अंधविश्‍वास पर विश्‍वास: आखिर पिछले 28 वर्षों से कोई भी CM नोएडा जाने से क्‍यों हिचकते हैं?

अंधविश्‍वास पर विश्‍वास: आखिर पिछले 28 वर्षों से कोई भी CM नोएडा जाने से क्‍यों हिचकते हैं?

अखिलेश यादव ने चुनाव अभियान का आगाज पांचवें चरण से किया.

खास बातें

  • 1989 के बाद से अक्‍सर सीएम नोएडा जाने से कतराते हैं
  • जानकार इसके पीछे की मुख्‍य वजह अंधविश्‍वास बतलाते हैं
  • इसी तरह अबकी बार 5वें चरण से अखिलेश ने प्रचार शुरू किया
नई दिल्‍ली:

चुनाव आते ही नेताओं के अंधविश्‍वास पर विश्वास की खबरें भी सुर्खियों में आने लगती हैं. मसलन यूपी से सटे नोएडा में पिछले 28 साल से राज्‍य के मुख्‍यमंत्री नोएडा नहीं जाते. नोएडा के सारे उद्घाटन लखनऊ से करते हैं. 1989 में एनडी तिवारी गए, उसके बाद उनकी कुर्सी चली गई. इसी वहम की वजह से राजनाथ सिंह ने 2001 में नोएडा फ्लाईओवर का उद्घाटन दिल्‍ली छोर से किया. 2006 में मुलायम सिंह के मुख्‍यमंत्री रहते निठारी कांड हुआ...आंदोलन हुआ. सरकार हिल गई लेकिन नोएडा नहीं गए. 2011 में मायावती नोएडा गईं तो 2012 में चुनाव हारकर सत्‍ता से बाहर हो गईं.

इसी वहम की वजह से ही अबकी बार अखिलेश यादव ने पहले चरण के बजाय पांचवें चरण से चुनाव प्रचार शुरू किया. लिहाजा सुल्‍तानपुर से मंगलवार के दिन उन्‍होंने चुनावी अभियान का आगाज किया. हालांकि पहले चरण में चुनाव पश्चिमी यूपी में होने थे लेकिन ज्‍योतिष के 'दिशा शूल' नियम के मुताबिक मंगलवार को शुभ काम के लिए पश्चिम दिशा में यात्रा नहीं करते. ये भी कहा जाता है कि 2012 में यहीं से प्रचार शुरू कर अखिलेश सत्‍ता में आए. लिहाजा मंगलवार को अपनी पहली चुनावी रैली यहीं की. भले ही चुनाव यहां पांचवें चरण में हो.

इसी तरह कुछ समय पहले लखनऊ में बीजेपी दफ्तर में एक बहुत पुराना पेड़ आंधी में गिर गया तो लोग खुश हुए. ऐसा वहम था कि पेड़ की वजह से सामने विधानसभा नहीं दिखती इसलिए पार्टी पिछड़ी है. कांग्रेस दफ्तर को लेकर वहम है कि वहां जो अध्‍यक्ष पुताई कराता है उसकी कुर्सी चली जाती है. 1992 में महावीर प्रसाद, 1995 में एनडी तिवारी, 1998 में सलमान खुर्शीद और 2012 में रीता जोशी सब पुताई के बाद ही हटे थे. वहम की वजह से कांग्रेस दफ्तर में अशोक के पेड़ बड़े होते ही काट देते हैं. इस संबंध में यहां के कांग्रेस कार्यकर्ताओं का कहना है कि अशोक का पेड़ अगर बिल्डिंग की छत से ऊंचा हो जाए तो ये बहुत अपशकुन माना जाता है.

इसी तरह चित्‍तू पांडे ने जंगे आजादी लड़ी और बलिया को अंग्रेजों से आजाद कराकर वहां जनता की सरकार बना दी थी. लेकिन वहम है कि जो नेता उनकी मूर्ति को माला पहनाएगा उसकी कुर्सी जाएगी. इंदिरा गांधी ने मूर्ति का अनावरण किया तो मारी गईं...राजीव गांधी ने मूर्ति को माला पहनाई तो उनकी हत्‍या हुई. जैल सिंह ने माला पहनाई तो उन्‍हें दिल का दौरा पड़ा. इस मामले में बलिया के स्‍थानीय लोगों का कहना है कि बच्‍चे-बच्‍चे की चित्‍तू पांडे में अपार श्रद्धा है लेकिन अंधविश्‍वास के कारण कोई उधर से नामांकन करने के लिए नहीं जाता. कोई राजनीतिक दल अपनी पार्टी का कार्यक्रम वहां नहीं करता क्‍योंकि शुभ कार्य करते समय लोग उधर से आना-जाना पसंद नहीं करते.


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