
बिहार चुनाव को लेकर बीजेपी ने अपने कोटे के सभी 101 प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी है. पार्टी ने एक तरफ जहां बड़े चेहरों को बेटिकट किया है, वहीं दूसरी तरफ सामाजिक समीकरण के हिसाब से जातीय संतुलन साधने की पूरी कोशिश की है.
सबका साथ, सबका विश्वास के मंत्र पर बीजेपी चुनाव में
बिहार चुनाव को लेकर बीजेपी ने अपने कोटे के 101 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है. इस सूची में पार्टी ने बड़ी चतुराई से अगड़े और पिछड़े वर्ग का बैलेंस साधा है. सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी ने 22 राजपूत, 17 भूमिहार, 11 ब्राह्मण और 1 कायस्थ उम्मीदवार उतारे हैं. वहीं ओबीसी वर्ग से 49 उम्मीदवारों को टिकट दिया गया है.
2020 के मुकाबले इस बार बीजेपी ने वैश्य समुदाय से 15, यादव से 6, कुशवाहा से 7, कुर्मी से 2 और अतिपिछड़ा वर्ग से 10 उम्मीदवारों को मौका दिया है. पार्टी का दावा है कि वह सभी जातियों में विश्वास करती है और “सबका साथ, सबका विकास” के मंत्र पर आगे बढ़ रही है।
बीजेपी की लिस्ट में भी इस बार कई दिलचस्प नाम हैं
चर्चित गायिका मैथिली ठाकुर को उम्मीदवार बनाया गया है, जबकि पूर्व आईपीएस आनंद मिश्र को बक्सर से टिकट मिला है. इसके अलावा कई राजनीतिक परिवारों के सदस्य भी मैदान में हैं पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गोपाल नारायण सिंह के बेटे त्रिविक्रम सिंह, विधायक स्वर्णा सिंह के पति सुजीत सिंह और पूर्व सांसद अजय निषाद की पत्नी रमा निषाद को टिकट मिला है. बीजेपी को भरोसा है कि इस समीकरण के दम पर एनडीए फिर से सत्ता में लौटेगा.
जेडीयू ने लव कुश समीकरण को केंद्र में रखा
जेडीयू ने भी अपने पारंपरिक सामाजिक आधार को साधने की कोशिश की है। पार्टी ने लव-कुश समीकरण को ध्यान में रखते हुए 19 सीटें इस समुदाय को दी हैं, जबकि 4 टिकट धानुक समाज को मिले हैं। 13 सीटें सवर्ण उम्मीदवारों को, 12 दलितों को और ओबीसी वर्ग को कुल 31 टिकट दिए गए हैं, जिसमें 20 ओबीसी और 11 ईबीसी प्रत्याशी शामिल हैं.बीजेपी की तरह जेडीयू ने भी कई नए चेहरों को मौका दिया है. 13 महिलाओं और 4 मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया गया है.
इन समीकरणों को जेडीयू ने ध्यान में रखा
लव-कुश फोकस: जेडीयू ने कुशवाहा (13) और कुर्मी (12) जातियों को प्राथमिकता दी, जो पार्टी के कोर वोट बैंक हैं. यह नीतीश कुमार की ‘सोशल इंजीनियरिंग' की रणनीति का हिस्सा है, जो 2020 चुनावों में सफल रही थी.
सवर्ण संतुलन: सामान्य वर्ग में राजपूतों (10) को सबसे ज्यादा टिकट मिले, उसके बाद भूमिहार (6)। यह बीजेपी के सवर्ण वोट बैंक को मजबूत करने की कोशिश है.
EBC और SC पर जोर: 22 EBC और 15 SC उम्मीदवारों से दलित-महादलित समुदाय को साधने का प्रयास। पहले लिस्ट में ही 12 SC और 9 EBC थे.
महिलाएं और अल्पसंख्यक: 13 महिलाओं को टिकट देकर जेंडर बैलेंस दिखाया गया. मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या कम (केवल 4) है, जो 2020 (11) से घटकर है, शायद पिछले चुनावों में उनकी हार के सबक लिया गया है.
बीजेपी का फोकस साफ तौर पर अपने पारंपरिक सवर्ण और वैश्य वोट बैंक पर है, जबकि जेडीयू का झुकाव ओबीसी और ईबीसी की ओर है. इस तरह दोनों दलों ने मिलकर एनडीए का जातीय समीकरण “सवर्ण + पिछड़ा + अतिपिछड़ा + दलित” के आधार पर मजबूत करने की कोशिश की है.
बीजेपी की उम्मीदवार सूची पर नज़र डालें तो यह साफ दिखता है कि पार्टी ने इस बार सवर्ण और अगड़े वर्ग पर भरोसा जताया है,जबकि यादव समुदाय के कई नेताओं का टिकट काटा गया है. लेकिन बिहार की सियासत में जीत की कुंजी हमेशा अतिपिछड़ा वर्ग के हाथ में रही है. और यह वर्ग लंबे वक्त से नीतीश कुमार का मज़बूत वोट बैंक रहा है. अब बीजेपी भी इसी फार्मूले पर चल रही है. पार्टी को उम्मीद है कि 36 फ़ीसदी “चुप्पा वोटर” यानी अतिपिछड़ा वर्ग के साथ-साथ सवर्णों का समर्थन मिलकर एनडीए को जीत दिलाएगा. बीजेपी का भरोसा साफ है —नीतीश कुमार का सामाजिक आधार और नरेंद्र मोदी का नेतृत्व, मिलकर इस चुनाव में फिर कमाल दिखा सकते हैं.
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