जलवायु परिवर्तन पर दोहा दौर की वार्ता को बचाने की मेजबान देश कतर द्वारा निराशापूर्ण कोशिश किए जाने के बीच क्योटो प्रोटोकॉल की अवधि बढ़ाने पर सहमति बन गई, जिसके माध्यम से 2020 तक धनी देशों में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित किया जाएगा।
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दोहा:
जलवायु परिवर्तन पर दोहा दौर की वार्ता को बचाने की मेजबान देश कतर द्वारा निराशापूर्ण कोशिश किए जाने के बीच क्योटो प्रोटोकॉल की अवधि बढ़ाने पर सहमति बन गई, जिसके माध्यम से 2020 तक धनी देशों में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित किया जाएगा।
वार्ता की अवधि एक दिन तक बढ़ने के बाद वार्ता का समापन करने से पहले एक समझौते तक पहुंचने के राष्ट्रों के संकल्प के बाद करीब 200 देशों ने क्योटो प्रोटोकॉल को अगले आठ साल तक कायम रखने पर सहमति जताई।
गौरतलब है कि यह ऐतिहासिक समझौता इस साल के अंत में समाप्त हो रहा है इस पर 1997 में देशों ने सहमति जताई थी। हालांकि नए समझौते के दायरे में केवल वे विकसित राष्ट्र आएंगे, जिनका वैश्विक ग्रीन हाउस उत्सर्जन में हिस्सेदारी 15 फीसदी से कम है।
भारत के अलावा चीन और अमेरिका जैसे बड़े प्रदूषक देश इसके दायरे से बाहर होंगे। यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया, स्विट्जरलैंड और आठ अन्य औद्योगिक राष्ट्रों के 2020 तक उत्सर्जन कटौती करने के बाध्यकारी समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के साथ प्रोटोकॉल का विस्तार हो गया।
कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष अब्दुल्ला बिन हमद अल अतीया ने इस समझौते को 'दोहा क्लाइमेट गेटवे' बताया। समझौते में ग्लोबल वार्मिंग का मुकाबला करने में गरीब देशों को वित्तीय मदद बढ़ाने और ऊर्जा के स्रोतों को पर्यावरण अनुकूल बनाने की बात भी शामिल है। बहरहाल, अमेरिका ने इस सम्मेलन के तहत खुद को किसी नए समझौते से जोड़ने की बात से इनकार किया है।
वहीं, रूस ने प्रस्ताव को खारिज कर दिया, जबकि जी-77 एवं चीन, बेसिक समूह के देशों ने दोहा के नतीजों का स्वागत किया है। यह बैठक शाम को ही खत्म होनी थी, लेकिन यह निर्धारित समय से आगे खिंच गई। यह घटनाक्रम वार्ताकारों द्वारा रात भर जटिल ब्यौरों और सभी को स्वीकार्य तथ्यों को लेकर किए गए विचार-विमर्श के बात हुआ। यह वार्ता 12 दिनों तक चली, जिसमें कई उतार-चढ़ाव आए। गरीब देशों ने इस बात पर जोर दिया कि धनी देश ग्रीन हाउस गैसों में कटौती का ठोस वादा करें और गरीब देशों को वित्तीय मदद दें।
वार्ता की अवधि एक दिन तक बढ़ने के बाद वार्ता का समापन करने से पहले एक समझौते तक पहुंचने के राष्ट्रों के संकल्प के बाद करीब 200 देशों ने क्योटो प्रोटोकॉल को अगले आठ साल तक कायम रखने पर सहमति जताई।
गौरतलब है कि यह ऐतिहासिक समझौता इस साल के अंत में समाप्त हो रहा है इस पर 1997 में देशों ने सहमति जताई थी। हालांकि नए समझौते के दायरे में केवल वे विकसित राष्ट्र आएंगे, जिनका वैश्विक ग्रीन हाउस उत्सर्जन में हिस्सेदारी 15 फीसदी से कम है।
भारत के अलावा चीन और अमेरिका जैसे बड़े प्रदूषक देश इसके दायरे से बाहर होंगे। यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया, स्विट्जरलैंड और आठ अन्य औद्योगिक राष्ट्रों के 2020 तक उत्सर्जन कटौती करने के बाध्यकारी समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के साथ प्रोटोकॉल का विस्तार हो गया।
कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष अब्दुल्ला बिन हमद अल अतीया ने इस समझौते को 'दोहा क्लाइमेट गेटवे' बताया। समझौते में ग्लोबल वार्मिंग का मुकाबला करने में गरीब देशों को वित्तीय मदद बढ़ाने और ऊर्जा के स्रोतों को पर्यावरण अनुकूल बनाने की बात भी शामिल है। बहरहाल, अमेरिका ने इस सम्मेलन के तहत खुद को किसी नए समझौते से जोड़ने की बात से इनकार किया है।
वहीं, रूस ने प्रस्ताव को खारिज कर दिया, जबकि जी-77 एवं चीन, बेसिक समूह के देशों ने दोहा के नतीजों का स्वागत किया है। यह बैठक शाम को ही खत्म होनी थी, लेकिन यह निर्धारित समय से आगे खिंच गई। यह घटनाक्रम वार्ताकारों द्वारा रात भर जटिल ब्यौरों और सभी को स्वीकार्य तथ्यों को लेकर किए गए विचार-विमर्श के बात हुआ। यह वार्ता 12 दिनों तक चली, जिसमें कई उतार-चढ़ाव आए। गरीब देशों ने इस बात पर जोर दिया कि धनी देश ग्रीन हाउस गैसों में कटौती का ठोस वादा करें और गरीब देशों को वित्तीय मदद दें।
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