न्यूयॉर्क:
वैश्विक मानवाधिकार समूह ‘मानवाधिकार निगरानी (एचआरडब्ल्यू)’ ने भारत पर महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के मामले कम करने में असफल रहने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ‘प्रतिबंधित’ करने का आरोप लगाया है।
एचआरडब्ल्यू का कहना है कि भारत में अभी भी बड़ी संख्या में मानवाधिकार उल्लंघन हो रहा है।
भारत में मानवाधिकारों के उल्लंघन की अपनी समीक्षा में एचआरडब्ल्यू ने कहा है कि भारत में ‘उन्नतिशील सिविल सोसायटी है, स्वतंत्र मीडिया और एक स्वतंत्र न्यायपालिका है।’ हालांकि संगठन का कहना है कि ‘लंबे समय से चल रहे इस उत्पीड़न की प्रथा, भ्रष्टाचार और साजिश करने वालों की जिम्मेदारी तय करने में हो रही कमी के कारण मानवाधिकार उल्लंघन हो रहे हैं।’
अपनी 665 पन्नों की ‘वर्ल्ड रिपोर्ट 2013’ में खराब क्रियान्यवन के कारण सरकार की सभी कोशिशें जैसे.. पुलिस सुधार, शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में सुधार आदि काफी कमजोर साबित हो रही हैं।
एचआरडब्ल्यू का कहना है, ‘‘भेद-भाव वाले व्यवहार से निपटने की सरकारी अधिकारियों को सही प्रशिक्षण देने में सरकार की असफलता के कारण महिलाओं, बच्चों, दलितों, आदिवासी समुदायों, धार्मिक अल्पसंख्यकों, अशक्त लोग आदि अभी भी हाशिए पर हैं और उनके साथ भेद-भाव हो रहा है।’’
भारत जिस तरह से महिलाओं के खिलाफ हिंसा की समस्या से निबट रहा है उसकी आलोचना करते हुए समूह ने कहा है कि वर्ष 2012 में भी महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा जारी है। यौन उत्पीड़न की खबरों में लगातार वृद्धि हो रही है। सिर्फ इतना ही नहीं अशक्त लोगों के साथ भी यह समस्या आ रही है।
एचआरडब्ल्यू का कहना है कि भारत में अभी भी बड़ी संख्या में मानवाधिकार उल्लंघन हो रहा है।
भारत में मानवाधिकारों के उल्लंघन की अपनी समीक्षा में एचआरडब्ल्यू ने कहा है कि भारत में ‘उन्नतिशील सिविल सोसायटी है, स्वतंत्र मीडिया और एक स्वतंत्र न्यायपालिका है।’ हालांकि संगठन का कहना है कि ‘लंबे समय से चल रहे इस उत्पीड़न की प्रथा, भ्रष्टाचार और साजिश करने वालों की जिम्मेदारी तय करने में हो रही कमी के कारण मानवाधिकार उल्लंघन हो रहे हैं।’
अपनी 665 पन्नों की ‘वर्ल्ड रिपोर्ट 2013’ में खराब क्रियान्यवन के कारण सरकार की सभी कोशिशें जैसे.. पुलिस सुधार, शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में सुधार आदि काफी कमजोर साबित हो रही हैं।
एचआरडब्ल्यू का कहना है, ‘‘भेद-भाव वाले व्यवहार से निपटने की सरकारी अधिकारियों को सही प्रशिक्षण देने में सरकार की असफलता के कारण महिलाओं, बच्चों, दलितों, आदिवासी समुदायों, धार्मिक अल्पसंख्यकों, अशक्त लोग आदि अभी भी हाशिए पर हैं और उनके साथ भेद-भाव हो रहा है।’’
भारत जिस तरह से महिलाओं के खिलाफ हिंसा की समस्या से निबट रहा है उसकी आलोचना करते हुए समूह ने कहा है कि वर्ष 2012 में भी महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा जारी है। यौन उत्पीड़न की खबरों में लगातार वृद्धि हो रही है। सिर्फ इतना ही नहीं अशक्त लोगों के साथ भी यह समस्या आ रही है।
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