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'खुदा की कसम खाकर कहो...', AIMIM ने टिकट के लिए उम्मीदवारों को दिलाई अनोखी शपथ

अख्तरुल इमाम ने बताया कि यह शपथ इसलिए दिलाई गई है ताकि उनके लोग चुनाव जीतने के बाद पाला न बदलें. उन्होंने स्पष्ट किया कि यह पार्टी के सदस्यों को शपथ दिलाने की एक नियमित प्रक्रिया है.

'खुदा की कसम खाकर कहो...', AIMIM ने टिकट के लिए उम्मीदवारों को दिलाई अनोखी शपथ
  • बिहार चुनाव के लिए AIMIM ने उम्मीदवारों से पार्टी के प्रति वफादारी की शपथ लेने का अनूठा नियम लागू किया है.
  • उम्मीदवारों को खुदा या ईश्वर को साक्षी मानकर शपथ दिलाई जाएगी कि वे पार्टी से कभी बगावत नहीं करेंगे.
  • यह कदम पार्टी के अंदर पिछली बार हुई बगावत और विधायक छोड़ने की घटना को रोकने के लिए उठाया गया है.
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बिहार की राजनीति में अब टिकट के लिए सिर्फ बायोडाटा नहीं, बल्कि वफादारी की गारंटी भी देनी होगी. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने 2025 विधानसभा चुनाव के लिए एक अनोखी शर्त रख दी है. पार्टी से टिकट की चाह रखने वाले उम्मीदवारों को अब खुदा या ईश्वर को साक्षी मानकर यह कसम खानी होगी कि वे पार्टी से कभी बगावत नहीं करेंगे.

पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमाम ने बताया कि यह शपथ इसलिए दिलाई गई है ताकि उनके लोग चुनाव जीतने के बाद पाला न बदलें. उन्होंने स्पष्ट किया कि यह पार्टी के सदस्यों को शपथ दिलाने की एक नियमित प्रक्रिया है.

AIMIM के शपथ पत्र में क्या?

'मैं (उम्मीदवार का नाम/फलां)... खुदा/ईश्वर की शपथ लेता हूं कि मैं AIMIM का सदस्य हूं. मैंने आगामी विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी का प्रत्याशी बनने का दावा प्रस्तुत किया है. यदि पार्टी मुझे चुनाव लड़ने का अवसर प्रदान करती है, तो मैं पार्टी के प्रति वफादार रहते हुए चुनाव में जीत हासिल करूंगा और हमेशा पार्टी में बना रहूंगा. यदि मुझे टिकट नहीं मिलता है, तो भी मैं पार्टी के इस निर्णय का कोई विरोध नहीं करूंगा और पार्टी द्वारा घोषित अधिकृत उम्मीदवार का पूर्ण समर्थन करूंगा. मैं यह शपथ खुदा/ईश्वर को साक्षी मानकर दो गवाहों के समक्ष ले रहा हूं.'

शपथ के पीछे की मुख्य वजह

AIMIM द्वारा उम्मीदवारों को शपथ दिलाने का कारण पार्टी के भीतर हुई पिछली बगावत है. दरअसल, 2020 के पिछले विधानसभा चुनाव में, पार्टी को मुस्लिम बहुल सीमांचल क्षेत्र में अप्रत्याशित सफलता मिली थी और उसने 5 सीटें जीती थीं. हालांकि, इस जीत के बाद पार्टी को बड़ा झटका लगा जब उसके चार विधायक बाद में पार्टी छोड़कर अलग हो गए. इसी इतिहास को दोहराने से रोकने और उम्मीदवारों की वफादारी सुनिश्चित करने के लिए इस बार यह अनोखी शपथ दिलाई जा रही है.

अब दोबारा सीमांचल में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए ओवैसी सक्रिय हो रहे हैं. उनकी रणनीति साफ है स्थानीय मुद्दों और अल्पसंख्यक अस्मिता को लेकर माहौल बनाना. लेकिन उनके सामने चुनौती भी कम नहीं है, क्योंकि महागठबंधन और एनडीए दोनों ही इस इलाके में अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहे हैं.
 

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