वाशिंगटन:
पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन ने कहा है कि पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने अमेरिका की ओर से उस घातक प्रस्ताव के आने के बाद अपनी टीम से परमाणु करार पर विराम लगाने को कहा था, जिसमें भारत के सिर्फ दो परमाणु रिएक्टरों को अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानकों से बाहर रखने की बात की गई थी।
नारायणन की ओर से यह खुलासा उस वक्त किया गया, जब अमेरिका की पूर्व विदेशमंत्री कोन्डेलीज़ा राइस ने वाशिंगटन में कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 18 जुलाई, 2005 को परमाणु करार के प्रस्तावित ऐलान से एक रात पहले करार पर रोक लगा दी थी, क्योंकि भारत में विपक्षी दल इसके खिलाफ खड़े हो गए थे।
पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने ऐतिहासिक परमाणु करार के 10 साल पूरा होने के मौके पर एक-दिवसीय सम्मेलन में कहा, ''मैं तथ्यों को स्पष्ट करना चाहता हूं... मैं जानता हूं कि यह विचार व्यापक रूप से स्थापित हो गया है कि 17-18 जुलाई की रात डॉ मनमोहन सिंह ने करार को रोक दिया था... मेरा मानना है कि इसके बहुत उचित कारण थे...''
उन्होंने कहा, ''(प्रधानमंत्री कार्यालय और अमेरिकी राष्ट्रपति कार्यालय के बीच) एक सहमति बनी थी कि जिन परमाणु रिएक्टरों को अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानकों से बाहर रखा जाना है, उनकी संख्या कितनी होगी...''
नारायणन ने उस रात के घटनाक्रम का विवरण देते हुए कहा, ''अमेरिकी विदेश विभाग में ऐसे बहुत से लोग थे, जो भारत को सबक सिखाना चाहते थे... जिस समय यह यात्रा होनी थी, उस समय तक छह से आठ रिएक्टरों के बारे में सहमति बनी थी, लेकिन उसे घटाकर दो कर दिया गया... यह ऐसी संख्या थी, जो भारत के विदेश मंत्रालय के दृष्टिकोण से कतई अस्वीकार्य थी...'' उन्होंने कहा, ''उस रात 12:05 बजे प्रधानमंत्री का रुख यह था कि अगर परमाणु ऊर्जा आयोग और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार इस आंकड़े पर आगे बढ़ने के इच्छुक नहीं है तो करार पर विराम लगा दिया जाए...''
तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ऐसे फैसले से सरकार के पास कड़ा संदेश गया। जैसे ही इसकी जानकारी व्हाइट हाउस पहुंची, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने राइस को विलार्ड होटल भेजा, जहां डॉ सिंह ठहरे हुए थे। नारायणन के अनुसार प्रधानमंत्री उस वक्त राइस के साथ नहीं मिलना चाहते थे, क्योंकि वह इस अशुभ खबर को सीधे साझा नहीं करना चाहते थे।
राइस ने तत्कालीन विदेशमंत्री नटवर सिंह से मुलाकात की, जो अमेरिकी विदेशमंत्री को प्रधानमंत्री के कक्ष में ले गए। जब अमेरिकी भारत को स्वीकार्य रिएक्टरों की संख्या पर सहमत हो गए, तब प्रधानमंत्री ने इस समझौते को लेकर आगे बढ़ने पर सहमति जताई।
नारायणन ने कहा, ''मैं चाहता हूं कि इतिहास में यह तथ्य समाहित हो कि यह समझौता तब तक नहीं होता, जब तक मनमोहन सिंह इस करार के लिए 150 फीसदी संतुष्ट नहीं होते...''
नारायणन की ओर से यह खुलासा उस वक्त किया गया, जब अमेरिका की पूर्व विदेशमंत्री कोन्डेलीज़ा राइस ने वाशिंगटन में कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 18 जुलाई, 2005 को परमाणु करार के प्रस्तावित ऐलान से एक रात पहले करार पर रोक लगा दी थी, क्योंकि भारत में विपक्षी दल इसके खिलाफ खड़े हो गए थे।
पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने ऐतिहासिक परमाणु करार के 10 साल पूरा होने के मौके पर एक-दिवसीय सम्मेलन में कहा, ''मैं तथ्यों को स्पष्ट करना चाहता हूं... मैं जानता हूं कि यह विचार व्यापक रूप से स्थापित हो गया है कि 17-18 जुलाई की रात डॉ मनमोहन सिंह ने करार को रोक दिया था... मेरा मानना है कि इसके बहुत उचित कारण थे...''
उन्होंने कहा, ''(प्रधानमंत्री कार्यालय और अमेरिकी राष्ट्रपति कार्यालय के बीच) एक सहमति बनी थी कि जिन परमाणु रिएक्टरों को अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानकों से बाहर रखा जाना है, उनकी संख्या कितनी होगी...''
नारायणन ने उस रात के घटनाक्रम का विवरण देते हुए कहा, ''अमेरिकी विदेश विभाग में ऐसे बहुत से लोग थे, जो भारत को सबक सिखाना चाहते थे... जिस समय यह यात्रा होनी थी, उस समय तक छह से आठ रिएक्टरों के बारे में सहमति बनी थी, लेकिन उसे घटाकर दो कर दिया गया... यह ऐसी संख्या थी, जो भारत के विदेश मंत्रालय के दृष्टिकोण से कतई अस्वीकार्य थी...'' उन्होंने कहा, ''उस रात 12:05 बजे प्रधानमंत्री का रुख यह था कि अगर परमाणु ऊर्जा आयोग और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार इस आंकड़े पर आगे बढ़ने के इच्छुक नहीं है तो करार पर विराम लगा दिया जाए...''
तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ऐसे फैसले से सरकार के पास कड़ा संदेश गया। जैसे ही इसकी जानकारी व्हाइट हाउस पहुंची, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने राइस को विलार्ड होटल भेजा, जहां डॉ सिंह ठहरे हुए थे। नारायणन के अनुसार प्रधानमंत्री उस वक्त राइस के साथ नहीं मिलना चाहते थे, क्योंकि वह इस अशुभ खबर को सीधे साझा नहीं करना चाहते थे।
राइस ने तत्कालीन विदेशमंत्री नटवर सिंह से मुलाकात की, जो अमेरिकी विदेशमंत्री को प्रधानमंत्री के कक्ष में ले गए। जब अमेरिकी भारत को स्वीकार्य रिएक्टरों की संख्या पर सहमत हो गए, तब प्रधानमंत्री ने इस समझौते को लेकर आगे बढ़ने पर सहमति जताई।
नारायणन ने कहा, ''मैं चाहता हूं कि इतिहास में यह तथ्य समाहित हो कि यह समझौता तब तक नहीं होता, जब तक मनमोहन सिंह इस करार के लिए 150 फीसदी संतुष्ट नहीं होते...''
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