विज्ञापन
This Article is From Aug 09, 2021

हनुमान भक्त थे 'तू भी है राणा का वंशज' लिखने वाले वाहिद, ओलंपिक गोल्ड पर याद कर लोगों ने बता दिया- शायर कभी नहीं मरते

"तू भी है राणा का वंशज  फेंक जहां तक भाला जाए." दरअसल ये एक कविता है, जिसे लखनऊ के कवि वाहिद अली वाहिद ने लिखी है.

हनुमान भक्त थे 'तू भी है राणा का वंशज' लिखने वाले वाहिद, ओलंपिक गोल्ड पर याद कर लोगों ने बता दिया- शायर कभी नहीं मरते
"तू भी है राणा का वंशज  फेंक जहां तक भाला जाए."

भारत के ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने पर सोशल मीडिया में बधाई का तांता लग गया. हर किसी ने अपने तरीके से सोशल मीडिया पर बधाई दी. चाहे फेसबुक हो या ट्विटर हो या फिर इंस्टाग्राम, हर जगह नीरज चोपड़ा की तस्वीर लगी हुई थी. इस तस्वीर में एक कैप्शन भी ख़ूब लिखा गया- "तू भी है राणा का वंशज  फेंक जहां तक भाला जाए." दरअसल ये एक कविता है, जिसे लखनऊ के कवि वाहिद अली वाहिद ने लिखी है. हालांकि अब वो इस धरती पर मौजूद नहीं हैं, मगर नीरज चोपड़ा के बहाने उनकी ये कविता अमर हो गई. हिन्दुस्तान के अलावा पूरी दुनिया से इस कविता बहुत प्यार मिला. नीरज के बहाने वाहिद को भी याद किया है. सोशल मीडिया पर वाहिद भी ट्रेंड करने लगे. लोगों ने एक सुर में कहा- शायर कभी मरा नहीं करते हैं, अपनी शायरी से अमर होते हैं.

आइए, आज आपको वाहिद अली वाहिद के बारे में और भी कुछ दिलचस्प बातें बताते हैं, जिन्हें जानने के बाद आप कहेंगे कि देश का कोई सपूत हो तो वाहिद जैसा हो वर्ना ना हो. सबसे पहले उनकी ऐतिहासिक कविता को पढ़िए.

कब तक बोझ संभाला जाए
द्वंद्व कहां तक पाला जाए

दूध छीन बच्चों के मुख से 
क्यों नागों को पाला जाए

दोनों ओर लिखा हो भारत 
सिक्का वही उछाला जाए

तू भी है राणा का वंशज 
फेंक जहां तक भाला जाए 

इस बिगड़ैल पड़ोसी को तो 
फिर शीशे में ढाला जाए 

तेरे मेरे दिल पर ताला 
राम करें ये ताला जाए 

वाहिद के घर दीप जले तो 
मंदिर तलक उजाला जाए

हनुमान भक्त थे वाहिद

वाहिद अली वाहिद का जन्म एक मुसलमान परिवार में हुआ है, मगर उनकी रचना को पढ़ने के बाद आपको लगेगा कि वो देश को एकता के सूत्र में बांध के रखने वाले थे. नवभारत टाइम्स की एक ख़बर के अनुसार, वाहिद को उनकी रचना से कोई हनुमान भक्त कहता था, तो कोई राम भक्त. उनकी रचनाओं को देखकर उन्हें वर्तमान का रसखान भी कहा जाता था. हिन्दू-मुस्लिम एकता में विश्वास रखने वाले वाहिद को कट्टरपंथ से बहुत ही नफ़रत थी. वो हमेशा इसके खिलाफ रहते थे.

वाहिद अली वाहिद की और रचना बहुत ही प्रसिद्ध रही है. वो अपनी रचना के जरिए लिखते हैं- 'जब पूजा अजान में भेद न हो, खिल जाती है भक्ति की प्रेम कली रहमान की, राम की एक सदा, घुलती मुख में मिसरी की डली. जब संत फकीरों की राह मिली, तब भूल गए पिछली-अगली मियां वाहिद बोले मौला अली, बजरंग बली- बजरंग बली.'

वाहिद अली की मौत 20 अप्रैल 2021 में 59 साल की उम्र में हो गई. दुख की बात ये रही कि इनकी मौत समय पर इलाज न होने के कारण हुई. आज वो भले ही इस दुनिया में नहीं हैं, मगर अपनी रचनाओं के ज़रिए हमारे बीच ज़िंदा हैं. उनकी कई रचनाएं प्रासंगिक हैं. उन्होंने साहित्य के क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान दिया है. करीब 12 पुस्तकें लिखने वाले वाहिद इस देश के एकता के मिसाल थे. अभी हाल ही में उन्होंने 'वाहिद के राम' नाम की एक पुस्तक लिखी थी, जो काफी प्रसिद्ध है.

देश की परंपरा और संस्कृति को वाहिद बहुत ही आदर करते थे. मंच कला के वे पारंगत कवि थे, अपनी रचनाओं से वो लोगों के रोंगटे खड़े कर देते थे. आज नीरज चोपड़ा की ऐतिहासिक जीत के साथ वाहिद की रचना भी अमर हो गई.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com