प्रतीकात्मक तस्वीर
बीजिंग:
चीन के सरकारी मीडिया ने कहा है कि हिंद महासागर में चीन के रणनीतिक हितों के लिहाज से श्रीलंका बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि पाकिस्तान सुरक्षा की अपनी 'दुखद स्थिति' के चलते मजबूत आधार उपलब्ध नहीं करवा सकता। यह पहली बार है जब चीनी मीडिया ने इस संदर्भ में बीजिंग की चिंताओं को व्यक्त किया है।
सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने श्रीलंकाई प्रधानमंत्री रानिल विक्रमासिंघे की चीन यात्रा के परिप्रेक्ष्य में प्रकाशित दो लेखों में से एक में लिखा है, 'इस समय, चीन के वित्तपोषण से पाकिस्तान में बनने वाले प्रतिष्ठान चीन को एक मजबूत आधार नहीं दे सकते, क्योंकि पाकिस्तान की सुरक्षा की स्थिति दुखद है।' अखबार ने कहा, 'हिंद महासागर में सुरक्षा संबंधी रणनीतिक व्यवस्था के लिहाज से श्रीलंका चीन के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो सकता है। यह पास के नौवहन मार्गों के लिए न सिर्फ सुरक्षा आश्वासन देगा बल्कि यह 21वीं सदी के समुद्री रेशम मार्ग (एमएसआर) को भी प्रोत्साहन देगा।'
भारत ने अब तक इस मार्ग का समर्थन नहीं किया है, क्योंकि उसे चिंता है कि इसके चलते चीन हिंद महासागर में हावी हो सकता है। श्रीलंका में आधार जमाने के अलावा चीन पाकिस्तान के साथ अपने 46 अरब के आर्थिक गलियारे के जरिये भी हिंद महासागर तक पहुंच बनाने की कोशिश कर रहा है। इस आर्थिक गलियारे के जरिये शिनजियांग को अरब सागर में स्थित रणनीतिक ग्वादर पत्तन से जोड़ा जाना है। ग्वादर की स्थिति हिंद महासागर में प्रवेश का रास्ता उपलब्ध करवाती है।
मौजूदा मैत्रिपाला सिरीसेना सरकार द्वारा रोकी गई डेढ़ अरब डॉलर की कोलंबो पोर्ट सिटी परियोजना के लटक जाने के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराते हुए रिपोर्ट में कहा गया, 'श्रीलंका की दलगत राजनीति के अलावा, भारत की ओर से आने वाला दबाव भी इस परियोजना के निलंबन में अहम कारक रहा है।' रिपोर्ट में कहा गया, 'दक्षिण एशिया में चीनी निवेश को देखकर भारत अक्सर पक्षपातपूर्ण हो जाता है। भारत की चिंता उसके इस संदेह से जुड़ी है कि चीन भारत को घेरने की कोशिश कर रहा है। जबकि सच यह है कि न तो श्रीलंका में बीजिंग का निवेश और न ही श्रीलंका का आर्थिक विकास भारत को कोई नुकसान पहुंचाएगा। नई दिल्ली को अब भी यह लगता है चीन शायद भारत के चारों ओर सैन्य घेराबंदी कर सकता है।'
अखबार ने कहा, 'देश में भारत समर्थक या चीन समर्थक होने पर चल रही बहस विक्रमसिंघे की चीन की यात्रा के साथ धीरे धीरे बंद हो सकती है।' रिपोर्ट में कहा गया, 'नई दिल्ली का कोलंबो पर काफी प्रभाव है, इसके बावजूद श्रीलंका और चीन के संबंध भारत के हितों के खिलाफ नहीं है। कोलंबो को अब इस बात की भली प्रकार जानकारी है कि न तो भारत समर्थन और न ही चीन समर्थन की नीति उचित है और सभी बड़ी शक्तियों के साथ अच्छे संबंध रखना ही सर्वश्रेष्ठ विकल्प है।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने श्रीलंकाई प्रधानमंत्री रानिल विक्रमासिंघे की चीन यात्रा के परिप्रेक्ष्य में प्रकाशित दो लेखों में से एक में लिखा है, 'इस समय, चीन के वित्तपोषण से पाकिस्तान में बनने वाले प्रतिष्ठान चीन को एक मजबूत आधार नहीं दे सकते, क्योंकि पाकिस्तान की सुरक्षा की स्थिति दुखद है।' अखबार ने कहा, 'हिंद महासागर में सुरक्षा संबंधी रणनीतिक व्यवस्था के लिहाज से श्रीलंका चीन के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो सकता है। यह पास के नौवहन मार्गों के लिए न सिर्फ सुरक्षा आश्वासन देगा बल्कि यह 21वीं सदी के समुद्री रेशम मार्ग (एमएसआर) को भी प्रोत्साहन देगा।'
भारत ने अब तक इस मार्ग का समर्थन नहीं किया है, क्योंकि उसे चिंता है कि इसके चलते चीन हिंद महासागर में हावी हो सकता है। श्रीलंका में आधार जमाने के अलावा चीन पाकिस्तान के साथ अपने 46 अरब के आर्थिक गलियारे के जरिये भी हिंद महासागर तक पहुंच बनाने की कोशिश कर रहा है। इस आर्थिक गलियारे के जरिये शिनजियांग को अरब सागर में स्थित रणनीतिक ग्वादर पत्तन से जोड़ा जाना है। ग्वादर की स्थिति हिंद महासागर में प्रवेश का रास्ता उपलब्ध करवाती है।
मौजूदा मैत्रिपाला सिरीसेना सरकार द्वारा रोकी गई डेढ़ अरब डॉलर की कोलंबो पोर्ट सिटी परियोजना के लटक जाने के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराते हुए रिपोर्ट में कहा गया, 'श्रीलंका की दलगत राजनीति के अलावा, भारत की ओर से आने वाला दबाव भी इस परियोजना के निलंबन में अहम कारक रहा है।' रिपोर्ट में कहा गया, 'दक्षिण एशिया में चीनी निवेश को देखकर भारत अक्सर पक्षपातपूर्ण हो जाता है। भारत की चिंता उसके इस संदेह से जुड़ी है कि चीन भारत को घेरने की कोशिश कर रहा है। जबकि सच यह है कि न तो श्रीलंका में बीजिंग का निवेश और न ही श्रीलंका का आर्थिक विकास भारत को कोई नुकसान पहुंचाएगा। नई दिल्ली को अब भी यह लगता है चीन शायद भारत के चारों ओर सैन्य घेराबंदी कर सकता है।'
अखबार ने कहा, 'देश में भारत समर्थक या चीन समर्थक होने पर चल रही बहस विक्रमसिंघे की चीन की यात्रा के साथ धीरे धीरे बंद हो सकती है।' रिपोर्ट में कहा गया, 'नई दिल्ली का कोलंबो पर काफी प्रभाव है, इसके बावजूद श्रीलंका और चीन के संबंध भारत के हितों के खिलाफ नहीं है। कोलंबो को अब इस बात की भली प्रकार जानकारी है कि न तो भारत समर्थन और न ही चीन समर्थन की नीति उचित है और सभी बड़ी शक्तियों के साथ अच्छे संबंध रखना ही सर्वश्रेष्ठ विकल्प है।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
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