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    आज दिल्ली लुभा नहीं रही, डरा रही है - जाफराबाद-मौजपुर की आंखों देखी कहानी, रिपोर्टर की ज़ुबानी

    सोमवार दोपहर लगभग 12 बजे मौजपुर चौक के सामने देखते ही देखते दोनों तरफ के लोग उबाल में आ गए और पत्थरबाज़ी शुरू. दो-तरफ़ा. पुलिस थी, पर मूक बनी रही. हालात बिगड़ने से पहले संभल सकते थे. इसके गवाह मैं और अंग्रेज़ी से मेरी सहयोगी सुकीर्ति भी रहीं. तस्वीर उतार रहे हमारे कैमरापर्सन सुशील राठी को फौरन कैमरा बंद करने की धमकी मिली. मौके को उन्होंने-हमने भांपा, और कैमरा बंद कर दिया.

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    परिमल की कलम से : कहीं 'सरकारी' बनकर न रह जाए जन-धन योजना

    इसमें कोई दो राय नहीं कि जन-धन योजना सराहनीय है और हमारी कोशिश आलोचना से कहीं ज्यादा हकीकत बताने और दिखाने की है, लेकिन जब मकसद पूरा न हो रहा हो और लोगों की बेचारगी अब भी बरकरार हो तो जरूरत नए सिरे से चिंतन-मंथन की है। नहीं तो डर है कि यह योजना भी कहीं सरकारी न बनकर रह जाए।

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