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बिहार में पहली बार पक्षियों में लगाए गए ट्रांसमीटर,पक्षियों की गतिविधियों की पल-पल की मिलेगी जानकारी

बीएनएचएस के उप निदेशक और वैज्ञानिक डॉ.सथिया सेलवम ने बताया कि दो बार-हेडेड गूज यानि राजहंस पक्षियों में कल ट्रांसमीटर लगाया गया और तुरंत नागी झील में छोड़ दिया गया और चीन और मंगोलिया के इलाके से आने वाले पक्षी रूडी शेलडक यानि चकवा में भी ट्रांसमीटर लगाने की योजना है.

बिहार में पहली बार पक्षियों में लगाए गए ट्रांसमीटर,पक्षियों की गतिविधियों की पल-पल की मिलेगी जानकारी
पटना:

बिहार में पहली बार सुदूर देशों से आने वाले प्रवासी और देश के ही अन्य इलाकों से आने-जाने वाले पक्षियों की अलग अलग प्रजातियों के उड़न मार्ग और उनके व्यवहार के अध्ययन हेतु ट्रांसमीटर लगाने का कार्य पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के सहयोग से बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के द्वारा बिहार के प्रसिद्ध रामसर स्थल जमुई के नागी नकटी पक्षी अभयारण्य में शुरू किया गया. जिसकी अगुआई बीएनएचएस के उप निदेशक और वैज्ञानिक डॉ.सथिया सेलवम कर रहे हैं.

क्या है पूरा मामला?

बीएनएचएस के गवर्निंग काउंसिल के सदस्य अरविन्द मिश्रा भी इस उपक्रम में शामिल रहे बीएनएचएस के शोधार्थी भागलपुर जोन की इंचार्ज खुशबू रानी,वर्तिका पटेल, अबिलाष, अभय राय और सुष्मित बोले के अलावा बर्ड ट्रैपर मनीष कुमार, शामिल थे जिनके साथ मो.आशिक और राकेश यादव ने भी सहयोग किया.

विदेशी पक्षियों के लिए अलग से व्यवस्था

बीएनएचएस के उप निदेशक और वैज्ञानिक डॉ.सथिया सेलवम ने बताया कि दो बार-हेडेड गूज यानि राजहंस पक्षियों में कल ट्रांसमीटर लगाया गया और तुरंत नागी झील में छोड़ दिया गया और चीन और मंगोलिया के इलाके से आने वाले पक्षी रूडी शेलडक यानि चकवा में भी ट्रांसमीटर लगाने की योजना है.

कैसे करेगा काम?

उन्होंने बताया कि बिहार में देश का चौथा “बर्ड रिंगिंग एवं मॉनिटरिंग सेंटर” भागलपुर में स्थित है. जिसके द्वारा राज्य के विभिन्न पक्षी स्थलों पर दुनियां के विभिन्न देशों से आने वाले पक्षियों के आवागमन और व्यवहार को समझने के लिए पक्षियों को ट्रांसमीटर, अल्युमिनियम और प्लास्टिक के छल्ले पहनाने, कॉलर लगाने और टैग लगाने का कार्य किया जाता है. इन छल्लों में नंबर वाले कोड अंकित होते हैं.

'ट्रैकिंग की पूरी व्यवस्था

यदि किसी व्यक्ति को ये छल्ले प्राप्त होते हैं तो इसकी सूचना बीएनएचएस को दी जानी चाहिए ताकि उस पक्षी ने कहाँ से कहाँ तक का भ्रमण किया है, इसकी जानकारी प्राप्त हो सके. इस सेंटर द्वारा पक्षियों के प्रवास के अध्ययन के अलावा पक्षियों की पहचान, उनके व्यवहार और उनकी उपयोगिता के बारे में शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया जाता है और आम लोगों, विशेष रूप से युवाओं को जागरूक और प्रशिक्षित किया जाता है. वहीं जिन दो राजहंस पक्षियों को ट्रांसमीटर लगाया गया है, उनकी गतिविधियों की पल-पल की जानकारी इससे मिलती रहेगी.

गरुड़ पक्षियों में भी ट्रांसमीटर लगाने योजना

अभी भागलपुर में 20 ग्रेटर एडजुटेंट यानि बड़ा गरुड़ पक्षियों में भी ट्रांसमीटर लगाने योजना है, जो दुनियां के दुर्लभतम स्टोर्क पक्षी हैं. डॉ. सथिया सेलवम ने बताया कि ये बार हेडेड गूज यानि राजहंस हमारे देश में तिब्बत, चीन और मंगोलिया तक से आते हैं I अब यह पता चलेगा कि बिहार में इनकी आबादी किस देश से आती है.

हम तो ग्रे लैग गूज यानि सिलेटी सवन को भी ट्रांसमीटर लगाना चाहते थे परन्तु मौसम में अप्रत्याशित बदलाव के कारण ये पक्षी जमुई के इलाके से निकल चुके हैं. वही इस तरह के कार्य बिहार में पहली बार हुआ है जबकि इसके अलावे पश्चिम बंगाल और उड़ीसा और कई अन्य राज्यों में लगाया गया वहीं महाराष्ट्र में भी लगाया जा रहा है.

वहीं पक्षियों की यहां तो सुरक्षा की जाती है लेकिन बाहर में उसके साथ कहां क्या होता है उसकी भी जानकारी मिल पाएगी यहां तक की दूसरे देशों में भी अगर इसके साथ कोई क्षति पहुंचती है तो उसकी भी जानकारी होगी और जिस देश में इसके साथ नुकसान होगा उसे देश को सुरक्षा के लिए भी पहल किया जाएगा।जमुई के वन प्रमंडल पदाधिकारी तेजस जायसवाल, राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक प्रभात कुमार गुप्ता ने भी बिहार में इस अध्ययन की शुरुआत को एक शानदार पहल बताया है.

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