 
                                            कारोबार की रफतार धीमी पड़ी
                                                                                                                        - देश में हीरे कारोबार का 90 प्रतिशत हिस्सा गुजरात में है
- कारोबार कैशलेस न होने से नोटबंदी रोज़गारी पर भारी पड़ रही है
- 15 लाख लोगों को रोजगार देता है 80 हजार करोड़ का हीरा उद्योग
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                                                                                अहमदाबाद: 
                                        देश में हीरे का कारोबार का 90 प्रतिशत हिस्सा गुजरात में ही है. अब तक कैश से ही लेनदेन होने औऱ कैशलेस होने की कोशिश न होने से वजह से नोटबंदी रोज़गारी पर भारी पड़ रही है.
45 साल के किंजीत शाह अहमदाबाद में पिछले एक दशक से बतौर रत्न कलाकार (हीरा कारीगर) काम कर रहे हैं. उन्हें हर पखवाड़े प्रतिदिन 500 रुपये के हिसाब से कैश तनख्वाह मिलती थी. 8 नवंबर तक सब ठीक था वो दिवाली से पहले तनख्वाह लेकर एक महीने की छुट्टी पर गांव चले गए थे लेकिन जब लौटे तब तक नोटबंदी घोषित हो चुकी थी. और नोटबंदी ने गुजरात के हीरा उद्योग पर सबसे ज्यादा असर किया था. उनके पास बैंक खाते नहीं है और मालिक के पास कैश में तनख्वाह देने के लिए पैसा नहीं है. ऐसे में लोग अपने जरूरी बिल भी नहीं चुका पा रहे हैं.
सूरत के हीरा कारीगर मुकेश राठौड़ की भी ऐसी ही समस्या है. उसके पास भी बैंक खाता नहीं है. अगले महीने की तनख्वाह की भी अभी से चिंता है क्योंकि पखवाड़े की तनख्वाह का दिन भी आने वाला है लेकिन बैंकों में कैश की समस्या खत्म ही नहीं हो रही. ऐसे में लगता नहीं कि इस बार तनख्वाह मिल पाएगी.
सवाल ये भी है कि 15 लाख लोगों को रोजगार देने वाला 80 हजार करोड़ के इस हीरा उद्योग में पहले कभी डिजिटल मोड में जाने की कोशिश नहीं हुई. एक अनुमान के मुताबिक 70 प्रतिशत से ज्यादा मजदूरों का बैंक खाता नहीं है. पैसा कैश में ही दिया जाता है. जानकार कहते हैं कि पीएफ जैसी सुविधाएं न देनी पड़ें इसलिए भी इन्हें स्थायी कामगार के तौर पर नहीं दिखाया जाता. तो उद्योग से जुड़े लोग मजदूरों की मानसिकता को जिम्मेदार ठहराते हैं. कहते हैं उन्हें ही कैश चाहिए.
अब लोग कैशलेस होने की कोशिश कर रहे हैं. अहमदाबाद के बापूनगर इलाके में हीरा कारखाने के मालिक अपने 200 से ज्यादा मजदूरों के बैंक खाते खुलवाने में लगे हुए हैं. हीरा व्यापारी जीतु मोरडिया कहते हैं कि वो सभी मजदूरों के फॉर्म भर रहे हैं. बैंक ने वादा किया है कि जल्द सबके खाते खुल जाएंगे औऱ एटीएम कार्ड फैक्टरी पर ही दे दिए जाएंगे लेकिन कैश से कैशलेस होने में बहुत वक्त लग सकता है. ऐसे में रोज़ीरोटी पर गंभीर असर पड़ रहा है.
                                                                        
                                    
                                45 साल के किंजीत शाह अहमदाबाद में पिछले एक दशक से बतौर रत्न कलाकार (हीरा कारीगर) काम कर रहे हैं. उन्हें हर पखवाड़े प्रतिदिन 500 रुपये के हिसाब से कैश तनख्वाह मिलती थी. 8 नवंबर तक सब ठीक था वो दिवाली से पहले तनख्वाह लेकर एक महीने की छुट्टी पर गांव चले गए थे लेकिन जब लौटे तब तक नोटबंदी घोषित हो चुकी थी. और नोटबंदी ने गुजरात के हीरा उद्योग पर सबसे ज्यादा असर किया था. उनके पास बैंक खाते नहीं है और मालिक के पास कैश में तनख्वाह देने के लिए पैसा नहीं है. ऐसे में लोग अपने जरूरी बिल भी नहीं चुका पा रहे हैं.
सूरत के हीरा कारीगर मुकेश राठौड़ की भी ऐसी ही समस्या है. उसके पास भी बैंक खाता नहीं है. अगले महीने की तनख्वाह की भी अभी से चिंता है क्योंकि पखवाड़े की तनख्वाह का दिन भी आने वाला है लेकिन बैंकों में कैश की समस्या खत्म ही नहीं हो रही. ऐसे में लगता नहीं कि इस बार तनख्वाह मिल पाएगी.
सवाल ये भी है कि 15 लाख लोगों को रोजगार देने वाला 80 हजार करोड़ के इस हीरा उद्योग में पहले कभी डिजिटल मोड में जाने की कोशिश नहीं हुई. एक अनुमान के मुताबिक 70 प्रतिशत से ज्यादा मजदूरों का बैंक खाता नहीं है. पैसा कैश में ही दिया जाता है. जानकार कहते हैं कि पीएफ जैसी सुविधाएं न देनी पड़ें इसलिए भी इन्हें स्थायी कामगार के तौर पर नहीं दिखाया जाता. तो उद्योग से जुड़े लोग मजदूरों की मानसिकता को जिम्मेदार ठहराते हैं. कहते हैं उन्हें ही कैश चाहिए.
अब लोग कैशलेस होने की कोशिश कर रहे हैं. अहमदाबाद के बापूनगर इलाके में हीरा कारखाने के मालिक अपने 200 से ज्यादा मजदूरों के बैंक खाते खुलवाने में लगे हुए हैं. हीरा व्यापारी जीतु मोरडिया कहते हैं कि वो सभी मजदूरों के फॉर्म भर रहे हैं. बैंक ने वादा किया है कि जल्द सबके खाते खुल जाएंगे औऱ एटीएम कार्ड फैक्टरी पर ही दे दिए जाएंगे लेकिन कैश से कैशलेस होने में बहुत वक्त लग सकता है. ऐसे में रोज़ीरोटी पर गंभीर असर पड़ रहा है.
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