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क्‍योंकि वो औरतें हैं... अफगानिस्‍तान में भूकंप ने दिखाया मौत से भी ज्‍यादा दर्दनाक चेहरा!  

तालिबान ने महिलाओं पर बड़े स्‍तर पर प्रतिबंध लगाए हैं जिनमें छठी कक्षा से आगे की स्कूली शिक्षा पर प्रतिबंध भी शामिल है. महिलाओं को पुरुष साथी के बिना दूर यात्रा करने की भी अनुमति नहीं है.

क्‍योंकि वो औरतें हैं... अफगानिस्‍तान में भूकंप ने दिखाया मौत से भी ज्‍यादा दर्दनाक चेहरा!  
  • तालिबान के शासन वाले अफगानिस्तान में भूकंप के दौरान महिलाओं को मलबे में दबे रहने दिया और मरने के लिए छोड़ा.
  • तालिबान के सख्त सांस्कृतिक नियमों के कारण महिला बचाव कर्मी नहीं हैं और महिलाओं को प्राथमिकता नहीं मिली.
  • भूकंप प्रभावित इलाकों में पुरुषों और बच्चों को पहले बचाया गया जबकि महिलाएं और लड़कियां मदद से वंचित रहीं.
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काबुल:

अफगानिस्‍तान में पिछले दिनों आए भूकंप में 2 हजार से ज्‍यादा लोगों की जान चली गई. इससे भी ज्‍यादा दर्दनाक बात यह है कि जिंदा महिलाओं को सिर्फ इसलिए मलबे में दबे रहने दिया गया और मरने के लिए छोड़ दिया गया क्‍योंकि वो महिलाएं थीं. देश में तालिबान शासन के अजब-गजब नियमों का सबसे हैरान करने वाला सच इस भूकंप में सामने आ गया. सदियों पुरानी तालिबानी पंरपराओं में महिलाओं की स्किन गलती से भी टच न हो, इस बात को दिमाग में रखा गया और उन्‍हें मरने के लिए छोड़ दिया गया. हैवानियत यहीं नहीं रुकी जिन महिलाओं की मौत हो चुकी थी, उनके शवों को उन कपड़ों से पकड़ कर खींचा गया जो उन्‍होंने मौत के समय पहने हुए थे.  

महिलाओं को मिली कौन सी सजा 

न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स की रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्‍तान में महिला बचाव कर्मी नहीं हैं और इसका खामियाजा मलबे में दबी महिलाओं को भुगतना पड़ा. अफगानिस्‍तान में रेस्‍क्‍यू के आड़े सदियों पुरानी परंपराएं और जेंडर पर बने नियम आ रहे हैं. अगस्‍त 2021 से अफगानिस्‍तान में तालिबान का शासन है और इसे महिलाओं पर कड़े प्रतिबंधों के लिए जाना जाता है. न्यूयॉर्क टाइम्स ने  बीबी आयशा के हवाले से लिखा है, 'उन्होंने हमें एक कोने में इकट्ठा कर लिया और फिर हमें भूल गए.' आयशा के गांव, कुनार प्रांत के अंदरलुक्क - में रविवार को आए भूकंप के 36 घंटे से ज्‍यादा समय बाद पहली बार रेस्‍क्‍यू टीम पहुंची थी. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, किसी ने भी महिलाओं को मदद की पेशकश नहीं की. सिर्फ इतना ही नहीं न तो उनकी जरूरतों के बारे में पूछा गया और न ही उनसे कोई संपर्क किया गया. 

महिलाएं नजर ही नहीं आईं 

इमरजेंसी टीम्‍स ने सबसे पहले घायल पुरुषों और बच्चों को तुरंत बाहर निकाला. जबकि 19 साल की आयशा और बाकी महिलाओं के साथ-साथ किशोर लड़कियों को भी किनारे कर दिया गया, जिनमें से कुछ तो खून से लथपथ थीं. उसी प्रांत के मजार दारा गए एक मेल वॉलेंटियर तहजीबुल्लाह मुहाजेब ने कहा कि ऐसा लग रहा था जैसे बचावकर्मियों को महिलाएं नजर ही नहीं आ रही थीं. वहां मौजूद पुरुषों वाली सभी मेडिकल टीमें ढही हुई इमारतों के मलबे से उन्हें बचाने में हिचकिचा रहे थे. 33 साल के मुहाजेब के मुताबिक, 'ऐसा लग रहा था जैसे महिलाएं अदृश्य थीं, पुरुषों और बच्चों का पहले इलाज किया गया, लेकिन महिलाएं अलग बैठी इलाज के लिए इंतजार कर रही थीं.' 

महिलाओं के लिए सख्‍त कानून 

अफगानिस्तान में तालिबान सरकार द्वारा लागू सख्त सांस्कृतिक और धार्मिक मानदंडों के अनुसार, सिर्फ महिला के करीबी पुरुष रिश्तेदार, उसके पिता, भाई, पति या बेटे को ही उसे छूने की अनुमति है. इसी तरह से महिलाओं को अपने परिवार के बाहर के पुरुषों को छूने की भी मनाही है. महिलाएं तालिबान शासन के तहत बुनियादी आजादी से वंचित हैं. तालिबान चार साल पहले सत्ता में लौटा था और उसने अपने पिछले शासन के 'नए' वर्जन का वादा किया था. अपने पहले कार्यकाल की तुलना में कम दमनकारी होने के दावों के बावजूद, तालिबान ने महिलाओं पर बड़े स्‍तर पर प्रतिबंध लगाए हैं जिनमें छठी कक्षा से आगे की स्कूली शिक्षा पर प्रतिबंध भी शामिल है. अफगानिस्‍तान में महिलाओं को पुरुष साथी के बिना दूर यात्रा करने की भी अनुमति नहीं है और उन्हें अधिकांश नौकरियों से प्रतिबंधित कर दिया गया है. 

फिर से भुगतना होगा खामियाजा 

 अफगानिस्‍तान में संयुक्त राष्‍ट्र महिला प्रतिनिधि सुजैन फर्ग्यूसन ने चेतावनी दी, 'महिलाओं और लड़कियों को इस आपदा का खामियाजा फिर से भुगतना पड़ेगा. उनकी जरूरतों को प्रतिक्रिया और पुनर्बहाली के केंद्र में रखा जाना चाहिए.' भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में महिला स्वास्थ्यकर्मियों की भारी कमी ने स्थिति को और बदतर बना दिया है. तालिबान ने साल 2023 में महिलाओं की मेडिकल एजुकेशन में नामांकन को भी बैन कर दिया था. इसकी वजह से महिला डॉक्टर और नर्सों का मिलना और मुश्किल हो गया है.  तालिबान द्वारा संचालित स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता शराफत जमान ने महिला कर्मचारियों की कमी को स्वीकार किया. लेकिन साथ ही जोर देकर यह भी कहा कि कुनार, नंगरहार और लघमन प्रांतों के अस्पतालों में भूकंप पीड़ितों के इलाज के लिए महिलाएं काम कर रही हैं. 
 

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