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This Article is From Oct 06, 2011

जाब्स : भिक्षु ने भारत छोड़ा आई-उत्पाद बनाने के लिए

नई दिल्ली: तीन सेब (एप्पल) ने दुनिया बदल दी। एक ने हव्वा को लुभाया, दूसरे ने न्यूटन को जगाया और तीसरा सेब स्टीव जाब्स के हाथ में था..। पर्सनल कंप्यूटिंग उपकरण विनिर्माता मसहूर अमेरिकी कंपनी एप्पल के सह संस्थापक स्टीव जाब्स के निधन पर यह श्रद्धांजलि सामाजिक सम्पर्क संबंध वाली वेबसाइटों पर उभर रही अनगिनत श्रद्धांजलियों की एक रुप प्रकट करती है। ट्विटर और फेसबुक जैसे नेटवर्किंग साईट और इंटरनेट, सभी जगहों पर स्टीव जाब्स जो एक दूरदर्शी उद्यमी और अमेरिका की वैश्विक की प्रमुख प्रौद्योगिकी कंपनी एप्पल की ताकत बताया जा रहा है। मैकेंटोस कंप्यूटर, आईपाड, म्यूजिक प्लेयर्स, आईफोन मोबाईल फोन और आईपैड टैबलेट पर्सनल कंप्यूटर जैसे विश्व में धूाम मचाने वाले उत्पाद पेश करने वाले स्टीव विलक्षण व्यक्तिव के थे। आधुनिक प्रौद्योगिकी जगत के सुपर स्टारों में गिने जाने वाले स्टीव जाब्स अपनी युवा अवस्था में निर्वाण की तलाश में भारत की यात्रा पर आए थे। संतोष न मिलने पर वह वापस अमेरिका चले गए। उन्होंने उस वक्त भारत को अपनी कल्पना से अधिक गरीब पाया और विडंबना देखिए कि बाद में 2000 के दशक के मध्य में जब वे भारत में कंप्यूटर के लिए संयंत्र स्थापित करने के बारे में सोच रहे थे तो उन्हें लगा कि इस देश में कारोबार करना सस्ता नहीं रह गया है। लेकिन 70 के दशक की शुरूआत में भारत दौरे से असंतुष्ट वापस लौटने के कारण ही वे प्रौद्योगिकी जगत पर जाब्स अपना ध्यान केंद्रित कर सके और आखिरकार एप्पल कंपनी की स्थापना की। उनकी जीवनी द लिटल किंगडम-द प्राईवेट स्टोरी आफ एप्पल कंप्यूटर में जाब्स को यह कहते हुए उद्द्धरित किया गया है, यह पहला मौका था कि जबकि मुझे लगने लगा था कि विश्व को बेहतर बनाने के लिए कार्ल मार्क्‍स और नीम करौली बाबा ने मिलकर जितना किया है शायद थामस एडिसन ने अकेले उससे ज्यादा किया है। जाब्स 18 साल की उम्र में अपने दोस्त डैन कोटके के साथ नीम करौली बाबा से मिलने पहुंचे। दोनों अमेरिकी लड़के कालेज बीच में छोड़कर भारत पहुंचे और कोटके बाद में एप्पल के पहले कर्मचारी के तौर पर जाब्स से जुड़े। जाब्स की जीवनी में लेखक माईकेल मारिज ने कहा मुश्किल दिनों ने जाब्स को उन सारे भ्रमों पर सवाल करने के लिए बाध्य किया जो उन्होंने भारत के बारे में पाल रखा था। उन्हें भारत अपनी कल्पना से अधिक गरीब नजर आया और वे देश की स्थिति और पवित्रता के प्रचार के बीच की असंगति से दंग थे। किताब में जाब्स को यह कहते पेश किया गया हम ऐसी जगह नहीं मिल सकती थी जहां महीने भर में निर्वाण प्राप्त किया जा सके। जब तक वे कैलिफोर्निया वापस लौटे वे अतिसार के चलते पहले से ज्यादा दुबले थे, भला हो अतिसार का। लौटने पर उनके छोटे-छोटे कटे बाल थे और वे भारतीय परिधान पहने हुए थे। बरसों बाद 2006 में बात चली थी कि एप्पल अपने मैक और अन्य उत्पादों के विनिर्माण में मदद करने के लिए बेंगलूर में 3,000 कर्मचारियों वाला एक केंद्र स्थापित करने के बारे में विचार कर रहा है। कहा गया कि कंपनी ने 30 लोगों को नियुक्त भी किया है। लेकिन अमल नहीं हो सका। कंपनी को भारत में कदम रखना इतना सस्ता नहीं लगा जितना उसने सोचा था। यह विडंबना ही है कि जाब्स की मृत्यु उस दिन हुई जबकि भारत सरकार ने एप्पल के आईपैड के विकल्प के रुप में एक ऐसा टेबलट कंप्यूटर पेश किया जिसकी कीमत स्टीव जाब्स के मशहूर एप्पल ब्रांड वाले आईपैड की कीमत के मात्र 15वें हिस्से के बराबर है। डाटाविंड के साथ मिल कर प्रस्तुत भारतीय टेबलेट कंप्यूटर आकाश विश्व का सबसे सस्ता टैबलेट है।

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