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This Article is From Apr 21, 2025

व्यापार समझौता, टैरिफ, चीन.. टाइमिंग बता रही अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस का भारत दौरा अहम क्यों?

अमेरिकी राष्ट्रपति जेडी वेंस की यात्रा को उसकी टाइमिंग महत्वपूर्ण बनाती है. इस समय भारत और अमेरिका, दोनों देश आर्थिक अवसरों को खोलना और द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत करना चाहते हैं.

भारत के पीएम नरेंद्र मोदी और अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस
अल्टर्ड बाई एनडीटीवी इंडिया

अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस अपने 4 दिवसीय भारत की यात्रा के लिए सोमवार, 21 अप्रैल को सुबह नई दिल्ली पहुंचे. यह अहम यात्रा उस समय हो रही है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को हिला कर रखा है और असर भारत के शेयर मार्केट पर भी देखने को मिला है. यात्रा को उसकी टाइमिंग महत्वपूर्ण बनाती है. इस समय भारत और अमेरिका, दोनों देश आर्थिक अवसरों को खोलना और द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत करना चाहते हैं.

यहां हम समझने की कोशिश करते हैं कि अमेरिकी उपराष्ट्रपति का यह दौरा अहम क्यों है. उससे पहले हम संक्षेप में बताएंगे कि जेडी वेंस इस दौरे पर क्या करेंगे?

जेडी वेंस भारत दौरे पर क्या करेंगे?

जेडी वेंस इस दौरे पर भारतीय प्रधानमंंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करेंगे और अर्थव्यवस्था, व्यापार और भूराजनीतिक (जियोपॉलिटिकल) संबंधों पर बातचीत करेंगे. भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि यह यात्रा "दोनों पक्षों को द्विपक्षीय संबंधों में प्रगति की समीक्षा करने का अवसर प्रदान करेगी" और दोनों नेता "पारस्परिक हित के क्षेत्रीय और वैश्विक विकास पर विचारों का आदान-प्रदान करेंगे."

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, विदेश सचिव विक्रम मिस्री और अमेरिका में भारतीय राजदूत विनय मोहन क्वात्रा के मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय टीम का हिस्सा होने की उम्मीद है.

इसके बाद जेडी वेंस के 22 अप्रैल को जयपुर जाने और 23 अप्रैल को आगरा जाने का कार्यक्रम तय है. अब वापस इस बात पर आते हैं कि यह यात्रा अहम क्यों है.

भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौता

भारत और अमेरिका एक व्यापार समझौते पर बात कर रहे हैं जो दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा सकता है और संभावित रूप से राजनयिक संबंधों को मजबूत कर सकता है. अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार भी है, जिसका द्विपक्षीय व्यापार हाल तक 190 बिलियन डॉलर था.

वेंस का भारत पीएम मोदी मोदी की वाशिंगटन में ट्रंप से मुलाकात के दो महीने बाद हुआ है. व्हाइट हाउस में ट्रंप के लौटने के बाद पीएम मोदी अमेरिका जाने वाले और उनसे बातचीत करने वाले पहले नेताओं में से थे. अपनी यात्रा के दौरान, मोदी ने अमेरिका के साथ एक "मेगा पार्टनरशिप" की सराहना की. उसी समय पीएम मोदी ने ट्रंप के टैरिफ के संभावित प्रभाव को कम करने के लिए एक बातचीत प्रक्रिया शुरू कर दी थी. भारत ने ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ की घोषणा के पहले ही कई अमेरिकी वस्तुओं पर टैरिफ में कटौती कर दी थी.

इसके बावजूद, ट्रंप ने अपनी टैरिफ पॉलिसी के हिस्से के रूप में भारत पर 26% टैरिफ का लक्ष्य रखा, जिससे भारतीय निर्यातकों को अभी 90 दिनों की अस्थायी राहत मिली है.

अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान मोदी ने साफ कहा था कि वह अमेरिकी वस्तुओं पर अधिक टैरिफ कम करने, बिना डॉक्यूमेंट अमेरिका में रहने वाले भारतीय नागरिकों को वापस लाने और अमेरिका से सैन्य गियर खरीदने के लिए तैयार हैं. दोनों देश द्विपक्षीय व्यापार समझौते को हासिल करने की दिशा में बातचीत शुरू करने पर भी सहमत हुए. अब जेडी वेंस की यात्रा से इस बातचीत को तेजी मिलने की उम्मीद है.

नई दिल्ली के लिए व्यापास समझौते पर बातचीत विशेष रूप से जरूरी है. भारत को ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ से विशेष रूप से कृषि, प्रसंस्कृत खाद्य (प्रोसेस्ड फूड), ऑटो पार्ट्स, उच्च-स्तरीय मशीनरी, चिकित्सा उपकरण और आभूषण के क्षेत्रों में बड़ा झटका लग सकता है. यह मोदी सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है क्योंकि उसे देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और निर्यात-आधारित रिकवरी के साथ रोजगार पैदा करने की उम्मीद है.

व्यापार संबंधों को और बढ़ावा देने के लिए, अमेरिका और भारत ने अपेक्षित व्यापार समझौते के तहत 2030 तक अपने द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना कर 500 बिलियन डॉलर से अधिक करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है.

चीन से अमेरिका की बढ़ रही रार, भारत में खोज रहा लंबे दौर का यार

वेंस की इस यात्रा को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन द्वारा एक महत्वपूर्ण राजनयिक मिशन के रूप में देखा जा रहा है. इस दौरे की टाइमिंग वाशिंगटन और बीजिंग के बीच तेजी से बढ़ते व्यापार युद्ध के साथ मेल खाती है, जो इस क्षेत्र में नई दिल्ली का मुख्य प्रतिद्वंद्वी है. 

भारत द्विपक्षीय व्यापार, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), रक्षा सहयोग के मामले में अमेरिका का करीबी साझेदार है. साथ ही वह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने में एक महत्वपूर्ण रणनीतिक सहयोगी है. दोनों क्वाड का भी हिस्सा हैं, जो अमेरिका के अलावा भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया से बना है और इसे क्षेत्र में चीन के विस्तार के प्रति-संतुलन (काउंटर बैलेंस) के रूप में देखा जाता है. 

पीएम मोदी ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान ही ट्रंप के साथ अच्छे कामकाजी संबंध स्थापित किए थे. अब ऐसा लगता है कि दोनों नेता अपने देशों के बीच सहयोग को और बढ़ावा दे सकते हैं, खासकर व्यापार में. इसमें एक फैक्टर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सपने भी हैं. शी जिनपिंग ने वाशिंगटन के साथ बढ़ते तनाव के बीच बीजिंग को एशिया-प्रशांत क्षेत्र में एक विश्वसनीय व्यापार भागीदार के रूप में स्थापित करने का लक्ष्य रखा है. उन्होंने इसी उम्मीद के साथ वियतनाम, मलेशिया और कंबोडिया की हाल ही में यात्रा की है. अभी अमेरिका इस वक्त में भारत में साथी खोज रहा है और भारत के लिए स्थिति विन-विन की बन सकती है.
 

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