
- बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए में बीजेपी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की मांग बढ़ रही है.
- सर्वे के अनुसार, 33.7% वोटर्स चाहते हैं कि बीजेपी अपना मुख्यमंत्री चेहरा चुनाव में उतारे न कि नीतीश कुमार को.
- 23.1% लोग मानते हैं कि बीजेपी के पास कोई विकल्प नहीं होने के कारण नीतीश कुमार को आगे रखना पड़ता है.
आखिर कब तब बिहार एनडीए में बीजेपी, जदयू के छोटे भाई की भूमिका में रहेगी! कब तक एनडीए, नीतीश कुमार के चेहरे पर चुनाव लड़ता रहेगा! ये चिंता बीजेपी कार्यकर्ताओं से बीजेपी समर्थकों में भी देखी जा रही है. दरअसल, बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए में बीजेपी नेतृत्व की मांग हो रही है. 2020 चुनाव के दौरान जहां, बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच से ये मांग हो रही थी, वहीं 2025 चुनाव से पहले अब वोटर्स भी ये मांग कर रहे हैं. जाहिर तौर पर ये बीजेपी को समर्थन करने वाले वोटर्स होंगे. लेकिन ये आंकड़ा अहम है.
सर्वे के मुताबिक, 33.7% वोटर चाहते हैं कि बीजेपी इस बार मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी पार्टी से चेहरा घोषित करे, न कि मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चेहरे पर चुनाव लड़े. वहीं, केवल 24.2% लोग ही मानते हैं कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में NDA को चुनाव में उतरना चाहिए, क्योंकि उन्होंने अच्छा काम किया है.
क्या बीजेपी की मजबूरी हैं नीतीश?
सर्वे (State Vibe Survey) में एक दिलचस्प बात और सामने आई है. इसके मुताबिक, 23.1% लोग ऐसे भी हैं जो मानते हैं कि बीजेपी के पास कोई और विकल्प नहीं है. इनका मानना है कि बीजेपी को मजबूरी में नीतीश को ही आगे रखना पड़ रहा है. पिछले कुछ चुनावों के दौरान ये देखा भी गया है कि नीतीश कुमार को पाला बदलते देर नहीं लगती.
चुनाव से पहले नीतीश कुमार किसी और पाले में, जबकि चुनाव के बाद दूसरे पाले में रहे हैं. आलोचक तो ऐसा भी कहते रहे हैं कि नीतीश कुमार को सीएम की कुर्सी प्यारी है. एनडीए में रहें या महागठबंधन में, उन्हें मुख्यमंत्री बनने से मतलब रहा है. हालांकि नीतीश कुमार को चाहने वाले मानते हैं कि बिहार में उनका कोई ठोस विकल्प नहीं.

जातीय समीकरण किसके पक्ष में?
जातीय वर्गीकरण पर नजर डालें तो बीजेपी से नए सीएम चेहरे की मांग ओबीसी वोटरों के बीच सबसे ज्यादा (38%) है. इसके बाद उच्च जाति हिंदू (36%), अनुसूचित जाति (30%), जनजाति (29%) और मुसलमान (26%) इस विचार को समर्थन दे रहे हैं. बिहार की कुल आबादी में ओबीसी की हिस्सेदारी 27.12% और ईबीसी की 36.01% है. इस लिहाज से ये आंकड़ा बीजेपी की रणनीति के लिहाज से बेहद अहम है.
सर्वे ये भी दिखाता है कि सभी जातियों में एक समान वोटर्स ऐसे भी हैं, जो मानते हैं कि बीजेपी सिर्फ विकल्पहीनता में नीतीश को आगे रख रही है. इनमें 21% ST और OBC, 26% SC और अपर कास्ट हिंदू और 24% मुसलमान ऐसा सोचते हैं.
उधर, अगर नीतीश कुमार को काम के आधार पर सीएम फेस मानने वालों की बात करें तो इनमें 38% एसटी, 27% एससी और मुसलमान, 24% अपर कास्ट हिंदू और 21% ओबीसी वोटर्स हैं. ये वोटर्स नीतीश कुमार के फैसलों और काम का समर्थन करते हैं.

कानून व्यवस्था पर मिली-जुली राय
सर्वे के मुताबिक, 28.7% लोग मानते हैं कि नीतीश राज में कानून व्यवस्था में सुधार हुआ है, जबकि 28.5% को कोई खास फर्क नहीं लगा. वहीं 34.2% लोग मानते हैं कि स्थिति पहले से खराब हुई है. ये एंटी इनकम्बेंसी यानी सत्ता विरोधी माहौल का संकेत माना जा रहा है.
सीएम फेस के नाम पर कौन पसंद?
राज्य के विकास के मुद्दे पर महागठबंधन को 36.1% और NDA को 35.4% वोटरों का भरोसा मिला है. ये मामूली बढ़त भी विधानसभा चुनावों से पहले विपक्ष का मनोबल बढ़ा सकती है. प्रशांत किशोर की जन सुराज को भी 10% समर्थन मिला है.
मुख्यमंत्री पद के लिए लोकप्रिय चेहरों में तेजस्वी यादव सर्वे में आगे हैं. 32.1% लोग उन्हें अगला मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं. नीतीश कुमार 25% के साथ दूसरे नंबर पर हैं. तेजस्वी को सबसे ज्यादा समर्थन 50% मुसलमानों से मिला है जबकि नीतीश कुमार को ऊंची जाति हिंदुओं में 31.1% समर्थन है. मुख्यमंत्री पद के विकल्प के तौर पर भी किशोर ने 12.4% वोट पाकर लोजपा (RV) के चिराग पासवान और बीजेपी के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी को पीछे छोड़ा है.
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