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करगहर या राघोपुर... प्रशांत किशोर की चुनावी दावेदारी तेजस्वी के लिए कितना बड़ा चैलेंज? समझें समीकरण

प्रशांत किशोर ने सीधे तौर पर तेजस्वी यादव को चुनौती दे दी है. दरअसल जन सुराज पार्टी (JSP) के संस्थापक प्रशांत किशोर ने 2025 बिहार विधानसभा चुनाव में उतरने का इरादा साफ कर दिया है. बुधवार को उन्होंने खुले तौर पर कहा कि वे तेजस्वी यादव के खिलाफ भी लड़ने को तैयार हैं.

जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर.

  • प्रशांत किशोर ने कहा कि अगर उनकी पार्टी चाहेगी तो वे बिहार चुनाव में करगहर या राघोपुर सीट से चुनाव लड़ेंगे.
  • करगहर रोहतास की ग्रामीण सीट है जहां कुशवाहा, यादव, SC और EBC समूहों की अच्छी राजनीतिक हिस्सेदारी मानी जाती है.
  • राघोपुर वैशाली की हाई-प्रोफ़ाइल सीट है, यह लालू परिवार का गढ़ माना जाता है. तेजस्वी ने लगातार जीत हासिल की है.
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Prashant Kishor in Bihar Election: "अगर पार्टी तय करती है कि मुझे चुनाव लड़ना है तो लड़ेंगे. या तो अपने जन्मभूमि करगहर से लड़ेंगे या फिर पहले भी कह चुका हूं राघोपुर से लड़ूंगा." चुनावी विश्लेषक और जन सुराज से संस्थापक प्रशांत किशोर ने बुधवार को यह बयान देकर बिहार का सियासी पारा बढ़ा दिया है. अभी तक प्रशांत किशोर खुद के चुनाव लड़ने पर कोई स्पष्ट बयान देने से बच रहे थे. लेकिन बुधवार को उन्होंने साफ कर दिया कि यदि पार्टी कहेगी तो रोहतास के करगहर से या फिर वैशाली जिले की राघोपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ूंगा. राघोपुर तेजस्वी यादव की सीट है. ऐसे में प्रशांत किशोर ने सीधे तौर पर तेजस्वी यादव को चुनौती दे दी है. दरअसल जन सुराज पार्टी (JSP) के संस्थापक प्रशांत किशोर ने 2025 बिहार विधानसभा चुनाव में उतरने का इरादा साफ कर दिया है. बुधवार को उन्होंने खुले तौर पर कहा कि वे तेजस्वी यादव के खिलाफ भी लड़ने को तैयार हैं.

राघोपुर से लड़ना तेजस्वी को सीधी चुनौती

प्रशांत किशोर ने यह भी साफ किया कि उम्मीदवारों की औपचारिक घोषणा चरणों में होगी. उनकी पार्टी को “स्कूल बैग” चुनाव-चिन्ह मिल चुका है. ऐसे में अगर पीके (प्रशांत किशोर) रोहतास की करगहर (Kargahar) से उतरें या फिर वैशाली की राघोपुर में तेजस्वी को चुनौती दें—इन दोनों संभावनाओं का स्थानीय से लेकर राज्य-स्तरीय राजनीति पर क्या असर पड़ेगा? आइए जानते हैं इस रिपोर्ट में.

करगहर रोहतास की ग्रामीण सीट, पीके की जन्मस्थली

करगहर रोहतास ज़िले में पूरी तरह ग्रामीण सीट है, जो ससाराम लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है. 2011 की प्रशासनिक प्रोफ़ाइल के हिसाब से यह ब्लॉक 200 से अधिक बसे हुए गांवों वाला इलाका है. रोहतास का जिला मुख्यालय सासाराम इसका निकटतम शहर है. 2020 में यहां कांग्रेसी उम्मीदवार संतोष कुमार मिश्रा ने क़रीब 4,083 वोटों से जीत दर्ज की थी. दूसरे स्थान पर जेडीयू के प्रत्याशी रहे थे. स्थानीय सामाजिक समीकरणों में कुशवाहा-कोइरी, यादव, एससी व ईबीसी समूहों की अच्छी हिस्सेदारी मानी जाती है.

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करगहर में बुनियादी ढाँचा, सिंचाई, स्वास्थ्य सुविधाएँ, स्कूल-कॉलेज की उपलब्धता और सड़क-कनेक्टिविटी चुनावी बहस का स्थायी एजेंडा रहा है. चुनावी वर्षों में यह सीट त्रिकोणीय मुकाबले की ओर झुकती दिखती है—NDA (जेडीयू/बीजेपी), कांग्रेस/महागठबंधन तथा वाम/स्थानीय ताक़तों का प्रभाव समय-समय पर बदलता रहा है.

लालू परिवार का गढ़ कहलाती है राघोपुर सीट

वहीं राघोपुर वैशाली जिले की हाई-प्रोफ़ाइल सीट मानी जाती है. लालू प्रसाद यादव (1995, 2000) और राबड़ी देवी (2005) का प्रतिनिधित्व देख चुकी है. 2015 और 2020, दोनों में तेजस्वी प्रसाद यादव ने यहीं से जीत दर्ज की. 2020 में उनका बहुमत 38,174 वोट का रहा. यहां का चुनावी समीकरण प्रायः MY (मुस्लिम-यादव) + स्थानीय ओबीसी/ईबीसी के इर्द-गिर्द बनता है. बाढ़-नियंत्रण, सड़क-शिक्षा-स्वास्थ्य और रोज़गार प्रमुख मुद्दे हैं.

सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी जन सुराज पार्टी

जन सुराज पार्टी ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की है कि वह 243 में सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी और कम से कम 40 महिलाएँ मैदान में होंगी. उम्मीदवारों की घोषणा 4–5 चरणों में करने की रणनीति तय हुई है. इसके अलावा, चुनाव आयोग ने पार्टी को “स्कूल बैग” चिन्ह आवंटित किया है—यह संदेश-राजनीति में शिक्षा, अवसर और भविष्य पर बल देने का प्रतीक भी बन सकता है. पीके ने इंटरव्यू में यह भी दोहराया है कि वे तेजस्वी यादव जैसे “हैवीवेट” के ख़िलाफ़ लड़ने से नहीं हिचकेंगे.

पीके के करगहर से लड़ने का संभावित असर

करगहर प्रशांत की जन्म भूमि है, वो वहीं के स्थायी निवासी है और यहाँ पीके की “जमीनी” राजनीति का प्रदर्शन होगा और विकाश के मुद्दे जैसे सिंचाई, स्वास्थ्य, स्कूल, ग्रामीण सड़क, रोज़गार पर प्रत्यक्ष संवाद होगा . यह लड़ाई टीवी-स्टूडियो की प्रतीकात्मकता के बजाय गांव-तालाब-खेत की यथार्थ राजनीति में उनकी परीक्षा बनेगी. यहाँ कांग्रेस (वर्तमान विधायक), एनडीए (JDU/BJP) और जन सुराज का त्रिकोणीय टर्फ बन सकता है.

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क्रॉस कटिंग समर्थन की उम्मीद

जन सुराज का युवा, पहली बार वोटर और “राजनीतिक विकल्प” का नैरेटिव अगर पकड़ बनाता है, तो कांग्रेस-NDA—दोनों के पारंपरिक कोर वोट में बिखड़ाव संभव है. करगहर में कुशवाहा-यादव-ईबीसी-एससी समूहों की बहुलता के बीच, यदि पीके “स्कूल बैग/शिक्षा-अवसर” और “स्थानीय रोज़गार” को ठोस वादों (जैसे ITI, नर्सिंग कॉलेज, कृषि-मूल्य श्रृंखला) के साथ बाँध पाए, तो उन्हें क्रॉस-कटिंग समर्थन मिल सकता है.

बिहार को तीसरा विकल्प मिलने का संदेश जाएगा

करगहर के इर्द-गिर्द दिनारा, काराकट, डेहरी जैसी सीटें हैं जहाँ कभी-कभार वाम/स्थानीय नेताओं का भी असर दिखा है. पश्चिम-बिहार में “जन सुराज बनाम पुराने गठबंधन” का टेस्ट-केस करगहर बन सकता है. त्रिकोणीय मुक़ाबले में “तीसरी ताक़त” को अक्सर दूसरे-तीसरे स्थान की दुविधा झेलनी पड़ती है. अगर पीके यहाँ से लड़ते हैं, तो पश्चिम-बिहार के ग्रामीण इलाक़ों में तीसरा विकल्प का संदेश जाएगा.

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राघोपुर में सेंध लगाना इतना आसान नहीं

अगर पीके राघोपुर से तेजस्वी यादव के ख़िलाफ़ उतरते हैं तो वो सीधे तौर पे लालू परिवार को चुनौती होगी. यह RJD परिवार की गढ़ सीट है—लालू-राबड़ी-तेजस्वी की विरासत से लदी हुई. यहाँ उतरना पीके को तात्कालिक राष्ट्रीय/राज्य-स्तरीय ध्यान देगा. यह सीधे-सीधे “पीके बनाम तेजस्वी” का द्वंद्व होगा, जिससे जन सुराज को मीडिया-ट्रैक्शन, फंड-रेज़िंग और स्वयंसेवी ऊर्जा—तीनों में फ़ायदा मिल सकता है. पर याद रखिए, 2020 में तेजस्वी ने 38,000+ की मज़बूत बढ़त से जीता था इस लिए इस किले में सेंध लगाना इतना आसान नहीं होगा.

राघोपुर में क्या है चुनावी मुद्दें

राघोपुर में पीके का आना आरजेडी-कांग्रेस-वाम के कोर वोट को और सघन भी कर सकता है—“गढ़ बचाओ” का भावनात्मक नैरेटिव मज़बूत होगा. दूसरी ओर, एनडीए की परंपरागत एंटी-आरजेडी वोट-बैंक और “परिवर्तन” चाहने वाले फ़्लोटर वोटों में तीन-तरफ़ा बँटवारा भी हो सकता है—जिससे तेजस्वी का रिलेटिव लाभ रह सकता है.

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“स्कूल बैग” चिन्ह और जन सुराज का शिक्षा-रोज़गार एजेंडा राघोपुर में बाढ़-राहत, सड़क-स्वास्थ्य, स्कूल-कॉलेज, कौशल जैसे ठोस मुद्दों के साथ मिलकर नया विमर्श गढ़ सकता है.

पीके की जीत-हार पर क्या होगा असर

अगर पीके स्थानीय मुद्दों को जैसे कटाव, नाव-आवागमन, स्कूल की गुणवत्ता, महिलाओं की आर्थिक स्वायत्तता इत्यादि को अपने मैनिफेस्टो में उतारा तो वे “प्रतीकात्मक” चुनौती से आगे बढ़कर प्रतिस्पर्धी चुनौती बन सकते हैं. तेजस्वी को सीधी चुनौती देने से जन सुराज खुद को “मुख्य विकल्प” के रूप में प्रोजेक्ट कर पाएगा—पीके का व्यक्तिगत स्टेक बढ़ेगा पर यह हाई-रिस्क, हाई-रिवार्ड चाल होगी. जीत हुई तो जन सुराज के लिए राज्य भर में तेज़ लहर बन सकती है; हार हुई तो आलोचक जान सुराज को “वोट-कटवा” पार्टी करार दे देगी.

यह भी पढ़ें - प्रशांत किशोर क्यों बोले- बिहार में हम किंगमेकर नहीं, सीटों पर भी कर दी भविष्यवाणी

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