
- सिवान जिले की दरौली विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है
- 2020 के विधानसभा चुनाव में सत्यदेव राम ने बीजेपी के रामायण मांझी को हराया था
- दरौली की आबादी में दलित, महादलित और पिछड़े वर्गों की बड़ी हिस्सेदारी है
सिवान जिले की दरौली विधानसभा सीट पर वामदलों की मजबूत पकड़ रही है. यह सीट सिवान लोकसभा क्षेत्र के तहत आती है और अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित है. 1977 में यहां कांग्रेस के कृष्ण प्रताप ने जीत दर्ज की थी, लेकिन बीते दो चुनावों से यह सीट तरह सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के कब्जे में है.
2020 के विधानसभा चुनाव में सत्यदेव राम ने लगातार दूसरी बार जीत हासिल की. उन्होंने बीजेपी के रामायण मांझी को 12,119 वोटों के अंतर से हराया. सत्यदेव राम को 81,067 वोट मिले जबकि रामायण मांझी को 68,948 वोट हासिल हुए. इस जीत के साथ दरौली सीट वामपंथी दलों के गढ़ के रूप में और मजबूत हुई.
दरौली का राजनीतिक और सामाजिक ताना-बाना वाम राजनीति के लिए अनुकूल माना जाता है. यहां की आबादी में दलित, महादलित और पिछड़े वर्गों की बड़ी हिस्सेदारी है, जो लंबे समय से भूमि सुधार, मजदूरी और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर सक्रिय रहे हैं. सीपीआई (एमएल) ने इन समुदायों के बीच वर्षों से काम कर अपनी जमीनी पकड़ मजबूत की है.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दरौली सीट बिहार की उन चुनिंदा सीटों में से है, जहां चुनाव विचारधारा के आधार पर लड़ा जाता है, न कि केवल जातीय समीकरणों पर. 2025 के चुनाव में एक बार फिर यहां वाम बनाम बीजेपी की सीधी टक्कर देखने को मिल सकती है. एनडीए इस सीट पर वापसी की कोशिश में जुटा है, जबकि एमएल अपनी लगातार तीसरी जीत के लिए संगठन और जनाधार पर भरोसा कर रही है.
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