह है कि यह सीट बिहार की उन दुर्लभ सीटों में शामिल है जहां चुनाव सिर्फ जातीय गणित से तय नहीं होता. 2025 का चुनाव यहां पहले से ही दिलचस्प माना जा रहा था, लेकिन अब विष्णुदेव पासवान की इस जीत ने मुकाबले को और तीखा बना दिया है. वाम दल इस हार को कैसे संभालते हैं और एनडीए इसे कितनी मजबूती में बदलता है, यह आने वाले दिनों की सबसे बड़ी राजनीतिक कहानी होगी.

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