प्रणब मुखर्जी ने इंदिरा गांधी की इच्छा के विपरीत 1980 का लोकसभा चुनाव लड़ा था और जब वह हार गए थे, तब इंदिरा गांधी ने उन्हें काफी देर तक फटकार लगाई थी, लेकिन हारने के बाद भी उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिल गई थी।
मुखर्जी पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को इतना विश्वास था कि उन्होंने (दिवंगत) एपी शर्मा समेत कई वरिष्ठ नेताओं के दावे को दरकिनार कर उन्हें राज्यसभा में सदन का नेता भी बना दिया।
अब राष्ट्रपति, मुखर्जी ने इन अफवाहों का खंडन किया है कि उन्हें मंत्रिमंडल में इसलिए शामिल किया गया था, क्योंकि इंदिरा गांधी 22 लोगों की टीम चाहती थीं और 22 ज्योतिष की दृष्टि से शुभ समझा गया था, दूसरी बात भागवत झा आजाद ने मंत्रिमंडल में शामिल होने से इनकार कर दिया था।
राष्ट्रपति ने अपनी पुस्तक 'द ड्रैमेटिक डिकेड: द इंदिरा गांधी ईयर्स' में उन दिनों के घटनाक्रम को याद किया, जब इंदिरा गांधी जनवरी, 1980 में सत्ता में लौटी थीं। रूपा पब्लिकेशंस ने अभी हाल ही में यह पुस्तक जारी की है।
मुखर्जी ने लिखा है, इंदिरा गांधी हमेशा की तरह 1980 के चुनाव में मजबूती और विश्वास के साथ उतरीं। मुझे चुनाव लड़ने के लिए मूल और निष्ठावान कांग्रेसजनों को चुनने का काम मिला था, इंदिरा गांधी ने मुझे ऐसे लोगों को चुनने की सलाह दी, जो सरकार चला सकें...उन्हें अपनी चुनावी जीत का इतना भरोसा था।
राष्ट्रपति ने लिखा है, उन्होंने 1980 में मुझे लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने की स्पष्ट सलाह दी, लेकिन मेरे हठ करने पर वह मान गईं। मैं बोलपुर निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा और 68,629 मतों के अंतर से हार गया...इस निर्णायक वोट ने मुझे निरूत्साहित कर दिया। उन्होंने पुस्तक में कहा कि उनकी पत्नी गीता पहले ही दिल्ली चली गई थीं और जब चुनाव नतीजा आया, तब उन्होंने उसी दिन दिल्ली बुलाया और कहा कि इंदिरा गांधी उनसे मिलना चाहती हैं।
उन्होंने कहा, मैं शाम की फ्लाइट से दिल्ली लौट आया और इंदिरा गांधी से मिलने सीधे विलिंगडन क्रीसेंट गया। यह कहना चीजों को कमकर पेश करना नहीं होगा कि वह चुनाव लड़ने की मेरी जिद्द से नाखुश थीं। उन्होंने कहा कि संजय गांधी ने उनसे कहा कि जब से उन्होंने मेरी हार की खबर सुनी है, तब से काफी नाराज हैं और जब उनसे मिला, तो यह बात साबित हो गई। राष्ट्रपति ने लिखा है, मेरी कैफियत तलब की गई। रात करीब नौ बजे का वक्त था और वह भोजनकक्ष में एक बड़ी डायनिंग मेज के एक छोर पर बैठी थीं। उन्हें सर्दी-जुकाम हो गया था और वह गर्म पानी में अपना पैर डाली हुई थीं।
प्रणब मुखर्जी ने उस शाम इंदिरा गांधी से हुई मुलाकात को याद करते हुए पुस्तक में कहा है, मैं डायनिंग टेबल मेज के दूसरे छोर पर खड़ा था और मुझे कड़ी फटकार पड़ी और ऐसा जान पड़ता है कि यह सिलसिला काफी देर तक चला। उनकी इच्छा के विरूद्ध बोलपुर से चुनाव लड़ने के गलत निर्णय लेने को लेकर मुझे डांट पड़ी और मुझसे कहा गया कि अविवेकपूर्ण फैसलों से परिश्रम से किए गए अन्य मेरे कार्य महत्वहीन हो गए।
मुखर्जी ने लिखा है कि वह वहां बस खड़े रहे और जब इंदिरा गांधी शांत हो गईं, तब उन्होंने उन्हें फलों की एक टोकरी के साथ घर भेज दिया। पुस्तक में कहा गया है कि मीडिया में प्रस्तावित मंत्रिमंडल को लेकर अटकलें तेज थीं और किसी भी मीडिया ने मंत्रिमंडल के लिए मुखर्जी के नाम का जिक्र नहीं किया, क्योंकि सभी यह मान चुके थे कि हार की वजह से वह सरकार से बाहर रहेंगे।
पुस्तक के अनुसार संजय गांधी ने मुखर्जी को बुलाया और उनसे कहा कि उन्हें यह जानकर दुख हुआ कि वह सरकार में शामिल नहीं किए जाने की संभावना से परेशान हैं। मुखर्जी ने लिखा है, मैंने उनसे कहा कि उन्हें गलत सूचना दी गई है, क्योंकि स्पष्ट तौर पर मैंने अपनी हार के बाद उस मामले पर उतना माथापच्ची किया ही नहीं और यह कि मुझे मालूम था कि सरकार में मुझे शामिल करने की पहल बिल्कुल असहज करने वाली बात होगी।
राष्ट्रपति ने लिखा है, इस पर संजय गांधी ने मुझसे कहा, आपको वाणिज्य मंत्री के रूप में कैबिनेट मंत्री का दर्जा देकर सरकार में शामिल करने का पहले ही निर्णय ले लिया गया है। लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम था कि पहली खेप में शपथ लेने वालों में मैं शामिल होऊंगा में या दूसरी खेप में। उन्होंने मुझसे इस बारे में इंदिरा गांधी से बात करने को कहा। मैंने उनसे कहा कि मैं नहीं समझता कि इस मामले पर उनसे बात करना उपयुक्त होगा।
पुस्तक में कहा गया है कि मंत्रिमंडल के शपथग्रहण के दिन 14 जनवरी की सुबह को अखबारों में अटकलों का बाजार गर्म था। करीब साढ़े नौ बजे मुखर्जी को इंदिरा गांधी के सहयोगी आरके धवन ने फोन किया और उनसे 11 बजे राष्ट्रपति भवन में उपस्थित रहने को कहा। मुखर्जी को कैबिनेट सचिवालय से किसी संदेश या कॉल का इंतजार नहीं करने को कहा गया था।
मुखर्जी ने लिखा है, मैं राष्ट्रपति भवन गया। जब मैं अशोका हॉल पहुंचा, तब शपथ लेने वाले मंत्रियों की कतार में मेरे लिए कोई सीट ही नहीं थी। मैंने इंदिरा गांधी को देखा जिन्होंने तुरंत भांप लिया कि कुछ गड़बड़ है। उन्होंने लिखा है कि धवन उनके पास आए और उनसे इंतजार करने को कहा। वह कैबिनेट सचिव के पास गए और राष्ट्रपति के सचिव के साथ चर्चा करने पर पता चला कि नियुक्त किए जाने वाले मंत्रियों के नामों की सिफारिश वाले पत्र में उनका नाम हाथ से लिखा गया था, न कि टाइप किया गया था।
उन्होंने लिखा है, राष्ट्रपति सचिवालय यह समझ नहीं पाया। ऐसे में स्वभाविक रूप से मेरे लिए सीट चिह्नित नहीं की गई। इंदिरा गांधी ने तुरंत हाथ से एक अन्य पत्र लिखा और उसे राष्ट्रपति के सचिव के पास पहुंचवाया। मुखर्जी ने पुस्तक में कहा है, मुझे आर वेंकटरमण और पीवी नरसिम्हा राव के बीच में बैठने को कहा गया। शपथग्रहण के कागज मुझे सौंपे गए, लेकिन चूंकि मंत्रियों की सूची में मेरा नाम नहीं था, ऐसे में मुझे अपना मंत्रालय पता नहीं चला। मैंने पीवी नरसिम्हा राव और आर वेंकटरमण से पूछा, लेकिन उन्होंने उन्होंने मुझसे कहा कि उन्हें अपने अपने मंत्रालय के अलावा और कुछ मालूम नहीं।
उन्होंने लिखा है कि पहले इंदिरा गांधी को शपथ दिलाई गई और फिर कमलापति त्रिपाठी को। उसके बाद अंग्रेजी की वर्णमाला के हिसाब से बाकी को शपथ दिलाई गई। चंडीगढ़ के एक अखबार ने अटकल लगाई कि मुखर्जी का नाम अंतिम घड़ी में शामिल किया गया है, क्योंकि इंदिरा गांधी 22 लोगों की टीम चाहती थीं जो ज्योतिष की दृष्टि से शुभ समझा गया था और आजाद ने शपथ लेने से इनकार कर दिया, ऐसे में मुखर्जी को शामिल किया गया है।
मुखर्जी ने लिखा है, कल्पना की उड़ान से ये अटकलें चल रही थीं और मंत्रिमंडल में मुझे शामिल किए जाने से संबंधित घटनाक्रम इस तरह था, जैसा मैंने ब्योरा दिया।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं