इस्लामाबाद:
पाकिस्तानी अधिकारियों ने भारत को दो अनुरोध भेजकर बचाव पक्ष के वकीलों को वर्ष 2008 के मुंबई हमलों के प्रमुख गवाहों से जिरह की अनुमति देने के लिए कहा है। उसने साथ ही कहा है कि यह अनुमति नहीं मिलने पर पाकिस्तान में आरोपी बिना सजा के छूट सकते हैं।
गत 20 जुलाई को राजनयिक चैनल के माध्यम से भारतीय अधिकारियों को भेजे गए संदेश में पाकिस्तान की संघीय जांच एजेंसी (एफआईए) ने कहा कि बचाव-पक्ष के वकील को जिंदा बचे हमलावर अजमल कसाब, मुख्य जांच अधिकारी रमेश महाले और मृत हमलावरों के शवों का पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टरों गणेश धुनराज और चिंतामन मोहिते से जिरह की अनुमति दी जानी चाहिए।
इससे पहले पाकिस्तानी अधिकारियों ने भारत को 17 जुलाई को पाकिस्तान की आतंकवाद निरोधक अदालत के आदेश को भेजा था जिसने एक पाकिस्तानी आयोग की जांच को अवैध करार दिया था। इस आयोग ने भारत यात्रा के दौरान चार गवाहों के बयान रिकॉर्ड किए थे।
पाकिस्तान में चल रहे मुकदमे में सात आरोपियों का बचाव कर रहे वकीलों के गवाहों से जिरह करने की अनुमति नहीं मिलने की बात कहने के बाद अदालत ने समिति के निष्कर्षों को खारिज कर दिया था। डॉन समाचार पत्र ने सूत्रों के हवाले से बताया कि पाकिस्तानी अधिकारी अपने भारतीय समकक्ष की ओर से इस मुद्दे पर जवाब का इंतजार कर रहे हैं। हालांकि इस मुद्दे पर एक स्मरण-पत्र भेजा जा चुका है।
सूत्रों ने कहा कि यदि भारत सरकार बचाव पक्ष के वकीलों को जिरह की अनुमति नहीं देगी तो इससे पहले इस मामले में रिकॉर्ड किए गए अन्य गवाहों के बयान अमान्य हो जाएंगे।
उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में कसाब का इकबालिया बयान, हमलावरों की सीसीटीवी फुटेज और राजनयिक चैनल के माध्यम से पाकिस्तान को सौंपे गए भारत सरकार के 780 दस्तावेज व्यर्थ साबित होंगे।
एफआईए के विशेष अभियोजक चौधरी जुल्फीकार अली ने कहा कि आतंकवाद निरोधक अदालत ने पहले ही घोषित कर दिया है कि यदि भारतीय गवाहों के साथ बचाव पक्ष के वकीलों को जिरह करने की अनुमति नहीं दी गई तो पाकिस्तानी आयोग का निष्कर्ष अमान्य होगा।
अली ने कहा कि साक्ष्यों के आधार पर सातों आरोपियों- लश्कर-ए-तैयबा कमांडर जकीउर रहमान लखवी, अब्दुल वजीद, मजहर इकबाल, हम्मद अमीन सादिक, शाहिद जमील रियाज, जमील अहमद और योउनास अंजुम को दोषी ठहराया जा सकता है। बचाव पक्ष के वकील रियाज अकरम चीमा ने कहा कि भारतीय गवाहों को पाकिस्तानी आतंकवाद निरोधक अदालत में अपने बयान रिकॉर्ड कराने के लिए कहा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि भारतीय गवाहों को जिरह से छूट पाकिस्तान दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की विभिन्न धाराओं के खिलाफ है।
गत 20 जुलाई को राजनयिक चैनल के माध्यम से भारतीय अधिकारियों को भेजे गए संदेश में पाकिस्तान की संघीय जांच एजेंसी (एफआईए) ने कहा कि बचाव-पक्ष के वकील को जिंदा बचे हमलावर अजमल कसाब, मुख्य जांच अधिकारी रमेश महाले और मृत हमलावरों के शवों का पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टरों गणेश धुनराज और चिंतामन मोहिते से जिरह की अनुमति दी जानी चाहिए।
इससे पहले पाकिस्तानी अधिकारियों ने भारत को 17 जुलाई को पाकिस्तान की आतंकवाद निरोधक अदालत के आदेश को भेजा था जिसने एक पाकिस्तानी आयोग की जांच को अवैध करार दिया था। इस आयोग ने भारत यात्रा के दौरान चार गवाहों के बयान रिकॉर्ड किए थे।
पाकिस्तान में चल रहे मुकदमे में सात आरोपियों का बचाव कर रहे वकीलों के गवाहों से जिरह करने की अनुमति नहीं मिलने की बात कहने के बाद अदालत ने समिति के निष्कर्षों को खारिज कर दिया था। डॉन समाचार पत्र ने सूत्रों के हवाले से बताया कि पाकिस्तानी अधिकारी अपने भारतीय समकक्ष की ओर से इस मुद्दे पर जवाब का इंतजार कर रहे हैं। हालांकि इस मुद्दे पर एक स्मरण-पत्र भेजा जा चुका है।
सूत्रों ने कहा कि यदि भारत सरकार बचाव पक्ष के वकीलों को जिरह की अनुमति नहीं देगी तो इससे पहले इस मामले में रिकॉर्ड किए गए अन्य गवाहों के बयान अमान्य हो जाएंगे।
उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में कसाब का इकबालिया बयान, हमलावरों की सीसीटीवी फुटेज और राजनयिक चैनल के माध्यम से पाकिस्तान को सौंपे गए भारत सरकार के 780 दस्तावेज व्यर्थ साबित होंगे।
एफआईए के विशेष अभियोजक चौधरी जुल्फीकार अली ने कहा कि आतंकवाद निरोधक अदालत ने पहले ही घोषित कर दिया है कि यदि भारतीय गवाहों के साथ बचाव पक्ष के वकीलों को जिरह करने की अनुमति नहीं दी गई तो पाकिस्तानी आयोग का निष्कर्ष अमान्य होगा।
अली ने कहा कि साक्ष्यों के आधार पर सातों आरोपियों- लश्कर-ए-तैयबा कमांडर जकीउर रहमान लखवी, अब्दुल वजीद, मजहर इकबाल, हम्मद अमीन सादिक, शाहिद जमील रियाज, जमील अहमद और योउनास अंजुम को दोषी ठहराया जा सकता है। बचाव पक्ष के वकील रियाज अकरम चीमा ने कहा कि भारतीय गवाहों को पाकिस्तानी आतंकवाद निरोधक अदालत में अपने बयान रिकॉर्ड कराने के लिए कहा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि भारतीय गवाहों को जिरह से छूट पाकिस्तान दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की विभिन्न धाराओं के खिलाफ है।
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