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हत्‍या, जेलब्रेक, नरसंहार... एक ट्रैक्टर ड्राइवर से कैसे बिहार का बाहुबली बन गया अशोक महतो, पढ़ें पूरी कहानी

अशोक अपराध की दुनिया का दुर्दांत बाहुबली रहा है. लेकिन दिसंबर 2023 में जेल से रिहाई के बाद से सियासत का बाहुबली बनना चाह रहा है. इसके पीछे की कहानी बड़ी दिलचस्‍प है.

हत्‍या, जेलब्रेक, नरसंहार... एक ट्रैक्टर ड्राइवर से कैसे बिहार का बाहुबली बन गया अशोक महतो, पढ़ें पूरी कहानी

Bihar Bahubali Criminal Turned Leader Ashok Mahto Story: बात 23 दिसंबर 2001 की है. दिन के पौने ग्यारह बजे थे. बिहार के नवादा जेल में बंद अशोक महतो और उसके प्रमुख सहयोगी अक्षत सिंह से मिलने के लिए 15-16 लोग टाटा-407 गाड़ी से सेब की टोकरी लेकर आए थे. जेल की गेट पर कुछ लोग उतरे. फिर जेल की संतरी के जरिए अशोक महतो और उनके सहयोगियों से मिलने की बात कही. अशोक और उसके सहयोगियों को सेब का टोकरी दिया, जिसके जरिए हथियार उपलब्ध कराया. फिर अशोक और उनके सहयोगियों ने जेल ब्रेक कर दिया. संतरी शशि भूषण शर्मा ने विरोध किया तब उसे गोली मार दी गई. संतरी ललन यादव घायल हो गया. फिर दिनदहाड़े अशोक अपने आठ साथियों के साथ जेल से फरार हो गया. बाहुबली अशोक महतो के दुस्साहस की यह पहली घटना नही थी. और न ही आखिरी. 

यह घटना अशोक महतो के दुस्साहस को बयां करने की एक बानगी भर है. हालांकि करीब पांच साल के अंतराल में अशोक महतो की गिरफ्तारी हुई. जेल ब्रेक कांड में उम्रकैद की सजा हुई. करीब 17 साल बाद दिसंबर 2023 में अशोक महतो की रिहाई हुई. लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि अब अशोक महतो सियासत का बाहुबली बनना चाह रहा है. लोकसभा चुनाव 2024 से अशोक की सियासत में इंट्री भी हो चुकी है. चूकिं अशोक खुद नही लड़ सकता. लिहाजा, 62 साल की उम्र में पिछले साल कमउम्र अनिता नाम की महिला से शादी की. मुंगेर लोकसभा क्षेत्र से जदयू सांसद राजीव रंजन के खिलाफ अनिता को राजद ने उतारा था. हालांकि अनिता हार गईं. अशोक अब अनिता को वारिसलीगंज से विधानसभा चुनाव लड़ाना चाह रहे हैं.

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ट्रैक्टर चालक से बना बाहुबली

बिहार के नवादा जिले के पकरीबरावां थाना क्षेत्र के बढ़ौना निवासी अशोक महतो ट्रक्टर चलाकर जीविकोपार्जन करता था. लेकिन पहली दफा अशोक चर्चा में तब आया था जब 1996 में सोगरा वक्फ कमिटि की 72 विगहा जमीन पर कब्जे को लेकर दलितों की 50 से अधिक झोपड़ियों को जला दिया था. यही नहीं, 20 जून 1997 को जनार्दन रविदास और 1998 में माले कार्यकर्ता केदार रविदास की हत्या का आरोप अशोक पर लगा था. इतना ही नहीं, दलितों के संरक्षण देने के आरोप में ठेरा गांव के भूमिहार जाति के चार लोगों की हत्या का आरोप अशोक पर लगा था. इन घटनाओं के कारण अशोक महतो अपने स्वजातिय कुर्मी में हीरो की छवि लेकर उभरा. लोग अशोक को अपना रॉबिनहुड मानने लगे.

इसकी वजह थी कि दूसरी तरफ अखिलेश सिंह बाहुबली के रूप में उभर रहा था. अखिलेश सिंह आपराधिक घटनाओं के कारण सुर्खियों में आ रहा था. अखिलेश भी बस एजेंटी और बालू के चुंगी के कार्य से जुड़ा था. लेकिन पहली दफा 18 दिसंबर 1997 को अखिलेश सिंह सुर्खियों में आया था, जब बालू घाट की चुंगी वसूली को लेकर यादव जाति के दो लोगों की हत्या कर दी था. 

रेलवे स्टेशन पर तीन भूमिहार की हत्या कर दी गई थी. इसकी प्रतिक्रिया में अखिलेश गिरोह ने 18 मई 1999 को भुआलचक गांव में छह लोगों की सामूहिक हत्या कर दी थी. रेलवे स्टेशन की घटना की प्रतिक्रिया के बाद से अखिलेश सिंह भूमिहार समाज में हीरो के रूप में सामने आया. भूमिहार समाज अखिलेश को राॅबिनहुड की तरह देखने लगा. लिहाजा, दोनों तरफ से जातीय हिंसा प्रतिहिंसा की दौर शुरू हो गई.

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जातीय वर्चस्व की लड़ाई, नरसंहार की 9 घटनाएं 

अखिलेश सिंह और अशोक महतो के बीच जातीय लड़ाई में नवादा जिले में सामूहिक नरसंहार की नौ बड़ी घटनाएं हुई. शेखपुरा और नालंदा को जोड़ दें तो यह संख्या 14 के करीब है. इसके अलावा छिटपुट घटनाओं को जोड़ दें तो दोनों गिरोह के जरिए नवादा, नालंदा और शेखपुरा में 200 से अधिक की हत्याएं हुई. नवादा में हुई नौ नरसंहारों (भुआलचक, राजेविगहा, अपसढ़, दरियापुर, कोचगांव, डोला, विश्वनाथपुर, चकवाय) में तीन बड़े नरसंहार अशोक महतो गिरोह के जरिए की गई.

अशोक महतो गिरोह के जरिए 3 जून 2000 को अखिलेश सिंह का गांव़ और निवर्तमान विधायक अरूणा देवी के ससुराल अपसढ़ में नरसंहार की घटना को अंजाम दिया, जिसमें 11 लोगों की हत्या कर दी गई. 17 फरवरी 2003 को अखिलेश सिंह का ससुराल और अरूणा देवी के मायके कोचगांव के सात लोगों की हत्या कर दी गई. जबकि 11 अगस्त 2005 को डोला में पांच लोगों की सामूहिक नरसंहार की घटना को अंजाम दिया गया.

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आठ साल के बच्चे को भी नही बख्शा

हिंसा प्रतिहिंसा की प्रकाष्ठा इतनी बढ़ गई थी कि मासूम और बच्चे को भी नही छोड़ा गया. 11 जून 2000 का अपसढ़ नरसंहार सबसे अधिक हृदय विदारक रहा है. यह बिहार का सबसे चर्चित नरसंहार था, जिसमें 11 लोगों की सामूहिक हत्या की गई. यह घटना नृशंसता की प्रकाष्ठा थी. इस घटना में आठ साल के मोनू और 13 साल के गिरीश की हत्या कर दी गई थी. सभी लोग अपने परिजन के साथ एक छत पर सोए हुए थे. लेकिन अशोक गिरोह ने छत पर चढ़कर अंधाधुंध फायरिंग किया. इस घटना में बच्चे को भी नही बख्सा गया. सोए लोग अगले दिन का सुबह नही देख पाए. इस घटना में अखिलेश सिंह का छोटा भाई और वारिसलीगंज की मौजूदा विधायक अरूणा देवी के देवर 17 वर्षीय देवर रामलाल की भी मौत हो गई. इस घटना में मरनेवाले अधिकतर लोग युवा और बच्चे थे.

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बीडीओ और पूर्व सांसद की हत्या का आरोप

अशोक महतो पर सिर्फ जातीय हिंसा और जेल ब्रेक का आरोप  नही रहा है. अशोक पर पदाधिकारी और जनप्रतिनिधियों की हत्या का आरोप रहा है. 2004 में शेखपुरा जिले के अरयरी के तत्कालीन बीडीओ अशोक राज वत्स की हत्या के आरोपी रहे हैं. यही नहीं, अधिकारियों से रंगदारी मांगने के खौफ के कारण कई अधिकारी और बिजनेस मैन पलायन कर गए थे. यही नहीं, नालंदा के कतरीसराय में एक वैध की हत्या और दो वैध बंधुओं के अपहरण का आरोप रहे हैं. अशोक पर शेखपुरा के तत्कालीन विधायक रंधीर कुमार सोनी पर जानलेवा हमला का आरोप रहा है. यही नहीं, सितंबर 2005 को बेगूसराय के पूर्व सांसद राजो सिंह की हुई हत्या में भी अशोक महतो का नाम आया था. ताज्जुब कि दर्जनों संगीन मामले के आरोपी बनाए गए. लेकिन जेलब्रेक जैसे कुछ मामले को छोड़ दें तो अधिकतर मामले में साक्ष्य के अभाव में मुदई और गवाह मुकर गए. लिहाजा, बरी हो गए. या फिर मामूली सजा हुई.

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17 साल बाद जेल से हुई अशोक की हुई रिहाई

देखें तो, अशोक महतो की जेल से करीब 17 साल बाद रिहाई हुई है. पहली दफा 25-26 जुलाई 2001 की देर रात्रि में अशोक महतो की गिरफतारी हुई थी. तब नवादा के प्रभारी एसपी गुप्तेश्वर पांडेय थे. लेकिन करीब पांच माह बाद 23 दिसंबर 2001 को जेल से फरार हो गया था. इसके बाद करीब पांच साल तक जेल से बाहर रहा. लगातार कई घटनाओं को अंजाम देता रहा. 13 अगस्त 2006 को अशोक महतो की गिरफतारी झारखंड के पाकुड़ जिला के महेशपुर से हुई थी, जब वह एक आपूर्ति निरीक्षक के घर किराए पर रह रहा था. फिर शेखपुरा लाया गया था. जहां अशोक को जूते की माला पहनाकर धूमाया गया था.

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अब सियासी बाहुबली बनना चाह रहा अशोक

अशोक अपराध की दुनिया का दुर्दांत बाहुबली रहा है. लेकिन दिसंबर 2023 में जेल से रिहाई के बाद से सियासत का बाहुबली बनना चाह रहा है. ऐसा इसलिए कि प्रतिद्वंदी अखिलेश सिंह की पत्नी अरुणा देवी 2000 से चार दफा विधायक निर्वाचित हुई है. जबकि अशोक के सहयोगी प्रदीप महतो दो दफा विधायक निर्वाचित हुए. लेकिन अशोक अब खुद सियासत में सक्रिय भूमिका निभाना चाहता है. वैसे अशोक की पत्नी अनिता को राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने मुंगेर लोकसभा में उम्मीदवार बनाकर सियासी इंट्री दिया था. हालांकि पराजय के कारण कामयाबी नही मिली. लेकिन अब वारिसलीगंज विधानसभा से उम्मीदवारी के लिए प्रयासरत हैं. लेकिन गुरुवार की रात्रि राबड़ी आवास में इंट्री नही मिलने के बाद से कई सवाल उठ रहे हैं. हालांकि अशोक महतो ने कहा है कि तेजस्वी यादव ने उन्हें क्षेत्र में बने रहने को कहा है.

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