Why Jain monks never take bath: भारत में कई धर्म हैं और उनके अपनी-अपनी पूजा पद्धति और नियम हैं. इसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और जैन धर्म शामिल हैं. जैन धर्म में जैन मुनि सांसारिक जीवन को त्याग कर जैन धर्म के नियम और सिद्धांतों का अनुसरण करते हैं. उनकी इस यात्रा में कठोर तपस्या भी होती है और इनका जीवन बेहद सादगीपूर्ण होता है. ये अहिंसा के सिद्धांत का पालन कर सीमित और अनुशासित जीवन जीने में विश्वास करते हैं. इसी के साथ यह कभी नहाते नहीं हैं. जैन मुनि बनने के बाद ना सिर्फ सांसारिक जीवन बल्कि नहाने को भी त्यागना होता है. अब एक प्रसिद्ध जैन मुनि आदित्य सागर ने जैन सिद्धांतों के बारे में कुछ ऐसे खुलासे किए हैं, जिस पर किसी के लिए भी यकीन करना मुश्किल हो सकता है.
जैन मुनि के होते हैं 28 नियम
जैन मुनि आदित्य सागर ने बताया क्यूं बिना नहाए भी जैन मुनियों के शरीर से कभी भी बदबू नहीं आती है. उन्होंने कहा, 'हम जैन मुनि कभी नहाते नहीं हैं, हमारे 28 नियमों में से यह भी एक है, मैं अभी 38 साल का हूं और 25 साल की उम्र दीक्षा ली और 13 साल से नहाया नहीं हूं, लेकिन मैं वायु स्नान करता हूं, अपने शरीर को दिन में एक बार झाड़ता हूं, जितनी हमें हवा मिलती है, हम उतना ही प्योर रहते हैं, कभी हमारे शरीर से बदबू नहीं आती, ना मैं कोई परफ्यूम लगाता हूं, ना ही कुछ करता हूं, लेकिन एक अलग सी खुशबू रहती है, वो इसलिए क्योंकि हम शुद्ध भोजन करते हैं और हमारी तपस्या शरीर को आनंद पहुंचाती हैं'.
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जैन धर्म के 28 मूल गुण
बता दें, जैन धर्म में 28 मूल गुण होते हैं और ये सभी उनके आचरण का आधार बनते हैं. इसमें 5 महाव्रत (सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अचौर्य और अपग्रिरह), 5 समिति (सरलता और सावधानी से संबंधित नियम), 5 इंद्रिय दमन (वचन, मन, इंद्रियों पर कंट्रोल), 6 आवश्यक (वंदना, प्रत्याख्यान, प्रतिक्रमण, स्तवन, ध्यान और सामयिक) और 7 शेष नियमों (दातुन ना करना, स्नान ना करना, दिन में एक बार भोजन, खड़े होकर भोजन करना) में बंटे हुए हैं.
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