संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की कोशिशों को आज बड़ी सफलता मिली है। भारत की इस कोशिश में मजबूरन ही सही चीन ने भी साथ दिया है।
संयुक्त राष्ट्र के करीब 200 सदस्य राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग पर चर्चा की मांग करते दस्तावेज के मसौदे पर अगले एक साल तक चर्चा करने के लिए राजी हो गए हैं। सुरक्षा परिषद इस वैश्विक संगठन में निर्णय लेने वाला शीर्ष अंग है। इस परिषद में 15 सदस्य होते हैं, जिनमें पांच राष्ट्र अमेरिका, चीन, रूस, ब्रिटेन, और फ्रांस स्थायी सदस्य हैं।
संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में यह पहला मौका है, जब महासभा के विभिन्न सदस्य राष्ट्रों से इस सुधार प्रस्ताव के लिए अपने लिखित सुझाव दिए हैं। हालांकि अमेरिका, चीन और रूस ने इस कवायद में शामिल ना होकर भारत के इस प्रयास में अड़ंगा डालने की कोशिश की।
चीन को इसलिए मजबूरन करनी पड़ी मदद...
चीन सुरक्षा परिषद के विस्तार का कड़ा विरोध करता रहा है और खबर है कि वह सुधार के ढांचे पर एक साल तक चर्चा के इस प्रस्ताव पर वोटिंग कराना चाहता था, लेकिन उसे इस पर दूसरों का साथ नहीं मिला और फिर उसने वोटिंग पर जोर भी नहीं डाला। चीन अगर वोटिंग पर जोर डालता, तो भारत को दूसरे देशों को अपने पक्ष में करने के लिए मेहनत करनी पड़ सकती थी।
वहीं अमेरिका और रूस ने भारत की सदस्यता का मौखिक रूप से जरूर समर्थन किया था, लेकिन इस पर कोई लिखित आश्वासन नहीं दिया।
अब आगे की क्या है प्रक्रिया...
इस ड्राफ्ट प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र के अगले साल के एजेंडा पर बात की गई है जिसका विषय 'सुरक्षा परिषद की सदस्यता में बढ़ोतरी या बराबरी का प्रतिनिधित्व' है।
एक बार मसौदा तैयार हो जाने के बाद उसे महासभा में मतदान के लिए रखा जाएगा जहां उसे पास होने के लिए दो तिहाई वोट की ज़रूरत पड़ेगी।
गौरतलब है कि अक्टूबर में संयुक्त राष्ट्र की 70वीं वर्षगांठ से पहले प्रधानमंत्री मोदी विदेश यात्राओं और द्विपक्षीय चर्चा के ज़रिए अलग अलग देशों के प्रमुखों से सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए सहयोग की अपेक्षा कर रहे हैं।
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