भारतीय शादियां कभी सिर्फ एक रस्म नहीं होती, यह परिवार, रिश्तों और भावनाओं का एक बड़ा समारोह है. कुछ परंपराएं ऐसी होती हैं जिन्हें देखकर लोग चौंक जाते हैं, लेकिन समुदाय उन्हें बेहद पवित्र मानते हैं. ऐसी ही एक परंपरा है, जहां शादी के दिन मां अपने बेटे को शादी की रस्मों के दौरान ‘स्तनपान' कराती है. यह सुनने में अजीब लगता है, लेकिन इसके पीछे बहुत पुरानी मान्यताएं और भावनाएं छुपी हैं.
कहां निभाई जाती है यह परंपरा?
यह रस्म मुख्य रूप से राजस्थान के कुछ समुदाय, हरियाणा के कुछ गांव और पश्चिमी नेपाल के कुछ क्षेत्रों में होती है. हर जगह इसका तरीका अलग होता है, कहीं असल में नहीं किया जाता, बस प्रतीकात्मक रूप से निभाया जाता है.
इस रस्म का असली मतलब क्या है?
पुराने समय में मां को बच्चे का पहला गुरु और जीवन देने वाली माना जाता था. शादी के दिन यह रस्म इस बात का संकेत मानी जाती थी कि, 1- यह मां की तरफ से बेटे को दिया गया “आखिरी पोषण” है. विवाह के बाद बेटा अपनी नई जिंदगी की ओर बढ़ता है, इसलिए यह रस्म एक तरह से विदाई का भाव भी रखती है. 2- शादी के बाद भी मां-बेटे का रिश्ता मजबूत रहता है. समुदायों का मानना था कि पत्नी के आने के बाद भी मां के प्यार को भूलना नहीं चाहिए. यह रस्म उसी बात का प्रतीक है.
पहले समाज में यह रस्म क्यों महत्वपूर्ण थी?
पुराने समय में परिवार बड़े होते थे और रिश्तों की भूमिका भी तय होती थी. इस वजह से यह रस्म तीन कारणों से जरूरी मानी जाती थी...
1. मां की भावनाओं को सम्मान देने के लिए, शादी के दिन मां अपने बेटे से बहुत जुड़ी होती थी, इसलिए यह रस्म उस भावनात्मक जुड़ाव को दिखाती थी.
2. बेटे को उसकी जड़ों की याद दिलाने के लिए, मान्यता थी कि शादी के बाद भी बेटा अपने संस्कार और परिवार को याद रखे.
3. पूरे समुदाय को यह दिखाने के लिए कि मां का योगदान कितना महत्वपूर्ण है, यह रस्म एक तरह से सार्वजनिक आशीर्वाद की तरह मानी जाती थी.
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अगर मां न हो तो भाभी क्यों करती है यह रस्म?
कुछ जगहों पर माना जाता है कि मां न होने पर बड़े भाई की पत्नी घर की ‘दूसरी मां' बनती है. इसलिए वह प्रतीकात्मक रूप से यह रस्म निभाती है. यह कोई जैविक काम नहीं, बस प्यार और जिम्मेदारी का संकेत माना जाता है.
क्या आज भी यह रस्म वास्तव में की जाती है?
आजकल ज्यादातर जगहों में यह रस्म सिर्फ प्रतीकात्मक रूप में निभाई जाती है. जैसे- मां दूल्हे के सिर को छाती से लगाती है, आशीर्वाद देती है, या बस रस्म का नाम भर निभाया जाता है. असली स्तनपान अब ज्यादातर स्थानों पर नहीं किया जाता.
यह रस्म विवाद में क्यों रहती है?
आज के समय में कई लोग इसे पुरानी सोच का हिस्सा, असहज करने वाला और निजी सीमा पार करने वाला मानते हैं. कुछ लोग यह भी कहते हैं कि जहां महिलाओं को पर्दा करना पड़ता है, वहां यह रस्म खुलकर करना विरोधाभास लगता है. इसी वजह से यह परंपरा अक्सर चर्चा में भी रहती है.
फिर भी लोग इसे क्यों निभाते हैं?
1-बुजुर्ग इसे शुभ मानते हैं
2-परिवारों में “रिवाज़” ना तोड़ने का विश्वास होता है
3-इसे मां के प्यार और आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है
4-कुछ लोग इसे अपनी सांस्कृतिक पहचान समझते हैं.
दूल्हे को शादी के दिन मां द्वारा प्रतीकात्मक रूप से ‘स्तनपान' कराने की यह परंपरा भले ही आज के समय में अजीब लगे, लेकिन इसके पीछे मातृत्व, भावनाएं और पुरानी मान्यताएं जुड़ी हैं. समय के साथ इस रस्म की प्रकृति बदली है, लेकिन इसका मूल संदेश आज भी वही है- मां का स्नेह और आशीर्वाद जीवनभर साथ रहता है.
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