पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के सलाहकार सरताज अजीज (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
अंतरराष्ट्रीय अदालत में पाकिस्तान को मिली शिकस्त पर सफाई पेश कर रहे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के सलाहकार सरताज अज़ीज़ को एक पत्रकार ने अपने सवाल से घेर लिया. अज़ीज़ को उनका वो बयान याद दिलाया जिसमें उन्होंने कुलभूषण जाधव के खिलाफ पर्याप्त सबूत न होने की बात कही थी. फिर पूछा कि अब ऐसा क्या सबूत आ गया कि पाकिस्तान उसे अंतराष्ट्रीय अदालत में पेश करने की बात कर रहा है. सरताज अज़ीज़ ने ये कह कर अपना बचाव किया कि उन्होंने दूसरे डॉज़ियर आने के इंतज़ार की बात की थी. उन्होंने मेटेरियल शब्द इस्तेमाल किया था जिसे किसी चैनल ने एविडेंस यानी सबूत कह दिया.
दरअसल 8 दिसंबर 2016 को सीनेट की एक कमिटि के सामने अज़ीज़ ने जाधव के खिलाफ सबूतों को नाकाफ़ी बताया था. इसे लेकर काफ़ी विवाद हुआ. उसी दिन डॉन न्यूज़ पेपर की रिपोर्ट, जो अभी भी वेबसाइट पर मौजूद है, कहती है कि अज़ीज ने सीनेट कमिटि को उर्दू में बताया कि "ऐसा नहीं है कि मेटेरियल दे दिया गया है और ये अंग्रेजी में उपलब्ध नहीं है और हम इससे पार पाने की कोशिश कर रहे हैं. हमारी नज़र में दिए गए सबूत पर्याप्त नहीं हैं."
हालांकि बाद में अज़ीज़ के इस बयान से सरकार को किनारा करना पड़ा. माना गया कि सरकार ने ऐसा सेना के दबाव में किया. सेना किसी भी सूरत में जाधव के मामले को हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी लिहाज़ा उसने अज़ीज़ की सबूतों की कमी की बात पर सरकार को आड़े हाथों लिया. नहीं तो जब दिसंबर 2016 तक जाधव के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं थे तो फिर उसके क़रीब क़रीब चार महीने बाद 10 अप्रैल 2017 को फांसी की सज़ा सुनाने लायक सबूत कहां से आ गए.
ग़ौरतलब है कि जाधव की ग़िरफ्तारी के तुरंत बाद से ही पाकिस्तान जाधव के तथाकथित क़बूलनामे और हुसैन मुबारक पटेल नाम से पासपोर्ट को सबूत के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रहा है. इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में भी उसने इन्हीं दो चीज़ों को रखने की बात की. लेकिन कोर्ट ने क़बूलनामे को दिखाने तक से मना कर दिया. अब पाकिस्तान उसे आगे की सुनवाई में दिखाने की बात कर रहा है.
दरअसल 8 दिसंबर 2016 को सीनेट की एक कमिटि के सामने अज़ीज़ ने जाधव के खिलाफ सबूतों को नाकाफ़ी बताया था. इसे लेकर काफ़ी विवाद हुआ. उसी दिन डॉन न्यूज़ पेपर की रिपोर्ट, जो अभी भी वेबसाइट पर मौजूद है, कहती है कि अज़ीज ने सीनेट कमिटि को उर्दू में बताया कि "ऐसा नहीं है कि मेटेरियल दे दिया गया है और ये अंग्रेजी में उपलब्ध नहीं है और हम इससे पार पाने की कोशिश कर रहे हैं. हमारी नज़र में दिए गए सबूत पर्याप्त नहीं हैं."
हालांकि बाद में अज़ीज़ के इस बयान से सरकार को किनारा करना पड़ा. माना गया कि सरकार ने ऐसा सेना के दबाव में किया. सेना किसी भी सूरत में जाधव के मामले को हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी लिहाज़ा उसने अज़ीज़ की सबूतों की कमी की बात पर सरकार को आड़े हाथों लिया. नहीं तो जब दिसंबर 2016 तक जाधव के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं थे तो फिर उसके क़रीब क़रीब चार महीने बाद 10 अप्रैल 2017 को फांसी की सज़ा सुनाने लायक सबूत कहां से आ गए.
ग़ौरतलब है कि जाधव की ग़िरफ्तारी के तुरंत बाद से ही पाकिस्तान जाधव के तथाकथित क़बूलनामे और हुसैन मुबारक पटेल नाम से पासपोर्ट को सबूत के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रहा है. इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में भी उसने इन्हीं दो चीज़ों को रखने की बात की. लेकिन कोर्ट ने क़बूलनामे को दिखाने तक से मना कर दिया. अब पाकिस्तान उसे आगे की सुनवाई में दिखाने की बात कर रहा है.
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