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आरा और बड़हरा सीटों पर छाए संकट के बादल, जा सकती है मौजूदा MLA की सीट!

Bihar vidhan sabha Election: सत्ता की गलियारों में यह चर्चा बनी हुई है कि आरा से अबकी बार एनडीए का कोई नया उम्मीदवार होगा मगर वो उम्मीदवार कौन होगा ? पढ़ें सैयद मेराज की रिपोर्ट

आरा और बड़हरा सीटों पर छाए संकट के बादल, जा सकती है मौजूदा MLA की सीट!

कहते हैं राजनीति मतलब और स्वार्थ से भरी हुई है राजनीति में कब क्या होगा, किसके साथ कौन खेल करेगा या कब कोई खेल से बाहर हो जाएगा किसी को इसका अंदाजा ही नहीं. कभी कभी खेल खेलने वाले के साथ ही खेला हो जाता है और उसे भनक तक नहीं लगती. ऐसा ही दिलचस्प मंजर देखने को मिलेगा बाबू वीर कुंवर सिंह की धरती पर या यू कहे की भोजपुर में जहां सत्ता की गलियारों में यह चर्चा बनी हुई है कि आरा से अबकी बार एनडीए का कोई नया उम्मीदवार होगा मगर वो उम्मीदवार कौन होगा ?

क्योंकि जिस प्रकार वर्तमान विधायक अमरेंद्र प्रताप सिंह करीब करीब अपनी 80 वर्ष की आयु पार कर चुके हैं, जिससे उनको इस बार टिकट मिलने की संभावना नहीं के बराबर है क्योंकि पिछले बार भी उनके टिकट पर काफी विवाद हुआ था. मगर फिर भी उन्हें आरा विधानसभा क्षेत्र का उम्मीदवार बनाया गया था और उन्होंने माले के उम्मीदवार क्यामुद्दीन अंसारी को हराया था.

मगर इस बार कहानी में एक नया ट्विस्ट आ गया है और पावर स्टार पवन सिंह की वापसी भी अब एनडीए में हो गई है, जिससे कयास लगाया जा रहा है कि कहीं अमरेंद्र प्रताप सिंह का जगह पावर स्टार पवन सिंह ना ले लें और दूसरी तरफ पूर्व सांसद सह केंद्रीय मंत्री आरके सिंह ने भी चुनाव में उतारने की घोषणा कर दी है. अपने कार्यकाल में जिस प्रकार आरके सिंह की छवि रही है, उसको देखते हुए यह कयास लगाया जा रहा है कि भाजपा उनको खोना नहीं चाहेगी. उनको चित्तौड़गढ़ से उम्मीदवार बनाने की पूरी संभावना है. अगर भाजपा ऐसा करती है और चित्तौड़गढ़ से आरके सिंह और आरा से पवन सिंह को टिकट मिलता है तो क्या दोनों नेता इस बात को हजम कर पाएंगे.

अमरेंद्र प्रताप सिंह की तो बात अलग है क्योंकि पिछले बार ही उनका टिकट करीब करीब कट चुका था. अगर बात करें राघवेंद्र प्रताप सिंह की, जिन्होंने राजद का दामन छोड़ भाजपा का हाथ थामा था, अब वह क्या करेंगे क्या वह पुनः घर वापसी करेंगे या फिर एक बार निर्दलीय खड़ा होकर चित्तौड़गढ़ के किले को ढाहने में विपक्षियों का साथ देंगे. और दूसरी तरफ ये भी सवाल उठता है कि क्या नेताओं के समर्थक पार्टी आला कमान की बात मान कर पार्टी द्वारा भेजे गए नए उम्मीदवार को वही सम्मान और सहयोग दे पाएंगे, जो वर्तमान विधायकों को दे रहे हैं या फिर दोनों सीटें आपसी कलह और रंजिश की भेंट चढ़ जाएगी. चुनाव हार जीत का खेल भले ही होता हो, मगर इस खेला को खेलने के लिए कितना खेल होता है इसका आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते हैं.

सातों विधानसभा क्षेत्र में आरा और बड़हरा सबसे हॉट सीट मानी जाती है. हमेशा से ही इन सीटों पर खींचतान मची रहती है. ऐसे में इस राजनीतिक बदलाव से इन दोनों सीटों में क्या कुछ नया उभर कर आता है. यह देखना दिलचस्प होगा. इन सब चीजों में अगर सबसे ज्यादा किसी को झेलना पड़ता है तो वह है समर्थक जो अपने नेताओं को जीतने के लिए ऐड़ी चोटी से जोर लगाते हैं. अपने प्रतिद्वंद्वी को अपने विपक्षी को पूर्णतः अपना दुश्मन ही बना लेते है.

मगर फिर वही दुश्मन या यूं कहें की विरोध में रहा हुआ व्यक्ति पार्टी से ही टिकट लेकर आ जाता है तो क्या समर्थकों को अपनी पुरानी बातों को बुलाकर उनका समर्थन करना आसान होगा.

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