केपी शर्मा ओली (फाइल फोटो)
नेपाल में फिलहाल राजनीतिक संकट टल गया है। प्रचंड के नेतृत्व वाली यूसीपीएन-माओवादी पार्टी ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार से समर्थन वापस लेने का फैसला रद्द कर दिया है। इसके ठीक बाद प्रधानमंत्री ओली ने संसद में बोलते हुए नए संविधान को दोबार लिखे जाने की मधेसियों की मांग को ठुकरा दिया। उन्होंने ये भी कहा कि संसद भंग करने की खबरें महज अफवाह हैं, आधारविहीन हैं।
संसद में इस बयान के पहले इस गठबंधन सरकार के सभी नेताओं की प्रचंड के घर पर बैठक हुई। अभी तक ये साफ नहीं है कि इस बैठक में ये लोग किस समझौते पर पहुंचे। इस बीच संसद में अपने बयान में प्रधानमंत्री ओली ने विपक्षी नेपाली कांग्रेस और बाकी पार्टियों से संसदीय प्रक्रिया के तहत समस्याएं सुलझाने को कहा।
संविधान दोबारा लिखे जाने की मांग ठुकराई
उन्होंने कहा कि जिलों की सीमाओं के विवाद पर एक उच्च-स्तरीय कमीशन विचार करेगा और समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने की बात संविधान में है। लेकिन कुछ गुटों की संविधान को दोबारा लिखे जाने की मांग को उन्होंने साफ ठुकरा दिया। उन्होंने साफ कहा कि मधेसियों की मांग बातचीत से ही सुलझेगी।
मधेसी आंदोलन के दौरान हुई थी व्यापक हिंसा
उल्लेखनीय है कि मधेसी भारतीय मूल के नेपाली नागरिक हैं और चाहते हैं कि संविधान दोबारा लिखा जाए, ताकि उन्हें उनकी जनसंख्या के मुताबिक प्रतिनिधित्व मिल सके। इन्होंने करीब 6 महीने तक विरोध किया था जो हिंसक भी हो गया था और इसमें करीब 60 लोगों की मौत हुई थी। भारत-नेपाल सीमा बंद होने से वहां पेट्रोल और जरूरी चीजों की जबर्दस्त किल्लत भी हुई थी।
हालांकि इसके लिए नेपाल ने भारत को भी जिम्मेदार ठहराया था, लेकिन भारत ने इससे साफ इनकार कर दिया था। ये गतिरोध इस साल फरवरी में खत्म हुआ। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने एक सवाल के जवाब में कहा कि नेपाल की मौजूदा राजनीतिक स्थिति वहां का आंतरिक मामला है, लेकिन हम उस पर नजर जरूर रखे हुए हैं।
संसद में इस बयान के पहले इस गठबंधन सरकार के सभी नेताओं की प्रचंड के घर पर बैठक हुई। अभी तक ये साफ नहीं है कि इस बैठक में ये लोग किस समझौते पर पहुंचे। इस बीच संसद में अपने बयान में प्रधानमंत्री ओली ने विपक्षी नेपाली कांग्रेस और बाकी पार्टियों से संसदीय प्रक्रिया के तहत समस्याएं सुलझाने को कहा।
संविधान दोबारा लिखे जाने की मांग ठुकराई
उन्होंने कहा कि जिलों की सीमाओं के विवाद पर एक उच्च-स्तरीय कमीशन विचार करेगा और समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने की बात संविधान में है। लेकिन कुछ गुटों की संविधान को दोबारा लिखे जाने की मांग को उन्होंने साफ ठुकरा दिया। उन्होंने साफ कहा कि मधेसियों की मांग बातचीत से ही सुलझेगी।
मधेसी आंदोलन के दौरान हुई थी व्यापक हिंसा
उल्लेखनीय है कि मधेसी भारतीय मूल के नेपाली नागरिक हैं और चाहते हैं कि संविधान दोबारा लिखा जाए, ताकि उन्हें उनकी जनसंख्या के मुताबिक प्रतिनिधित्व मिल सके। इन्होंने करीब 6 महीने तक विरोध किया था जो हिंसक भी हो गया था और इसमें करीब 60 लोगों की मौत हुई थी। भारत-नेपाल सीमा बंद होने से वहां पेट्रोल और जरूरी चीजों की जबर्दस्त किल्लत भी हुई थी।
हालांकि इसके लिए नेपाल ने भारत को भी जिम्मेदार ठहराया था, लेकिन भारत ने इससे साफ इनकार कर दिया था। ये गतिरोध इस साल फरवरी में खत्म हुआ। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने एक सवाल के जवाब में कहा कि नेपाल की मौजूदा राजनीतिक स्थिति वहां का आंतरिक मामला है, लेकिन हम उस पर नजर जरूर रखे हुए हैं।
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