
कच्ची-पक्की सड़क... टूटा-फूटा घर लेकिन गांव वालों की ख़ुशी 100 गुना ज्यादा .. दरअसल भारत से सैकड़ों किलोमीटर दूर बक्सर की बेटी ने कमाल कर दिया. अफ्रीकी देश त्रिनिदाद और टोबैगो की राजनीतिक सफर में आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल कर कई राजनीतिक चर्चा कर रही है. ऐसे में भेलूपुर में बेहद खुशी झकल रही है साथ ही लोगो के अंदर पुनः विकसित होने की ललक जाग चुकी.
आप समझ ही गए होंगे कि बात हो रही है, त्रिनिदाद और टोबैगो की प्रधानमंत्री कमला प्रसाद-बिसेसर की. उनका पैतृक गांव भेलूपुर, बक्सर जिले के इटाढ़ी प्रखंड में स्थित है. महज 1,127 लोगों की आबादी वाला यह छोटा-सा गांव अब अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर उभर आया है.
पीएम के पूर्वजों का गांव
कमला का जन्म त्रिनिदाद में हुआ था, लेकिन उनके पूर्वज, विशेष रूप से परदादा पंडित राम लखन मिश्रा, 1880-90 के बीच कलकत्ता पोर्ट से वोल्गा जहाज के जरिए गिरमिटिया मजदूर के रूप में त्रिनिदाद पहुंचे थे. ऐसे में गांव में अब उनके परिवार से कहा चाचा और उनका परिवार रहता है.

गांव के उनके रिश्तेदार जगदीश जगदीश मिश्रा बताते हैं, 'जब पहली बार वो गांव आई थी तो मुझसे मिली थीं और मुझे अंकल कहकर पुकारा था.' 2012 में अपने पहले प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान कमला अपने पैतृक गांव आईं और यहां उन्होंने भावुक होकर कहा था, 'जो कुछ भी मैं आज हूं, वह मेरे पूर्वजों के आशीर्वाद और इस भूमि के लोगों की वजह से है.'
नेतृत्व, शिक्षा और प्रेरणा की प्रतीक
कमला प्रसाद-बिसेसर ने शिक्षा और कानून के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की. वे त्रिनिदाद और टोबैगो की शिक्षा मंत्री भी रही हैं. 2010 में वे देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं. उनका राजनीतिक सफर इस बात का प्रमाण है कि कैसे भारतीय मूल की महिलाएं भी वैश्विक राजनीति में अपनी जगह बना सकती हैं.
गांव में अब भी कोसों दूर है विकास
जहां एक ओर कमला प्रसाद-बिसेसर की सफलता ने भेलूपुर गांव को अंतरराष्ट्रीय मान्यता दिलाई है, वहीं दूसरी ओर यह गांव अब भी बुनियादी विकास की राह देख रहा है. यहां स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा की स्थिति आज भी चिंताजनक बनी हुई है. ग्रामीणों को उम्मीद है कि अब इस ऐतिहासिक जुड़ाव से गांव का भविष्य भी उज्ज्वल होगा.

एक प्रेरणादायक विरासत
कमला प्रसाद-बिसेसर भारतीय मूल की उन चुनिंदा हस्तियों में हैं जिन्होंने वैश्विक राजनीति में अपनी विशेष पहचान बनाई है. उनकी कहानी बताती है कि अपनी जड़ों से जुड़े रहकर भी विश्व पटल पर उत्कृष्टता हासिल की जा सकती है. यह हर प्रवासी भारतीय के लिए प्रेरणा और गौरव का विषय है.
(रिपोर्ट: पुष्पेंद्र पांडेय)
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