ईरान के राष्ट्रपति चुनाव को रिफॉर्मिस्ट मसूद पेजेशकियन ने भारी मतों से जीत लिया है. पूर्व राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी के हेलीकॉप्टर क्रैश के बाद ईरान में राष्ट्रपति चुनाव हुए थे. चुनाव में इस बार तकरीबन 3 करोड़ 5 लाख तीस हजार 157 कुल वोट (3,05,30,157) पड़े. जिसमें मसूद पेजेशकियन को 1 करोड़ 63 लाख 84 हजार 403 वोट मिले. वहीं सईद जलीली को 1 करोड़ 35 लाख 38 हजार 179 वोट मिले. वहीं इस बार वोटिंग पर्सेंटेज 49.8 प्रतिशत दर्ज किया गया. आपको बता दें मसूद पेजेशकियन ईरान के पूर्व हेल्थ मिनिस्टर भी रह चुके हैं, जिनको रिफॉर्मिस्ट की तरफ से उम्मीदवार बनाया गया था.
मसूद ने हिजाब बैन पर भी सरकार के कदम की निंदा की थी. मसूद ने अपने चुनाव प्रचार में दूसरे देशों के साथ ईरान के रिश्ते बेहतर बनाने और ईरान की अर्थव्यवस्था में सुधर की बात कही थी. हिजाब विरोधी महिलाओं, पूर्व विदेश मंत्री जावेद जरीफ आदि का मसूद पेजेशकियन को पूरा समर्थन मिला है. जिसकी बदौलत वो अच्छे मार्जिन से जीत हासिल कर अब ईरान के राष्ट्रपति बन चुके हैं.
आपको बता दें कि पिछले शुक्रवार को चार उम्मीदवार मैदान में थे. जिसमें से किसी भी उम्मीदवार को 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट नहीं मिल सके. ईरान के संविधान के मुताबिक अगर किसी भी उम्मीदवार को 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट नहीं मिलते हैं तो उस घड़ी में एक बाद फिर चुनाव होता है. ये चुनाव सबसे ज्यादा वोट प्राप्त करने वाले दो उम्मीदवार के बीच होता है. जिसमें से जो वोट ज्यादा लेकर आता है उसे विजयी माना जाता है.
पूर्व NSA और न्यूक्लियर डील में प्रमुख नेगोशिएटर डॉ सईद जलीली का मुकाबला रिफॉर्मिस्ट मसूद पेजेशकियन से था. सईद जलीली को हार्ड कोर नेता माना जाता है. वो एक रिवॉल्यूशनरी कैंडिडेट थे, इससे पहले भी दो बार वो राष्ट्रपति का चुनाव लड़ चुके हैं. जिसमें से एक बार वो तीसरे नंबर पर आए थे और दूसरी बार में इब्राहिम रईसी के चुनाव लड़ने की वजह से उन्होंने अपना नाम वापिस ले लिया था, वहीं अयातुल्लाह खामेनी के भी ये काफी करीब हैं.
मसूद पेजेशकियन के राष्ट्रपति बनने के बाद अब देखना होगा कि ईरान किस तरह अपनी अर्थव्यवस्था को और मजबूत करता है, और जिस तरह मसूद पेजेशकियन ने हिजाब के कानून के खिलाफ विरोध किया था क्या अब वो उसे हटा पाएंगे या नहीं.
भारत के साथ रिश्तों पर पड़ेगा असर?
भारत और ईरान के बीच मजबूत आर्थिक संबंध रहे हैं. उम्मीद की जा रही है कि पेजेशकियन के राष्ट्रपति बनने के बाद इन संबंधों को और मजबूत मिलेगी. विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान की सामान्य विदेश नीति में बदलाव की संभावना नहीं है,
फोकस खास तौर पर रणनीतिक चाबहार बंदरगाह पर होगा. ये एक ऐसी परियोजना जिस पर भारत ने पहले ही भारी निवेश किया है. यह पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए अफगानिस्तान और मध्य एशिया के साथ व्यापार के लिए महत्वपूर्ण है.
इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) परियोजना पर भी सबकी नजर होंगे. ये गलियारा ईरान के माध्यम से भारत को रूस से जोड़ने वाला एक बहु-मॉडल परिवहन मार्ग है.
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