फ्लाइट में बैठकर आसमान से धरती की खूबसूरती देखना सुखद होता है. लेकिन, हजारों फीट की ऊंचाई पर अगर एयरक्राफ्ट तेजी से डोलने लगे, तो जैसे जान निकल जाती है. एविएशन इंडस्ट्री में इसे एयर टर्बुलेंस या एयरक्राफ्ट शेकिंग कहते हैं. इस दौरान कुछ लोग काफी घबरा जाते हैं. कई मौकों पर एयर टर्बुलेंस प्लेन क्रैश की वजह भी बन जाता है. लंदन से सिंगापुर जा रही सिंगापुर एयरलाइंस की एक फ्लाइट में मंगलवार को टर्बुलेंस से एक यात्री की जान चली गई. 30 से ज्यादा यात्री घायल भी हो गए. टर्बुलेंस के बाद प्लेन की थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में इमरजेंसी लैंडिंग करानी पड़ी.
आइए जानते हैं क्या होता है एयर टर्बुलेंस और बीच आसमान में प्लेन क्यों डोलने लगता है? एयर टर्बुलेंस से बचने के लिए यात्रियों को क्या करना चाहिए:-
क्या होता है टर्बुलेंस?
टर्बुलेंस का आसान शब्दों में मतलब हलचल से होता है. हवा के जिस बहाव में प्लेन उड़ रहा हो, अगर उसमें कोई बाधा आती है तो टर्बुलेंस आता है. इस स्थिति में प्लेन हिचकोले खाने लगता है. प्लेन तेजी से डोलने लगता है और अपने तय रूट से ऊपर या नीचे आ जाता है. कई बार टर्बुलेंस इतना सीवियर होता है कि प्लेन अपनी ऊंचाई से कुछ फीट नीचे आने लगता है.
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टर्बुलेंस के क्या हैं कारण?
प्लेन को उड़ने के लिए हवा के मोशन की जरूरत पड़ती है. कई दफा मौसम में बदलाव या दूसरी वजहों से हवा के बहाव में बदलाव आ जाता है. इससे एयर पॉकेट्स बन जाते हैं. अब प्लेन को स्टेबल तरीके से उड़ने के लिए उसके विंग्स के ऊपर और नीचे से हवा का बहाव रेगुलर होना चाहिए. एयर पॉकेट्स से ऐसा नहीं होता, जो एयर टर्बुलेंस का कारण बनते हैं.
कितने टाइप का होता है टर्बुलेंस?
इसे कुल 7 कैटेगरी में बांटा गया है:-
थंडरस्टॉर्म टर्बुलेंस: ये खराब मौसम और आंधी-तूफान की वजह से होता है. थंडरस्टॉर्म से पैदा टर्बुलेंस इतना ताकतवर हो सकता है कि किसी प्लेन को 2 से 6 हजार फीट वर्टिकली ऊपर या नीचे ले जा सकता है.
क्लियर एयर टर्बुलेंस: ये टर्बुलेंस जेट स्ट्रीम इलाके में होती हैं. जेट स्ट्रीम बेहद शक्तिशाली वायु धाराएं होती हैं, जिनकी स्पीड 250 से 400 किमी/घंटे होती है. इनका अनुमान लगा पाना मुश्किल होता है.
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वेक टर्बुलेंस: ये टर्बुलेंस प्लेन के हवा से गुजरने के दौरान उसके पीछे बनता है. जेट वॉश यानी जेट इंजन से तेजी से निकलने वाली मूविंग गैसों से भी ऐसे टर्बुलेंस बनते हैं. वैसे इस तरह का टर्बुलेंस कुछ मिनट ही रहता है.
मैकेनिकल टर्बुलेंस: ये टर्बुलेंस धरती की सतह के पास की हवा की रुकावटों, पहाड़ों या इमारतों के ऊपर से बहने से होता है. इससे सामान्य हॉरिजोंटल एयर फ्लो ब्लॉक हो जाता है और हवा का मोशन नहीं बन पाता, जो प्लेन के टर्बुलेंस का कारण बनता है.
माउंटेन वेव टर्बुलेंस: ये टर्बुलेंस कुछ हद तक मैकेनिकल टर्बुलेंस जैसा ही होती है. लेकिन इसमें बिल्डिंग की जगह पहाड़ होते हैं. जब हवा पहाड़ों की चोटी के ऊपर से बहती है और फिर नीचे की ओर आती है, तो माउंटेन वेव बनता है. इससे प्लेन में टर्बुलेंस आते हैं.
थर्मल टर्बुलेंस: ये टर्बुलेंस तब होता है, जब गर्म हवा ऊपर उठती है. ऐसे में हवा का एक बड़ा हिस्सा नीचे की ओर आता है तो इससे हवा के बहाव में दिक्कत आती है और टर्बुलेंस बनता है.
फ्रंटल टर्बुलेंस: ये टर्बुलेंस अक्सर ठंड में होता है. इस समय ठंडी हवा गर्म हवा के पास पहुंचती है, तो दो विपरीत हवाएं फ्रिक्शन पैदा करती हैं.
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क्या टर्बुलेंस से प्लेन हो सकते हैं क्रैश?
वैसे एविएशन इंडस्ट्री में हाइटेक टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से टर्बुलेंस के समय प्लेन क्रैश होने की आशंका काफी हद तक कम हो गई है. हालांकि, कुछ ऐसे मामले हैं, जब टर्बुलेंस की वजह से प्लेन क्रैश हुआ. 1960 के दशक में दुनिया में हुए कुछ विमान हादसे टर्बुलेंस की वजह से ही हुए थे.
टर्बुलेंस के दौरान कैसे रहे सेफ?
-सबसे पहले तो जब तक सीट बेल्ट ऑफ का साइन न हो, तब तक बेल्ट पहने रहें. अपनी जगह पर बैठे रहे. किसी चीज को पकड़कर रहे.
-टर्बुलेंस के दौरान ज्यादातर दिक्कतें पैनिक होने से शुरू होती हैं. इसलिए पैनिक न करें. पायलट के इंस्ट्रक्शन को गौर से सुनें और उसे फॉलो करें.
-आप पायलट या क्रू मेंबर से झगड़ने के बजाय उनकी बात सुनें और उनपर भरोसा रखें. क्योंकि ये ऐसे मामलों से निपटने के लिए प्रोफेशनली ट्रेंड होते हैं.
-कुछ टर्बुलेंस सिर्फ मिनटों के लिए होते हैं, लिहाजा इस दौरान अपना फोकस कहीं और लगाए.
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