
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार, 4 अप्रैल को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस से मुलाकात की. बांग्लादेश की पूर्व प्रधान मंत्री शेख हसीना के तख्तापलट के बाद दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व के बीच यह पहली बैठक थी. दोनों नेता बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के लिए थाईलैंड की यात्रा पर हैं और यहीं बैंकॉक में दोनों के बीच द्विपक्षीय बैठक हुई है. इससे पहले गुरुवार की रात बिम्सटेक नेताओं के डीनर प्रोग्राम में भी दोनों एक-दूसरे के बगल में बैठे थे.
1. पीएम मोदी से मिलने को बेकरार यूनुस
भले बांग्लादेश के अंतरिम लीडर लगातार भारत विरोधी स्टैंड दिखाते रहे लेकिन पीएम मोदी से मुलाकात को लेकर बेकरार भी दिखे. वहां कि अंतरिम सरकार बैंकॉक में बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के दौरान दोनों नेताओं के बीच पहली बार द्विपक्षीय वार्ता आयोजित करने की इच्छुक थी. बांग्लादेश को उम्मीद थी कि भारत की तरफ से हरी झंडी मिलने के बाद यह द्विपक्षीय वार्तो हो जाएगी. और ऐसा ही हुआ भी. हालांकि जब दोनों नेताओं की मुलाकात हुई तो पीएम मोदी गंभीर और शांत दिखे जबकि यूनुस के चेहरे पर मुस्कान दिखी. पूर्व राजदूत अशोक सज्जनहार ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा कि दोनों नेताओं के बॉडी लैंग्वेज को देखकर दोनों के बीच पारस्परिक विश्वास या सौहार्द नहीं दिखा. अमूमन पीएम मोदी जब भी किसी वैश्विक नेता से मुलाकात करते हैं, उनमें गर्मजोशी दिखती है. लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं था. यह बताता है कि मुलाकात की प्रकृति औपचारिक थी.
2. चीन के करीब दिखते यूनुस
बांग्लादेश में शेख हसीना की सरका क्या बदली, भारत से दूर अब वो चीन की गोद में जाता दिख रहा है. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के नेता मुहम्मद यूनुस ने 28 मार्च को बीजिंग में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की. यह मुलाकात अपने आप में एक संदेश था. संदेश यह कि भारत के साथ ढाका के रिश्ते ठंडे पड़ चुके हैं, भारत प्राथमिक के निचले पायदान पर पहुंच गया है, बांग्लादेश पुराने यार के एहसानों को भुलाकर नया दोस्त बनाने निकल चुका है. खास बात यह है कि बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के एक टॉप अधिकारी ने यहां तक कहा था कि यूनुस ने अपनी पहली राजकीय यात्रा के लिये चीन को चुना है और इस तरह बांग्लादेश "एक संदेश भेज रहा है." यह रिपोर्ट एएफपी ने छापी थी. संकेत साफ भारत के लिए था.
3. चीन को खुश करते यूनुस ने सीमा लांघी
जब यूनुस चीन पहुंचे तो शी जिनपिंग को खुश करने के चक्कर में सीमा तक लांघ दी. भारत के पूर्वोत्तर राज्यों पर कुछ ऐसा कह दिया कि भारत को कड़ा विरोध दर्ज कराना पड़ा. मुहम्मद यूनुस ने चीन से बांग्लादेश में अपना आर्थिक प्रभाव बढ़ाने को कहा और उल्लेख किया कि इस संबंध में भारत के पूर्वोत्तर राज्यों का चारों ओर से जमीन से घिरा होना एक अवसर साबित हो सकता है. यूनुस ने कहा, ‘‘भारत के पूर्वी हिस्से के सात राज्य सात बहनें (सेवन सिस्टर्स) कहलाते हैं. वे चारों ओर से जमीन से घिरे क्षेत्र हैं. उनके पास समुद्र तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं है.'' बांग्लादेश को इस क्षेत्र में ‘‘महासागर का एकमात्र संरक्षक'' बताते हुए यूनुस ने कहा कि यह एक बड़ा अवसर हो सकता है और चीनी अर्थव्यवस्था का विस्तार हो सकता है.
4. जिस पाकिस्तान से ली आजादी, अब उसी से यारी?
पाकिस्तान एक समय बांग्लादेश के साथ तनावपूर्ण संबंधों से जूझ रहा था. लेकिन अब रिश्ते बदल रहे हैं. इसमें तख्तापलट के बाद एक अलग ही स्पीड से तेजी आई है.बांग्लादेश ने वीजा प्रतिबंधों में ढील दे दी है, व्यापार बढ़ गया है, सीधी उड़ानें फिर से शुरू हो गई हैं और यहां तक कि दोनों के बीच सैन्य सहयोग की बात भी हो रही है. पाकिस्तान के विदेश मंत्री 22 अप्रैल को बांग्लादेश की यात्रा करने वाले हैं. भारत का दोस्त माने जाने वाला देश अब उसके सबसे बड़े विरोधी से हाथ मिला रहा है.
5. भारत के सुरक्षा के लिए बांग्लादेश अहम
भारत अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा है कि बिना कोई आक्रामकता दिखाए बांग्लादेश को अपने साथ रखा जाए. बांग्लादेश भारत का पड़ोसी है और उसके साथ संबंध का भारत की सुरक्षा पर पूरी तरह प्रभाव पड़ता है. बांग्लादेश की अराजकता के बीच भारत को बॉर्डर पर अपनी मुस्तैदी बढ़ानी होगी. अतीत में भी भारत को गहरा जख्म देने वाले आतंकी, प्लेन हाइजैकर भी, बांग्लादेश के रास्ते सीमा पार करके अंदर आ चुके हैं.
मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान, नई दिल्ली के सीनियर रिसर्च एसोसिएट डॉ राजीव नयन इस बात पर चिंता जाहिर की कि कहीं पाकिस्तान और अफगानिस्तान की तरह बांग्लादेश भी इस अराजकता के बीच ‘आउटास्ट का घर' न बन जाए. यानी यहां भागकर आए आतंकियों को पनाह न मिलने लगे. भारत को सीमापार से होने वाली हर तरह की समग्लिंग पर कड़ी नजर रखनी होगी, चाहे वो इंसानों की हो, मवेशियों की हो, सोने की हो या फिर हथियारों की. उनके अनुसार बांग्लादेश में मिलिट्री और मिलिटेंसी (उग्रवाद) का कॉकटेल बन रहा है और इसपर भारत को कड़ी नजर रखनी होगी.
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