
- बिहार में मुस्लिम आबादी 17.7 फीसदी हो गई है और 87 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम आबादी 20 फीसदी से अधिक है
- सीमांचल क्षेत्र में मुस्लिम आबादी सबसे ज्यादा है, जिसमें किशनगंज जिले में 68 फीसदी मुस्लिम हैं
- बिहार के मुस्लिम वोट परंपरागत रूप से आरजेडी और महागठबंधन को मिलता रहा है, लेकिन जेडीयू को भी कुछ वोट मिलते हैं
बिहार विधानसभा चुनावों को लेकर तैयारियां जोरों पर हैं. आने वाले कुछ ही दिनों में चुनाव की तारीखों का ऐलान हो सकता है. तमाम राजनीतिक दल अब जातिगत समीकरण का हिसाब जुटाने में लगे हैं. विपक्षी दलों की नजरें इस बार दलित और मुस्लिम वोटर्स पर हैं. बिहार जातिगत सर्वेक्षण के अनुसार राज्य में मुस्लिम आबादी 17.7 फीसदी है. यानी ये वोट बैंक गेम चेंजर साबित हो सकता है. आइए जानते हैं कि बिहार की राजनीति में मुस्लिमों की क्या भूमिका रही है और इस बार कांटा किस तरफ झुक रहा है.
87 सीटों पर 20% से ज्यादा मुस्लिम आबादी
2011 की जनगणना के अनुसार मुस्लिम आबादी 16.9 फीसदी थी, लेकिन अब ये बढ़कर 17.7 फीसदी हो चुकी है. बिहार में 87 विधानसभा की ऐसी सीटें हैं, जहां मुस्लिम आबादी 20 फीसदी से अधिक है. वहीं 47 विधानसभा की सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम आबादी 15 से 20 फीसदी है.
बिहार में मुस्लिम आबादी सबसे ज्यादा सीमांचल में है. यहां के चार जिले हैं, जहां सबसे अधिक मुस्लिम आबादी है. इनमें किशनगंज में 68 फीसदी, कटिहार 44 फीसदी, अररिया 43 फीसदी और पूर्णिया 38 फीसदी मुस्लिम आबादी है सीमांचल के इन चार जिलों में विधानसभा की 24 सीटें हैं.
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बिहार में किसे वोट देते हैं मुस्लिम?
बिहार में 17 फीसदी मुस्लिम वोट परंपरागत तौर पर लालू यादव या कहें आरजेडी या महागठबंधन को मिलता रहा है, मगर यह भी सच्चाई है कि जेडीयू को बिहार के मुस्लिमों का 5 से 8 फीसदी वोट मिलता रहा है. 2014 का लोकसभा चुनाव जब जेडीयू वाम दलों को साथ लड़ी थी, तब उसे 23.5 फीसदी मुस्लिम वोट मिले थे. जबकि 2019 को लोकसभा में जेडीयू को 6 फीसदी और 2024 की लोकसभा में 12 फीसदी वोट मिले.
किस चुनाव में किसे मिले वोट?
2015 विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने 7 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, जिसमें में से 5 जीते थे, मगर 2020 के विधानसभा में नीतिश कुमार ने 11 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था. जिसमें से एक भी उम्मीदवार नहीं जीत पाया. सीमांचल जहां विधानसभा की 24 सीटें हैं, उसमें से 2015 में जेडीयू के 7 विधायक थे, लेकिन 2020 में घटकर 3 रह गए, जिसमें से एक भी मुस्लिम नहीं है.
महागठबंधन की बात करें तो 2019 के लोकसभा चुनाव में मुसलमानों का 80 फीसदी वोट मिला था, तो 2024 के लोकसभा में 87 फीसदी. वहीं विधानसभा चुनाव की बात करें तो 2015 में लालू यादव और नीतीश कुमार जब साथ लड़े थे तब 80 फीसदी मुस्लिमों का वोट इन्हें मिला था. वहीं जब 2020 में दोनों अलग-अलग लड़े तो मुस्लिम वोटों में से 4 फीसदी छिटक गया और महागठबंधन का 76 फीसदी वोट मिला.
पसमांदा मुस्लिमों पर जोर
बीजेपी ने भी इसी साल 30 जून को पसमांदा समाज का एक सम्मेलन भी किया, जिसमें सबका साथ,सबका विकास और सबका विश्वास का नारा दिया गया. पसमांदा मुस्लिमों में 75 फीसदी आबादी पिछड़ा या अति पिछड़ा है. जहां तक मुस्लिम विधायकों के संख्या की बात करें तो 2010 के विधानसभा में 19 मुस्लिम विधायक थे, जो 2015 में बढ़कर 24 हो गए क्योंकि तब लालू नीतीश साथ लड़े थे और 2020 में फिर मुस्लिम विधायकों की संख्या 19 हो गई.
हर विपक्षी पार्टी के साथ गए मुस्लिम वोट
2020 में आरजेडी के 18 मुस्लिम उम्मीदवारों में से 8 जीते, कांग्रेस के 12 में से 4 जीते, जेडीयू के 10 उम्मीदवारों में से एक भी नहीं जीता, बीएसपी और सीपीआईमाले का एक एक विधायक जीता, जबकि ओवैसी की पार्टी ने 15 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, उसमें 5 जीते थे भले ही वो बाद में आरजेडी में मिल गए मगर इससे ये साबित होता है कि मुसलमानों को जहां भी विकल्प मिला उन्होंने उस पार्टी को भी आजमाया.
इस बार भी ओवैसी पर नजरें होगी कि वो कितने उम्मीदवार खड़े करते हैं. महागठबंधन के लिए एक और चिंता की बात है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के तीन में से 2 सांसद मुस्लिम हैं, वहीं लोकसभा चुनाव में आरजेडी के दो मुस्लिम नेता चुनाव हार गए थे. मधुबनी से एमएए फातिमी और अररिया से शहनवाज आलम... मधुबनी में फातिमी को यादवों ने वोट नहीं किया तो अररिया में कई मुस्लिम उम्मीदवारों के बीच मुस्लिम वोटों का बंटवारा हो गया.
प्रशांत किशोर पर भी नजरें
बिहार के इस विधानसभा चुनाव में वैसे तो मुस्लिम वोटों पर महागठबंधन का दबदबा रहेगा, मगर प्रशांत किशोर कितने मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारते हैं जो तय करेगा कि वो किसका वोट काटते हैं. प्रशांत किशोर ने कहा है कि वो 40 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देगें. ऐसा हुआ तो संभव है कि वो महागबंधन के वोटों में सेंध लगा सकते हैं, ठीक वैसे ही कि यदि उन्होंने अगड़ी जाति का उम्मीदवार दिया तो एनडीए को नुकसान कर सकते हैं. अब सबकी निगाहें इस बात पर भी है कि वक्फ बिल के बाद नीतीश कुमार को मुसलमानों का कितना फीसदी वोट मिलता है.
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