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    मीडिया - दर्शकों-पाठकों के मन में छवियां, और कवरेज का सच...

    यह सत्य नहीं है कि अख़बार हत्या–बलात्कार, तूतू-मैं मैं के अलावा कुछ नहीं छापते। यह हास्यास्पद सरलीकरण है। किसी भी दिन का कोई भी हिन्दी-अंग्रेजी का ढंग का अख़बार उठा लीजिए, आधी-अधूरी-चौथाई ही सही, तमाम दुनिया की ख़बरें उसमें मिलती हैं - बेहद मानवीय भी, बेहद परेशान करने वाली भी।

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