UP Chunav 2017 में BJP ने प्रचंड बहुमत हासिल किया है...
नई दिल्ली:
भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनावों (UP Assembly Elections) में प्रचंड बहुमत हासिल करते हुए सभी अनुमानों को गलत साबित कर दिया. यूपी जैसे बड़े प्रदेश में बीजेपी की जीत के बड़े मायने हैं और इसका असर राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों में स्पष्ट रूप से देखने को मिलेगा. विरोधी पार्टियों को समझ में ही नहीं आ रहा कि आखिर कमी कहां रह गई. खासतौर से समाजवादी पार्टी (SP) और कांग्रेस तो गठबंधन के बाद से जैसे जीत के प्रति आश्वस्त थे, लेकिन यह भी उनके काम नहीं आया और उनको अब तक की करारी हार झेलनी पड़ी. वैसे तो बीजेपी की जीत में कई अहम कारक हैं और विरोधियों के बीच अनिश्चितता के माहौल ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई, लेकिन उसका जनता के बीच पहुंचाया गया एक संदेश ऐसा कारक साबित हुआ कि यूपी की जनता ने कांग्रेस, सपा और बीएसपी से दूरी बना ली और उन्होंने बीजेपी के पास जाने में ही भलाई समझी...
साबित किया कि अखिलेश को है केवल 2 की ही चिंता...
विरोधी दलों में जारी उठापटक के बीच बीजेपी (BJP) एक ऐसे बड़े संदेश को जनता के बीच स्थापित करने में सफल रही, जिसने गेमचेंजर की भूमिका निभाई. उसके कार्यकर्ताओं ने गुप्त तरीके से इसे लक्षित वर्ग तक पहुंचाना जारी रखा. हालांकि पीएम मोदी ने इशारों-इशारों में प्रचार के अंतिम दौर में इसका जिक्र किया था. यह संदेश था कि सत्ताधारी समाजवादी पार्टी को केवल दो की ही चिंता है- यादव और मुसलमान! इतना ही नहीं उसने इसके लपेटे में कांग्रेस और बसपा को भी ले लिया.
गौरतलब है कि उत्तरप्रदेश में बेरोजगारी की बड़ी समस्या है और अखिलेश यादव के शासनकाल में नौकरियों में यादवों का बोलबाला देखा गया. ज्यादातर विभागों में इसी जाति के लोगों को नियुक्ति दी गई और अन्य वर्ग इससे वंचित रह गए. भले ही वह पिछड़े थे. UPPSC की परीक्षा में यादव जाति के प्रतिभागियों को मिली बड़ी सफलता ने इस तथ्य को और स्थापित कर दिया. बाद में इस पर इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई और UPPSC चेयरमैन डॉ. अनिल यादव के कामकाज के तौर तरीकों पर भी आरोप लगे. बाद में कोर्ट ने बोर्ड के चेयरमैन को ही हटा दिया. इससे जनता के बीच यह संदेश गया कि सपा के सत्ता में आने से अन्य वर्गों का कल्याण नहीं होगा और बीजेपी ने इसे ही भुना लिया.
तुष्टीकरण को भी उठाया...
सपा सरकार पर मुसलमानों पर भी अधिक ध्यान देने का आरोप लगा, जिससे एक हद तक हिंदू भी एकजुट होकर बीजेपी की ओर चले गए. कांग्रेस से गठबंधन होने के बाद भी उन्हें इसका फायदा नहीं मिला, क्योंकि कांग्रेस पर तो पहले से ही मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप थे. विकास के नाम पर 'काम बोलता है' का नारा भी फेल रहा, क्योंकि कई लोगों का मानना है कि लखनऊ को छोड़कर कहीं भी विकास कार्य ज्यादा नहीं हुए. खुद उनके विज्ञापन भी लखनऊ केंद्रित रहे.
दूसरी ओर बसपा सरकार के दौरान मायावती पर जाटवों को ही वरीयता देने का आरोप लग चुका था. मतलब जनता के बीच यह संदेश गया कि मायावती वापस सत्ता में आने पर फिर वही करेंगी. फिर क्या था बीजेपी के चुनाव प्रबंधकों और प्रचारकों ने जनता के बीच इस तथ्य को स्थापित कर दिया कि भारतीय जनता पार्टी ही एक ऐसा दल है जो सबके बारे में सोच रहा है और उसी को वोट देने से सबका कल्याण होगा.
इससे अखिलेश यादव और राहुल गांधी को जनता के बीच युवाओं के प्रतिनिधि के रूप में स्थापित करने का कांग्रेस और सपा का प्रयास पूरी तरह फेल हो गया... BJP ने उत्तरप्रदेश की जनता के बीच पैठ बनाने के लिए न केवल अपने संगठन को मजबूत बनाया, बल्कि उसने बिहार वाली गलती नहीं दोहराई और चुनाव को विकास जैसे मुद्दे से नहीं भटकने दिया. कुछ विवाद भी हुए, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित उसके स्टार प्रचारकों ने इनके साथ ही जनता का ध्यान विकास की ओर केंद्रित रखा और ऐतिहासिक जीत दर्ज कर ली...
साबित किया कि अखिलेश को है केवल 2 की ही चिंता...
विरोधी दलों में जारी उठापटक के बीच बीजेपी (BJP) एक ऐसे बड़े संदेश को जनता के बीच स्थापित करने में सफल रही, जिसने गेमचेंजर की भूमिका निभाई. उसके कार्यकर्ताओं ने गुप्त तरीके से इसे लक्षित वर्ग तक पहुंचाना जारी रखा. हालांकि पीएम मोदी ने इशारों-इशारों में प्रचार के अंतिम दौर में इसका जिक्र किया था. यह संदेश था कि सत्ताधारी समाजवादी पार्टी को केवल दो की ही चिंता है- यादव और मुसलमान! इतना ही नहीं उसने इसके लपेटे में कांग्रेस और बसपा को भी ले लिया.
गौरतलब है कि उत्तरप्रदेश में बेरोजगारी की बड़ी समस्या है और अखिलेश यादव के शासनकाल में नौकरियों में यादवों का बोलबाला देखा गया. ज्यादातर विभागों में इसी जाति के लोगों को नियुक्ति दी गई और अन्य वर्ग इससे वंचित रह गए. भले ही वह पिछड़े थे. UPPSC की परीक्षा में यादव जाति के प्रतिभागियों को मिली बड़ी सफलता ने इस तथ्य को और स्थापित कर दिया. बाद में इस पर इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई और UPPSC चेयरमैन डॉ. अनिल यादव के कामकाज के तौर तरीकों पर भी आरोप लगे. बाद में कोर्ट ने बोर्ड के चेयरमैन को ही हटा दिया. इससे जनता के बीच यह संदेश गया कि सपा के सत्ता में आने से अन्य वर्गों का कल्याण नहीं होगा और बीजेपी ने इसे ही भुना लिया.
तुष्टीकरण को भी उठाया...
सपा सरकार पर मुसलमानों पर भी अधिक ध्यान देने का आरोप लगा, जिससे एक हद तक हिंदू भी एकजुट होकर बीजेपी की ओर चले गए. कांग्रेस से गठबंधन होने के बाद भी उन्हें इसका फायदा नहीं मिला, क्योंकि कांग्रेस पर तो पहले से ही मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप थे. विकास के नाम पर 'काम बोलता है' का नारा भी फेल रहा, क्योंकि कई लोगों का मानना है कि लखनऊ को छोड़कर कहीं भी विकास कार्य ज्यादा नहीं हुए. खुद उनके विज्ञापन भी लखनऊ केंद्रित रहे.
दूसरी ओर बसपा सरकार के दौरान मायावती पर जाटवों को ही वरीयता देने का आरोप लग चुका था. मतलब जनता के बीच यह संदेश गया कि मायावती वापस सत्ता में आने पर फिर वही करेंगी. फिर क्या था बीजेपी के चुनाव प्रबंधकों और प्रचारकों ने जनता के बीच इस तथ्य को स्थापित कर दिया कि भारतीय जनता पार्टी ही एक ऐसा दल है जो सबके बारे में सोच रहा है और उसी को वोट देने से सबका कल्याण होगा.
इससे अखिलेश यादव और राहुल गांधी को जनता के बीच युवाओं के प्रतिनिधि के रूप में स्थापित करने का कांग्रेस और सपा का प्रयास पूरी तरह फेल हो गया... BJP ने उत्तरप्रदेश की जनता के बीच पैठ बनाने के लिए न केवल अपने संगठन को मजबूत बनाया, बल्कि उसने बिहार वाली गलती नहीं दोहराई और चुनाव को विकास जैसे मुद्दे से नहीं भटकने दिया. कुछ विवाद भी हुए, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित उसके स्टार प्रचारकों ने इनके साथ ही जनता का ध्यान विकास की ओर केंद्रित रखा और ऐतिहासिक जीत दर्ज कर ली...
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