मुंगेर:
बिहार के चुनाव में मुंगेर का अवैध हथियार कारोबार सबसे ज़्यादा फल-फूल रहा है। प्रशासन सख़्त है, इसलिए सबसे ज़्यादा उत्पादन गंगा के बीचो-बीच हो रहा है।
गंगा किनारे बन रहे हथियार
दरअसल ये मेक इन इंडिया का मुंगेर संस्करण है। दियारा इलाक़े में बनाए जा रहे हैं हथियार। ये अवैध कारोबार चुनावी दिनों में सबसे चोखा चलता है। हरी घास की इन फैली हुई दीवारों के पीछे चलता है ये कारखाना, दाम दीजिए, फिर देसी कट्टा, पिस्तौल या एके 47 तक असेंबल करवा लीजिए। यहां आप आते हैं और वो जान जाते हैं। उनके ख़बरी की निगाह आप पर होती है। हमारी टीम के आने की ख़बर भी उन तक पहुंच गई।
हथियारों का रेट कार्ड
उन्होंने हमें रेट कार्ड भी बता दिया।
- सिंगल बैरल का कट्टा 700 से 1500 रुपये तक मिलेगा।
- 7.65 एमएम की रिवॉल्वर के लिए 7,000 रुपये लगेंगे।
- सेमी ऑटोमेटिक पिस्तौल भी मिल जाएगी अगर आप 9000 से 15,000 तक खर्चने को तैयार हैं।
- 9 एमएम की लोकल कारबाइन भी मिल सकती है पर हां, 75000 से एक लाख तक देने होंगे।
- जबकि एके 47 सवा लाख से डेढ़ लाख में मिलेगी।
बेरोज़गारी बना मुद्दा
नौजवानों की दलील है कि इन लड़कों की बेरोज़गारी उन्हें ये ख़तरनाक धंधा करने को मजबूर करती है। नौजवान मजबूर हैं, पैसे के लिये कुछ भी कर रहे हैं। सरकार को सोचना चाहिये कि रोजगार बिहार चुनावों में बहुता बड़ा मुद्दा है।' सुरजीत कुमार जो हमें दियारा इलाके में मिले, कहते हैं, 'कारीगर यहां आसानी से मिल जाते हैं इसलिएये धंधा ज्यादा चल रहा है। दियारा इलाके में ही मिले अमर का कहना है कि मुंगेर में 36 सरकारी लाइसेंस वाले कारखाने हैं, लेकिन सवाल है कि मुंगेर के भीतर बंदूक बनाने वाला ये स्किल इंडिया कहां से पैदा हो गया। जवाब इस परिसर के भीतर है। यहां बंदूक के 36 सरकारी लाइसेंस वाले कारखाने हैं। यहीं से वो हुनर सबको मिलता है जो बाहर इस कारोबार में दिख रहा है। मुंगेर शहर का गौरवशाली इतिहास रहा है लेकिन आजकल इन हवाओं में हताशा दिखाई पड़ती है। आज की तारीख में अवैध हथियारों के कारोबार के लिये ये इलाका जाना जाता है। मेक इन इंडिया की बिगड़ी हुई तस्वीर किसी को देखनी हो तो वो मुंगेर चला जाए।
मुफ़स्सिल थाना हुआ बदनाम
ये मुफ़स्सिल थाना है - इस लिहाज से बदनाम है कि इसी के इलाके में बंदूकों और बारूद का नाजायज़ कारोबार सबसे ज़्यादा होता है। मुफ़स्सिल थाने के इंस्पेक्टर रघुवंश प्रसाद ने एनडीटीवी इंडिया को बताया, 'हमने कई डोसियर भी खोले हैं, एक बार तो इकट्ठे 150 डोसियर लिखे गये थे। अभी भी कई लोग इस धंधे में लिप्त हैं।' बिहार की राजनीति भले जाति और धर्म पर बंटी हो, लेकिन मुंगेर का ये कारोबार इससे परे है।
मोहल्लों मे बंटे कारखाने
यहां मोहल्ले चलते हैं। इनमें बरदह के मुसलमान लगे हुए हैं, बिंदवाड़ा के राजपूत और शंकरपुर और लाल दरवाज़ा के यादव भी। बरदाह के रहने वाले प्रवेश चंद का कहना है, 'सभी जाति के लोग इसमें हैं ओर कोई दूसरे के मोहल्ले में छेड़छाड़ नहीं करता।' कुछ ऐसे भी हैं जिन पर इस सिलसिले में मुकदमे चल रहे हैं। मोहम्मद चांद ने कबूल किया, 'मुझे और मेरे 40 साथियों को इकट्ठा गिरफ़्तार किया, अनेक मामले हमारे ऊपर लगाये। अभी मैं जमानत पर हूं।' इन सबके बीच तमंचे बनाने वाले कारीगर आसानी से मिल जाते हैं। अभी तो डिमांड ज़्यादा है इसलिए ये बेगुसराय और खगड़िया तक जाकर हथियार असेंबल कर रहे हैं। ये कहना गलत नहीं होगा कि मुंगेर को बचाने के लिये उसके हाथों को रोजगार देने की जरूरत है। उसका मन बदलने के लिये सिर्फ़ आर्थिक पैकेज या फ़िर राजनीतिक वादे भर काफ़ी नहीं हैं। इनके लिये एक बड़ी कोशिश करनी होगी तभी असली मेक इन इंडिया या स्किल इंडिया की तस्वीर पूरी हो पाएगी।
गंगा किनारे बन रहे हथियार
दरअसल ये मेक इन इंडिया का मुंगेर संस्करण है। दियारा इलाक़े में बनाए जा रहे हैं हथियार। ये अवैध कारोबार चुनावी दिनों में सबसे चोखा चलता है। हरी घास की इन फैली हुई दीवारों के पीछे चलता है ये कारखाना, दाम दीजिए, फिर देसी कट्टा, पिस्तौल या एके 47 तक असेंबल करवा लीजिए। यहां आप आते हैं और वो जान जाते हैं। उनके ख़बरी की निगाह आप पर होती है। हमारी टीम के आने की ख़बर भी उन तक पहुंच गई।
हथियारों का रेट कार्ड
उन्होंने हमें रेट कार्ड भी बता दिया।
- सिंगल बैरल का कट्टा 700 से 1500 रुपये तक मिलेगा।
- 7.65 एमएम की रिवॉल्वर के लिए 7,000 रुपये लगेंगे।
- सेमी ऑटोमेटिक पिस्तौल भी मिल जाएगी अगर आप 9000 से 15,000 तक खर्चने को तैयार हैं।
- 9 एमएम की लोकल कारबाइन भी मिल सकती है पर हां, 75000 से एक लाख तक देने होंगे।
- जबकि एके 47 सवा लाख से डेढ़ लाख में मिलेगी।
बेरोज़गारी बना मुद्दा
नौजवानों की दलील है कि इन लड़कों की बेरोज़गारी उन्हें ये ख़तरनाक धंधा करने को मजबूर करती है। नौजवान मजबूर हैं, पैसे के लिये कुछ भी कर रहे हैं। सरकार को सोचना चाहिये कि रोजगार बिहार चुनावों में बहुता बड़ा मुद्दा है।' सुरजीत कुमार जो हमें दियारा इलाके में मिले, कहते हैं, 'कारीगर यहां आसानी से मिल जाते हैं इसलिएये धंधा ज्यादा चल रहा है। दियारा इलाके में ही मिले अमर का कहना है कि मुंगेर में 36 सरकारी लाइसेंस वाले कारखाने हैं, लेकिन सवाल है कि मुंगेर के भीतर बंदूक बनाने वाला ये स्किल इंडिया कहां से पैदा हो गया। जवाब इस परिसर के भीतर है। यहां बंदूक के 36 सरकारी लाइसेंस वाले कारखाने हैं। यहीं से वो हुनर सबको मिलता है जो बाहर इस कारोबार में दिख रहा है। मुंगेर शहर का गौरवशाली इतिहास रहा है लेकिन आजकल इन हवाओं में हताशा दिखाई पड़ती है। आज की तारीख में अवैध हथियारों के कारोबार के लिये ये इलाका जाना जाता है। मेक इन इंडिया की बिगड़ी हुई तस्वीर किसी को देखनी हो तो वो मुंगेर चला जाए।
मुफ़स्सिल थाना हुआ बदनाम
ये मुफ़स्सिल थाना है - इस लिहाज से बदनाम है कि इसी के इलाके में बंदूकों और बारूद का नाजायज़ कारोबार सबसे ज़्यादा होता है। मुफ़स्सिल थाने के इंस्पेक्टर रघुवंश प्रसाद ने एनडीटीवी इंडिया को बताया, 'हमने कई डोसियर भी खोले हैं, एक बार तो इकट्ठे 150 डोसियर लिखे गये थे। अभी भी कई लोग इस धंधे में लिप्त हैं।' बिहार की राजनीति भले जाति और धर्म पर बंटी हो, लेकिन मुंगेर का ये कारोबार इससे परे है।
मोहल्लों मे बंटे कारखाने
यहां मोहल्ले चलते हैं। इनमें बरदह के मुसलमान लगे हुए हैं, बिंदवाड़ा के राजपूत और शंकरपुर और लाल दरवाज़ा के यादव भी। बरदाह के रहने वाले प्रवेश चंद का कहना है, 'सभी जाति के लोग इसमें हैं ओर कोई दूसरे के मोहल्ले में छेड़छाड़ नहीं करता।' कुछ ऐसे भी हैं जिन पर इस सिलसिले में मुकदमे चल रहे हैं। मोहम्मद चांद ने कबूल किया, 'मुझे और मेरे 40 साथियों को इकट्ठा गिरफ़्तार किया, अनेक मामले हमारे ऊपर लगाये। अभी मैं जमानत पर हूं।' इन सबके बीच तमंचे बनाने वाले कारीगर आसानी से मिल जाते हैं। अभी तो डिमांड ज़्यादा है इसलिए ये बेगुसराय और खगड़िया तक जाकर हथियार असेंबल कर रहे हैं। ये कहना गलत नहीं होगा कि मुंगेर को बचाने के लिये उसके हाथों को रोजगार देने की जरूरत है। उसका मन बदलने के लिये सिर्फ़ आर्थिक पैकेज या फ़िर राजनीतिक वादे भर काफ़ी नहीं हैं। इनके लिये एक बड़ी कोशिश करनी होगी तभी असली मेक इन इंडिया या स्किल इंडिया की तस्वीर पूरी हो पाएगी।
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