विज्ञापन
This Article is From Sep 28, 2014

नए तरीके से फिजिक्स की पढ़ाई होगी सरल

नई दिल्ली:

मिट्टी का लेप लगा बर्तन जब चूल्हे पर काला हो गया और खाना जल्दी पक गया, तो उस लड़के के अंदर उत्सुकता जगी कि आखिर काली पड़ गई मिट्टी के लेप से कैसे खाना जल्दी पक गया...

यही लड़का बड़ा होकर मशहूर फिजिक्स वैज्ञानिक सत्येन बोस के रूप में मशहूर हुआ, जिसने ब्लैकबॉडी एसपेक्ट्रम का सिद्धांत देकर पूरी दुनिया को अचंभित कर दिया। अगर जिंदगी के साथ विज्ञान के इस गठजोड़ के प्रति सत्येन बोस जिज्ञासु नहीं होते, तो शायद वह वैज्ञानिक की जगह कोई नौकरी कर रहे होते।

हमारे देश का दुर्भाग्य है कि हम अच्छे नंबर और अच्छी नौकरी से छात्रों के प्रतिभा का आकलन करते हैं। इसी रवायत को तोड़ने के लिए फिजिक्स कांग्रेस सामने आई है, जो अपने प्रयोगों से छात्रों को फिजिक्स के गूढ़ रहस्यों को समझाने की कोशिश में जुटी है। अनिवेषिका अभियान के तहत अब छात्रों को फिजिक्स नए तरीके और प्रयोगों से पढ़ाने की कवायद चल रही है। दिल्ली के मशहूर स्कूल बिरला विद्या निकेतन में 56 स्कूलों के छात्र और शिक्षक इकट्ठा हुए।

12वीं क्लास को पढ़ा रहे हैं आईआईटी के प्रोफेसर

हाथों में किताब नहीं, बल्कि कुछ बोतलें लिए साधारण कपड़े और चेहरे पर मोटे लेंस के चश्मे में यह शख्स न्यूक्लियर फिजिक्स के वैज्ञानिक और आईआईटी कानपुर के मशहूर प्रोफेसर एचसी वर्मा हैं। फिजिक्स को सरल तरीके से पढ़ाने के लिए इन्होंने बहुत सारी किताबें लिखी हैं। इन्हें एक बड़े हॉल में करीब 500 छात्रों और शिक्षकों से खचाखच भरे हॉल में सवालों का जवाब देते और कुछ सस्ते सामानों से फिजिक्स के गूढ़ सिद्धांत को सरल तरीके से समझाते देखकर अजीब लग रहा था।

मैं सोच रहा था कि त्याग की बात मुंह से बहुत लोग करते हैं, लेकिन कानपुर से आकर इस तरह बिना पैसे और सुविधा लिए, छात्र को वैज्ञानिक बनाने का काम कितने लोग करते हैं। हमारे देश में प्रो. एचसी वर्मा जैसे बहुत सारे लोग हैं, जो बिना तड़क-भड़क और प्रचार के इस तरह खामोशी से एक भविष्य की पीढ़ी को तैयार कर रहे हैं।

प्रो. वर्मा फिजिक्स को किताब के दायरे से जब बाहर निकालते हैं, तो छात्रों में उत्सुकता पैदा होती है। मसलन पानी की गहराई पर जब दबाव ज्यादा होने के सिद्धांत को एक बोतल पर आजमा कर वह दिखाते हैं, तो छात्र भी चौंके बिना नहीं रहते हैं।

दरअसल, हमारी किताबों में इस सिद्धांत को समझाने के लिए जो डायग्राम बनाया जाता है, उसमें एक बोतल पर तीन छेद करके दिखाया जाता है कि सबसे नीचे के होल से ज्यादा बड़ी धार निकलती है, जिससे छात्र ये समझे कि पानी की गहराई पर दबाव ज्यादा होता है। लेकिन जब प्रो वर्मा इसे बोतल पर अजमाते हैं, तो इसके उलट ऊपर वाली धार ज्यादा बड़ी होती दिखती है।

वह कहते हैं कि सिद्धांत गलत नहीं है, लेकिन जिन्होंने भी ये किताबें लिखी हैं, उन्होंने उसका प्रयोग नहीं किया। बस ये मानकर लिख दिया कि नीचे वाली धार ज्यादा बड़ी होगी। छात्रों में जब तक साइंस के प्रति उत्सुकता नहीं पैदा करेंगे, तब तक हम देश में वैज्ञानिक नहीं बना सकते हैं। उनके पास ऐसे तीन सौ प्रयोग हैं, जिनसे वह फिजिक्स को आसान बनाने के काम में जुटे हैं।

शिक्षक बनना अंतिम नहीं, बल्कि पहला विकल्प

शनिवार, दोपहर 12 बजे जब बिरला विद्या निकेतन के हॉल में बड़ी तादाद में फिजिक्स के शिक्षकों को देखा, तो मैं हैरान रह गया। मुझे वह सरकारी कॉन्फ्रेंस नहीं लगा, जिसमें कुछ वक्ता बोलते और बाकी उंघते रहते हैं। अनवेषिका अभियान के तहत ये फिजिक्स को पढ़ाने के तरीकों में बड़े बदलाव की तैयारी कर रहे हैं।

इस प्रोग्राम से जुड़ी शिक्षिका प्रग्या बताती हैं कि वह खुद बिट्स पिलानी से पढ़ी हैं... एमबीए करके वह मैनेजर हो सकती थीं, लेकिन उन्होंने शिक्षक बनने को पहला और अंतिम विकल्प चुना। वह कहती है कि बच्चों को मजेदार तरीके से फिजिक्स पढ़ाने में संतुष्टि होती है।

बच्चों के चेहरे पर उत्सुकता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण देखकर होनहार पीढ़ी के आने की आहट होती है। समाज में इस तरह के कुछ लोग यही सपना लिए भविष्य की होनहार पीढ़ी तैयार करने के काम में खामोशी से लगे हैं। ये नहीं चाहते हैं कि इनकी शान में कसीदे पढ़ें जाए... ये इसके लिए कोई पुरस्कार या मीडिया की सुर्खियां भी नहीं बनना चाहते हैं। बस इनकी ख्वाहिश है कि इस तरह के उत्साही शिक्षकों के काम को ये पीढ़ी याद जरूर रखे।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com